10/24/2005

वो तुम थे क्या ??

मैंने देखा था

रेलगाडी की खिडकी से

रात के गहराते निविड अँधकार में

दूर बियाबान जंगल में

एक रौशनी टिमटिमाती थी



कौन होगा उस अकेले सुनसान घर में

तन्हाई के बेलों से लिपटे दर में



कहीं वो तुम थे क्या ??



अँधेरे की चादर को हटा कर

देखूँ जरा

उस सूने घर की खिडकी से

झाँकू जरा



पर जब तक मैं हाथ

आगे बढाती

उँगलियों से पर्दे को

जरा सा हटाती

उस निमिष मात्र में

गाडी बढ गयी आगे

कहीं जो पीछे छूटा

वो तुम थे क्या ??

प्रत्यक्षा