6/12/2008

उसके जाने के बाद कोई धूप नहीं है

बंदरगाह से जहाजों के छूटने का साईरन बजता था , मोटा भारी कर्कश बुलंद , रात की पनियायी मटमैली रौशनी को एक पल को तोड़ता हुआ । जैसे ऐतिहासिक फिल्मों में किले की दीवार को तोड़ने के लिये कोई भारी बड़ा लौहखंभ । एक कतार से लंगर लगे जहाजों की गोल खिड़कियों से रौशनी छन कर नीचे पानी के छोटे छोटे लहरों में रेखा बनाती हिलती डुलती विलीन होती थी । कुछ हिस्सा तट पर , मोटे रस्सियों और लोहे के जंग खाये लंगरों से फिसलता धीमे से एक सर्द गीली आह लिये बैठ जाता । सब तरफ पानी की सीली महक , एक अजीब खास सी महक , जैसे सबकुछ ठहरा रुका जड़ हो। बीच समन्दर के पानी के महक से एकदम अलहदा । कुछ कुछ खून के महक जैसा , थोड़ा लोहराईन । इस तरफ एक अलग गमक की दुनिया थी । छोटी जगहों में कई आदमियों के रहने की , उनके पसीने की , उनके साँसों की खट्टी महक , उबले आलू और माँस की महक , जो जहाजों की रसोई में बड़े कड़ाहों में जहाजियों के लिये पकता , तट तक आ पहुँचता । कुछेक भूखे पेट अधनंगे भिखमंगे आह से पानी में हिलते उन रौशन खिड़कियों की तरफ उदास आँखों से देखते । पिछली गलियों में बजबजाता कूड़ेदान कुछ और तरीके की बू फेंकता , ऐसा कि पास आने पर दिमाग चकरा जाये ।

बंदरगाह की पिछली भूलभुलैया गलियों से संगीत की लहरी हवा के साथ पानी तक आ पहुँचती । पियक्कड़ जहाजियों का कान फोड़ू उधम , किसी बेलीडांसर की कमर की बलखाती बिजलियाँ , बार की रंगीन रौशनी ..सब के पीछे सबके परे ,किसी और गली में , किसी तंगहाल कोठरी में कोई औरत बैठी तस्बीह के मनके उँगलियों से गिनती बुदबुदाती है । कोई जवान औरत रंगीन फूलदार कपड़े पहने एक पल को ठठाकर हँसती फिर अचक्के गुम हो जाती है । आँख के कोरों पर एक बून्द आँसू झलमला जाता है । सामने पपड़ियाये पीले दीवार पर तस्वीर में सजा नौजवान सेलर कैप पहने हँसता है । गली के बाहर अचानक कुत्ते बेतहाशा भूँकते हैं । अफीम के पिनक में ढुलका आदमी ज़रा चौंक कर कुत्तों को देखता है फिर आस्तीन से मुँह पोछता गुनगुनाता है कोई गीत अपनी प्रेमिका के याद में । दुख से उसकी छाती दरकती है ..बट ऐंट नो सनशाईन व्हेन शी इज़ गॉन ...

भोर होने के ठीक पहले जहाज , इंजिन की तेज़ गड़गड़ाती आवाज़ के शोर के साथ खुले समन्दर की तरफ बढ़ निकलता है । लाल टमाटरी गाल वाले दढ़ियल कप्तान को बोसन बताता है , हाजिरी रजिस्टर बढ़ाते ..एक आदमी कम है ।

7 comments:

गौरव सोलंकी said...

बट ऐंट नो सनशाईन व्हेन शी इज़ गॉन ...
...

पारुल "पुखराज" said...

आपने महकों के भी चित्र उभार दिये…

Arvind Mishra said...

भावपूर्ण ,शब्दों का जादू यहाँ भी बिखरा है !

डॉ .अनुराग said...

फ़िर वही लफ्जों का ताना बाना...फ़िर वही जादूगरी....

Satyendra PS said...

आप तो लेखिका-वेखिका टाइप जीव लग रही हैं जी..

Anonymous said...

:) Nice title.. Uskake jane ke bad koi dhoop nahi :D


its my favorite song

pallavi trivedi said...

aapko padhna hamesha mujhe achcha lagta hai....is baar bhi wahi jaadu hai.