बंदरगाह से जहाजों के छूटने का साईरन बजता था , मोटा भारी कर्कश बुलंद , रात की पनियायी मटमैली रौशनी को एक पल को तोड़ता हुआ । जैसे ऐतिहासिक फिल्मों में किले की दीवार को तोड़ने के लिये कोई भारी बड़ा लौहखंभ । एक कतार से लंगर लगे जहाजों की गोल खिड़कियों से रौशनी छन कर नीचे पानी के छोटे छोटे लहरों में रेखा बनाती हिलती डुलती विलीन होती थी । कुछ हिस्सा तट पर , मोटे रस्सियों और लोहे के जंग खाये लंगरों से फिसलता धीमे से एक सर्द गीली आह लिये बैठ जाता । सब तरफ पानी की सीली महक , एक अजीब खास सी महक , जैसे सबकुछ ठहरा रुका जड़ हो। बीच समन्दर के पानी के महक से एकदम अलहदा । कुछ कुछ खून के महक जैसा , थोड़ा लोहराईन । इस तरफ एक अलग गमक की दुनिया थी । छोटी जगहों में कई आदमियों के रहने की , उनके पसीने की , उनके साँसों की खट्टी महक , उबले आलू और माँस की महक , जो जहाजों की रसोई में बड़े कड़ाहों में जहाजियों के लिये पकता , तट तक आ पहुँचता । कुछेक भूखे पेट अधनंगे भिखमंगे आह से पानी में हिलते उन रौशन खिड़कियों की तरफ उदास आँखों से देखते । पिछली गलियों में बजबजाता कूड़ेदान कुछ और तरीके की बू फेंकता , ऐसा कि पास आने पर दिमाग चकरा जाये ।
बंदरगाह की पिछली भूलभुलैया गलियों से संगीत की लहरी हवा के साथ पानी तक आ पहुँचती । पियक्कड़ जहाजियों का कान फोड़ू उधम , किसी बेलीडांसर की कमर की बलखाती बिजलियाँ , बार की रंगीन रौशनी ..सब के पीछे सबके परे ,किसी और गली में , किसी तंगहाल कोठरी में कोई औरत बैठी तस्बीह के मनके उँगलियों से गिनती बुदबुदाती है । कोई जवान औरत रंगीन फूलदार कपड़े पहने एक पल को ठठाकर हँसती फिर अचक्के गुम हो जाती है । आँख के कोरों पर एक बून्द आँसू झलमला जाता है । सामने पपड़ियाये पीले दीवार पर तस्वीर में सजा नौजवान सेलर कैप पहने हँसता है । गली के बाहर अचानक कुत्ते बेतहाशा भूँकते हैं । अफीम के पिनक में ढुलका आदमी ज़रा चौंक कर कुत्तों को देखता है फिर आस्तीन से मुँह पोछता गुनगुनाता है कोई गीत अपनी प्रेमिका के याद में । दुख से उसकी छाती दरकती है ..बट ऐंट नो सनशाईन व्हेन शी इज़ गॉन ...
भोर होने के ठीक पहले जहाज , इंजिन की तेज़ गड़गड़ाती आवाज़ के शोर के साथ खुले समन्दर की तरफ बढ़ निकलता है । लाल टमाटरी गाल वाले दढ़ियल कप्तान को बोसन बताता है , हाजिरी रजिस्टर बढ़ाते ..एक आदमी कम है ।
फताड़ू के नबारुण
1 month ago
7 comments:
बट ऐंट नो सनशाईन व्हेन शी इज़ गॉन ...
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आपने महकों के भी चित्र उभार दिये…
भावपूर्ण ,शब्दों का जादू यहाँ भी बिखरा है !
फ़िर वही लफ्जों का ताना बाना...फ़िर वही जादूगरी....
आप तो लेखिका-वेखिका टाइप जीव लग रही हैं जी..
:) Nice title.. Uskake jane ke bad koi dhoop nahi :D
its my favorite song
aapko padhna hamesha mujhe achcha lagta hai....is baar bhi wahi jaadu hai.
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