7/28/2005

शब्दों की बाजीगरी........

मेहरबान कद्रदान !
आईये इधर आईये साहबान
आज मैं दिखाऊँ आपको ,शब्दों की बाजीगरी........

ये देखिये..इन पिटारियों में कैद हैं शब्द्...आप कौन से देखना पसंद करेंगे ?
मीठी चाशनी में पगे या जलते अँगारों से दहकते शब्द ?
फूलों के रंगों से खिले या शाम की ज़र्द उदासी में रंगे....

हाज़रीन ! आप किसका खेल देखना पसंद करेंगे ?
यह देखिये....इन शब्दों को..जो बडे नाज़ुक , मीठे से हैं..इनकी रेखायें साफ नहीं हैं...ये बच्चों के तुतलाते शब्द हैं..प्यार के रस में भीगे, खूबसूरत तितलियों जैसे..फूल फूल पर उडते.....
मैने बडी आसानी से पकडा था इन्हें, बस आँखें बंद की थीं, इनके नाज़ुक पँख मेरे चेहरे के इर्द गिर्द फडफडाये थे..मैने मुलयमियत से इन्हे पकड लिया था......
पर मेहरबानो इन्हें पकडना आसान है, रखना नही..इसके लिये दिल में प्यार होना चाहिये वर्ना यह मुरझा जाते हैं.
पर देखिये जनाब.....मेरे शब्द कितने रंगीन, कितने हसीन, कितने दिलकश हैं...

पर क्या कहा जनाब ?
आपको ये पसंद नहीं हैं ? मेरे पास और भी हैं, जाईये मत ! देखिये तो सही !!
इन्हे देखिये, ये नटखट बच्चों से शब्द हैं.....मैं चाहता कुछ और हूँ ये कहते कुछ और हैं.....
मैं मात्राओं को कान पकड कर खींचता हूँ..एक कतार में लगाने के लिये , पर ये एक दूसरे पर गिरते पडते, हँसते खिलखिलाते कतार तोड देते हैं..
बडी मुश्किल से खींचतान करके एक वाक्य में पिरोता हूँ, पर अंतिम मात्रा लगते ही , सैनिकों की तरह परेड करते ये निकल जाते हैं बाहर...मेरी सोच के दायरे से..
बडी मशक्कत की, तब काबू में आये हैं..डाँट खाये बच्चों की तरह सर झुकाये खडे हैं

अब आप ही बतायें साहबान , हैं न ये नटखट शैतान शब्द्......शर्त बदता हूँ....मौसम बे मौसम ये आपके चेहरे पर मुस्कान ला देंगे.......
पर क्या कहा आपने ? आप खुश नहीं होना चाहते अभी ?
आपके ख्याल में दुनिया बडी बेडौल है ? सही फरमाया आपने जनाब!
पर इसका भी इलाज है मेरे पास..
और भी शब्द हैं न मेरे पास...
इन्हें भी देखते जाईये.......
इन्हे देखिये..ये खून से रंगे शब्द हैं..विद्रोह के......ये तेज़ धार कटार हैं….
संभलिये..वरना चीर कर रख देंगे....बडी घात लगाकर पकडा है इन्हे...कई दिन और कई रात लगे, साँस थामकर, जंगलों में, पहाडों पर , घाटियों में, शहरों में पीछा करके ,पकड में आये हैं..पर अब देखें मेरे काबू में हैं.....
बीन बजाऊँगा और ये साँप की तरह झूमकर बाहर आ जायेंगे..ये हैं बहुत खतरनाक, एक बार बाहर आ गये तो वापस अंदर डालना बहुत मुश्किल है....
ये क्रांति ला दें, विस्फोट कर दें, दुनिया उलट पुलट हो जाये..ये बाढ की तरह सब अपने चपेट में ले लें…….क्या कहते हैं जनाब ! ये कुछ ज्यादा धारदार हो गये.........आप डर तो नहीं गये, मत घबडाइये, अभी तो पिटारी में बंद हैं, मुँह गोते बैठे हैं..जब कद्रदान मिलें, तब इन्हे बाहर निकालूँगा
अभी सोते हैं, तब इन्हे जगाऊँगा..
आईये आईये आईये...मेहरबान कद्र्दान...आईये आईये......!!!

7/19/2005

खामोशी का सुकून

बातें दहकते अंगारे
लाल उडहुल के फूल
डामर की सडक पर
धूप की किरचें
चारों ओर
बस शोर ही शोर

पर मुझे
इनसे परेशानी नही
परेशानी तो तब होती है
जब सही, गलत हो जाता है
सफेद काला हो जाता है

तब अंदर का अंतर्नाद
बाँध तोड बह जाता है
चीखें तेज़ कटार, छाती में
उतर जाती हैं..
चीते की छलांग लगाकर
शोर के खुँखार पँजों में
दबोच लेती हैं

तब मैं बेचैन हो जाती हूँ
साँझ की तनहाई का इंतज़ार करती हूँ
एहतियात से रखे..खामोशी के सफेद चादर
को बिछा देती हूँ..तब बिस्तरे पर
इसके हरेक फंदे को बुना है मैंने
सुकून के धागे से
टाँके हैं खुश्बुओं के फूल इनपर

आँखें मून्दे लेट जाती हूँ
चारों ओर से लपेट लेती हूँ
समन्दर की लहरें लौट जाती हैं वापस
ये सुकून की खामोशी है
या खामोशी का सुकून ??

7/08/2005

इक नूर बरसता है

इक नूर बरसता है
चेहरे पे क्यों हरदम
इसका कुछ तो सबाब
मुझको भी जाता है यकीनन

7/04/2005

अचानक

अचानक
मैं बेसाख्ता यूँ ही
हँस देती हूँ
शायद
तुम भी कहीं मुझे याद कर
हँस रहे होगे