3/24/2011

किसी दिन कोई गीत

माँ की आवाज़ भारी चमकदार थी । उसमें खनक और वज़न था । पानी की गहराईयों से गिरता फिर अचानक अनायास किसी पंछी के परों सा हल्का होता आसमान तक उठ सकता था । मेरी आवाज़ जबकि पानी के तल पर डूबा पत्थर थी । लहरों के थपेड़े से ज़रा सा उतराता हिलता फिर थरथरा कर अपनी जगह बैठ जाता स्वर था । माँ जब बोलतीं उनकी आवाज़ दस कमरों के पार तक घूम आती । जाड़े की सर्द तेज़ी से लेकर गर्मी के ताप की धमक वो लेकर चलती । मेरी आवाज़ तेज़ बारिश में नहाया झमाया नन्हा पौधा थी । धीमे अँधेरे में खुद को सुनता चुपाता ।

माँ कहानियाँ कहतीं और बहुत हँसती । लेकिन तब कोई और ज़माना था । माँ अब कहानियाँ नहीं कहतीं । माँ अब अपने दुख गुनती हैं । मैं चुप सुनती हूँ । कई बार थक जाती हूँ फिर ग्लानि होती है । मेरी कहानियाँ माँ की कहानियों की प्रतिध्वनि होती हैं , कई बार । मेरी स्मृतियाँ माँ की विलुप्त स्मृतियाँ हैं । माँ जो भूल गई हैं , वो सब मैंने सहेज रखा है । माँ बाज़ दफा सिरे से मेरी स्मृति को खारिज़ करती हैं । मेरे ज़ोर देने पर नाराज़ हो जाती हैं , कहती हैं , तुम्हें क्या लगता है तुम ऐसे मुझे झुठला दोगी । फिर घड़ी दो घड़ी बाद बच्चे से भोलेपन से कहती हैं , मुझे सब याद है , मैं कुछ भी नहीं भूली । और अपनी बात को साबित करने ऐसी बहुत सी बातें कहतीं हैं जिन्हें सुनना मेरे लिये एम्बैरेसिंग होता है , मसलन बचपन की मेरी बहुत सारी बेवकूफियाँ |

लेकिन माँ जब गुनगुनाती हैं ,किसी गुज़रे समय की चाप अब भी सुनाई देती है । उनके गले में सुर झाँकता भागता दिखता है । उनकी आवाज़ थरथराते काँपते रस्सी पर सँभल सँभल कर पाँव जमाना होता है । पानी के विशाल कुँड में पँजे की पहली उँगली डुबाने जैसा । मैं सबसे कहती हूँ , माँ बहुत सुंदर गाती थीं । माँ बहुत सुंदर गाती हैं । माँ की आवाज़ पतली सुरीली नहीं है । माँ की आवाज़ गमकदार पाटदार है । उसके तान में बहुत लोच और पेंचदार मुरकियाँ हैं । उनके गुनगुनाने में झीसी में खड़े भीगने का सुख है और जब वो अपनी आवाज़ को खोल देंगी जैसा तब किया करती थीं , तब किसी प्रपात की तेज़ी के नीचे खड़े उसकी तेज़ी और प्रचंडता को महसूस करने का अनुभव है ।

माँ अब भूली सी गाती , चुप हो जाती हैं । मैं अकेले कमरे मे अपनी आवाज़ को खोलती हूँ , एक एक गाँठ , एक एक बन्द और एक एक रेशा । उसमें एक तत्व उनकी आवाज़ का है , एक शायद पिता का जो कहते थे , मेरी आवाज़ में पिच नहीं है  , बेस नहीं है । और एक मेरा खुद का । मैं गाना चाहती हूँ , माँ की तरह नहीं , अपनी तरह , उल्लास में , दर्द में , तकलीफ में । पीछे से मेरी बेटी गाती है , राग ख़माज ।