मेज़ पर फ्रेम्ड फोटो में एक लड़का एक लड़की कैमरे की तरफ देखते हँस रहे हैं । कैमरा भी शायद उस पल हँसा होगा क्योंकि तस्वीर उम्र के साथ पीली पड़ने के बावज़ूद एक खुशी की छटा बिखेरती है , अब तक भी , खिले उजले धूप सी खुशी । उस पल को फ्रीज़ करती हुई । कहाँ है अब वो खुशी ? मुट्ठी में बन्द पसीजा हुआ चुकता हुआ , जो था । अब नहीं है ?
तुम मुझे कितना सुख देना चाहते हो ? लड़की भोलेपन से पूछती ।
मैं तुम्हें सपना देना चाहता हूँ और तुम सुख की बात करती हो ? लड़के की आवाज़ में एक बेचैनी है ।
लड़की थोड़ी हैरान है । ये कौन सी भाषा बोलता है ।इसके सुर इतने अलग क्यों हैं ?
फिर तुम मुझे सपना ही दो । जो दे सकते हो वही तो दोगे । और जो जितना दोगे वही उतना ही तो लूँगी ।
तुम कैसी अजीब बात क्यों कहती हो ? लड़का बेचैन है । लड़की अपने दुख तकलीफ को लेकर अपनी माँद में घुस जाती है ।
तुम मेरे लिये क्या करतीं रही आज ? लड़का पूछता है ।
लड़की कल की बात से नाराज़ , कुछ भी नहीं किया तुम्हारे लिये।
ठीक है । लड़का झटके से फोन रख देता है ।
फिर हफ्ते महीने बीत जाते हैं बात किये ,मिले हुये । लड़की पता नहीं क्या सुनना चाहती है ।लड़का पता नहीं क्या कहना चाहता है । उनके शब्द एक दूसरे को बिना छूये निकल जाते हैं । बीच की कोई हवा है जो बहती नहीं ।
लड़की कभी कुछ सीखती नहीं । उसे रूल्ज़ ऑफ द गेम नहीं मालूम ।
तुम्हें पता है शतरंज में हाथी प्यादा वज़ीर कितनी चाल चलते हैं ? ब्रिज कैसे खेला जाता है ?
मुझे तो मोनोपॉली तक खेलना आता नहीं । लड़की अबकी बार हँसती है । फिर सोचती है सच मुझे तो किसी भी खेल के कायदे कानून नहीं मालूम ।
तुम रूल्ज़ तय करो और मैं सिर्फ फौलो ? ऐसा क्यों ?
ऐसा इसलिये कि ये खेल ज़रूरत का है । जिसकी ज़्यादा है वही फौलो करेगा न ।
फिर लड़की की समझ में पहला नियम साफ साफ आ जाता है । ठीक ! और वो अपनी ज़रूरत कम करने में जुट जाती है ।
आर यू डम्पिंग मी ? लड़का हैरान दुखी है । व्हाई ?
लड़की कहती है , मैंने नियम बदल दिये इसलिये ?
बसाल्ट पत्थरों पर समुद्र की लहरें सर पटक रही हैं अनवरत । पर्यटकों का झुँड कॉरिक रोप ब्रिज पर ठंड से सिहरता तस्वीरें खींच रहा है । बेलफास्ट के किसी पब के बाहर भूरी लाल दाढ़ी वाला गायक कोई बैलड गा रहा है किसी प्राचीन डुयेल की , किसी अनरेक़्विटेड प्रेम की । औरत , काले टोपी और लम्बे नीले ओवरकोट में , पुरुष की बाँहे थाम लेती है । उसके कँधे से सिर टिका देती है । पुरुष बेसब्र हो कहता है , चलें अब ? औरत सुनना चाहती है गीत इस ठंड भरे शुरुआती दोपहर में , रुकना चाहती है कुछ देर और । खेल के नियम अभी उसे सीखना बाकी है । अभी तो पूरा खेल ही बाकी है ।
कॉबल्ड स्ट्रीट में पत्थरों पर से ठंड धूँये सी उठती है ,छूती है औरत के सर्द गालों को । लकड़ी के बेंच पर अपने बदन को सिकोड़ता लाल चेहरे वाला बूढ़ा जलाता है पाईप , उसकी उँगलियाँ थरथराती हैं पल को माचिस की फक्क से चमकती तीली के साथ । कुहासे में क्षण भर को रौशनी का बस एक गर्म गोला !
फताड़ू के नबारुण
1 month ago
4 comments:
आपका लिखा न जाने कब तक और कितनी देर तक मन मे डोलता रहता है……ये गेम भी अच्छा है ।
यह खेल इंटरेस्टिंग और रूल भी... जब खेल मनमाफिक ना हो, तो रूल्स बदलने का रूल भी इंटरेस्टिंग ... नास्टी अगेन.
कल रात बर्फ पड़ी थी..... फाईन्ल्स सर पर हैं .....फ़िर भी पब में भीड़ है.....देखता हूँ जो लाल दाढी वाला बाहर जिप्सी इन्स्त्रुमेंट बजा कर पैसे इकट्ठे कर रहा था.... वो भी बैठा है...उसकी ड्रिंक मुझसे महंगी है... साथ में एक लड़की भी है...सोचता हूँ क्या उस लड़की को मालूम होगा वह पैसे कैसे लाता है....जानता हूँ उसे मालूम होगा.... ये कैसे रूल्स हैं गेम के ( मैंने भी कुछ सेंट्स दिए थे, उस दढियल को :( )...... लड़की उड़ती निगाहों से मुझे देखती है, मुस्कुरा देती है....लड़का अपनी ड्रिंक उठा कर अभिवादन करता है....मैं मुस्कुराने की कोशिश करता हुआ सिगरेट सुलगाने इस ठंड में बाहर निकल पड़ता हूँ....
जब तक आप जीतते रहते हैं.....इस गेम का कोई रूल नहीं है.....जब आप हार जाएँ तो फिर सोचें की कहाँ रूल तोड़ा...
ओह, व्हेयर इज़ बेलफास्ट.. आई वॉंट टू गेट अवे, प्लीज़?
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