11/23/2009

शेक्सपियर ऐंड कम्पनी

इस जगह को देख कर सबसे पहले इच्छा होती है कुछ दिन यहाँ रहा जाय । सचमुच रहा जा सकता है अगर आप लेखक हैं और दुकान की मालकिन सिल्विया को आपकी शकल और आपकी लिखाई पसंद आ जाये । सैंतीस रू दला बूशेरी पर स्थित ये शेक्सपियर ऐंड कम्पनी है । लैटिन क्वार्टर्स में सोर्बॉन वाला इलाका । सेन नदी के किनारे साँ मिशेल के ठीक बगल में, नात्र दाम के सामने । दुकान के दरवाज़े पर एक बड़े ब्लैकबोर्ड पर सफेद चॉक से लिखा है ..

" कुछ लोग मुझे लैटिन क्वार्टर्स का डॉन किहोते कहते हैं , इसलिये कि मेरा दिमाग कल्पनाओं के ऐसे बादल में रमा रहता है जहाँ से मुझे सब बहिश्त के फरिश्ते नज़र आते हैं और बनिस्पत कि मैं एक बोनाफाईड किताब बेचने वाला रहूँ , मैं एक कुंठित उपन्यासकार बन जाता हूँ । इस दुकान में कमरे किसी किताब के अध्याय की तरह हैं और ये तथ्य है कि तॉलस्ताय और दॉस्तोवस्की मुझे मेरे पड़ोसियों से ज़्यादा अज़ीज़ हैं .."

कुछ पागलपने की मज़ेदार सनक वाली बात है । कहते हैं जॉर्ज विटमैन ने कई साल दक्षिण अमेरिका में घुमक्कड़ी करते बिताया । उन दिनों की शानदार दिलदार मेहमाननवाज़ी की याद में जब उन्होंने ये किताबघर शुरु की , इसे एक आसारा बनाया नये लेखकों , कलाकारों के लिये। कहते हैं , एक बार फिर , कि पचास हज़ार लोगों ने रातें शेक्सपियर में बिताई हैं , उसके मशहूर तकिये पर अपना सर रखा है । हेनरी मिलर , आने निन , गिंसबर्ग , डरेल ने विटमैन के साथ चाय और पैंनकेक साझा किया है । ये भी संभव है कि जब आप किताबों को पलट रहे हों , शायद लेखक के ह्स्ताक्षर कहीं आपको दिख जायें ।

पुरानी शहतीरों पर टिकी छत , लकड़ी की तीखे स्टेप्स वाली सीढ़ी , किताबें अटी ठँसी हुई , बेंचों के नीचे , सीढियों के बगल में , रैक्स पर , फर्श पर ..सब तरफ । कुछ वैसा ही एहसास जैसे आप लेखकों से वाकई मिल रहे हों ..कुछ उनकी दुनिया छू रहे हों ।

मैंने बताया उन्हें , मैं भी लेखक हूँ , हिन्दी में लिखती हूँ , शायद क्या पता कभी अगली दफा आने का मौका हो तो ... उन्होंने कहा आने के पहले बात ज़रूर करिये अगर जगह होगी ..क्यों नहीं । सचमुच क्यों नहीं ..किसी ऐसी दुनिया में खुलने वाली खिड़की हो ..क्यों नहीं




शेक्सपियर महाशय कैसे ताक रहे हैं अचंभित खुशी से । स्ट्रैट फोर्ड से निकल कर पेरिस की गलियाँ





ये पहली मंजिल पर वो कमरा है जहाँ स्लीपींग बैग बिछाकर सोया जा सकता है । कमरे में एक काउच है , एक प्यानो है और ढेर सारी किताबें है , किताबों की पुरानी गँधाई महक है , ज़रा सा पागल कर देने वाली ..


बाहर एक तरफ अंटीक्वेरियन , दूसरी तरफ मुख्य दुकान , रंगीन बेंच और मोटी किताबें । धूप में बैठ कर ठीक अंदर जाने के पहले का मज़ा , थोड़ी उमगती उत्तेजना कि जाने अंदर क्या क्या होगा ..खुशी को कुछ देर स्थगित कर थोड़ा मज़ा बढ़ा लेने वाला बचकाना खेल ही सही


किताबें ही किताबें , पुरानी शहतीर देख रहे हैं आप ?




रीडिंग रूम ..यहाँ रीडिंग सेशंस होते हैं , खिड़की से रौशनी , धूप , बाहर गलियों से आवाज़ें , किताबों के बीच लकड़ी के बेंच पर बदरंग कुशंस ..छत तक किताबें , सुंदर नकाशीदार मेज़..

11/01/2009

परती परिकथा

उनके बीच उल्लास खत्म हो गया है । बावज़ूद, वो अब भी किसी मोह में डूबे बात करते हैं । चौंक चौंक कर हड़बड़ा कर किसी आवेग में एक दूसरे को तलाशते हैं । लेकिन बात शुरु करते ही , पहला शब्द बोलते ही लगता है , ओह क्या बात कहनी थी ? जेब में रेज़गारी टटोलने जैसी जुगत से बात खोजते हैं फिर दो वाक्य के बाद ही लगता है ये तो पहले की जा चुकी थी । फिर अटपटा कर , लम्बे मौन में जहाँ सिर्फ एक दूसरे की साँस सुनी जाती हो . एक लम्बी उसाँस भरकर कहते हैं , कई बार बिलकुल एक साथ ..अच्छा फिर करते हैं बात । फिर किसी अजनबी के साथ हँसी बाँटने जैसा महसूस करते हुये अलग निकल जाते हैं ।

(पिछले दिनों की रंग रंगाई )