उन लड़कियों ने बाथरूम के शीशे तक
रंग डाले थे
चौकोर टुकड़े धानी और नीले
और समन्दर का गहरा हरा नीला पानी
फैले रेत का सुनहरापन और
लहराते नारियल के पेड़
पानी का झाग और
धुँध में धुँधलाता
कोई पानी का जहाज़
फिर वो कमरे की दीवारों तक आईं
वहाँ उन्होंने बनाया
जंगल
घना डरावना नहीं
खुशनुमा सुकूनदेह
जहाँ आसमान से पत्तियों तक
रौशनी छनती थी
ज़मीन पर
छोटे नन्हे फूल खिलते थे
फिर बाहरी कमरों की बारी आई
फिर दरवाज़ों की
जहाँ घुड़सवार सफेद अरबी घोड़ों पर
चुस्त मुस्तैद
परचम लहराते
धूल उड़ाते जाने कहाँ
किस नई दुनिया की खोज में
कूच करते
इस तरह उन लड़कियों ने
पूरा जहान रंग डाला
एक सफर कर डाला
पूरी दुनिया देख डाली
पर उनके रंग
अब भी बाकी थे
कुछ ठहर कर
उन्होंने अब रंगना शुरु किया
अपना मन
और पाया कि
चाहे कितनी मन मर्जी
कूची चला लें
कैसे भी शोख रंग चुन लें
पीले पड़े चेहरों पर
बिना आँख़ नाक होंठ वाले चेहरों पर
वो सिर्फ एक रंग डाल सकीं थी
लाल बिन्दी
सिर्फ बिन्दी
उस पीले चेहरे पर
बस और कुछ नहीं
और अंत में
थकहार कर
उन्होंने लिखा
रेड इज़ डेंजर !
और कहा
ये सफर यहीं समाप्त होता है
फताड़ू के नबारुण
1 month ago
10 comments:
बहुत अच्छा प्रत्यक्षा जी और आखिरी बात में तो जो बात है वह किसी बात में नहीं बहुत अच्छा लगा
लिखते रहो ताकि हम ऐसी ही अच्छी अच्छी रेड इज डेंजर पढते रहें
अच्छी कविता है.
हमारा लाल सलाम.....
बहुत खूब!
कमाल है, आप अच्छा लिख रही हैं।
आपकी रचनाएं अच्छी हैं, लिखते रहें।
" RED , indeed is Dangerous " ....
.may your imagination always paint such pictures with many hues Pratyaksha -
warm Rgds,
L
अच्छी लगी...
काल्पनिक संसार में यथार्थ को बहुत खूबसूरती से बुनती हो।
सही है...
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