6/22/2007

आखिर गर्मी को कैसे मारा जाय

कुछ नंगधडंग बच्चे ,कमर पर सिर्फ एक काला धागा पहने , पानी में छपाक से कूदने के बस पल भर पहले के आश्चर्य मिश्रित आहलाद से कैसा तो चमकता चेहरा , पानी की अनगिनत बून्दें , कुछ कैमरे के शीशे पर चपटे होकर अस्तित्व खोते हुये , कुछ कुछ ज़मीन से कितने तो फीट ऊपर से कूदते पैराट्रूपर्स की सी बहादुरी और थोडा सा वो भाव कि अब तो ये हमारे बायें हाथ का खेल है , गर्मी को एक झटके से मात दे देने का विजय भाव , क्या क्या नहीं दिखा इस तस्वीर में । अखबार के पीले कागज़ पर चमकते चेहरों की ऐसी तस्वीर ।

बीटिंग द हीट जैसा कुछ कैप्शन वाली ऐसी तस्वीरें हर गर्मी में छप जाती हैं और आप याद कर लेते हैं बचपन की , गाँव घर में , किसी तालाब पोखर में ऐसे ही झपाटे से कूद कर डुबकी मार लेने की कहानी , अपनी नहीं तो किसी और की भी चलेगी ।पर अब गर्मी को कैसे तो मारा जाय । किस तालाब पोखर की तलाश की जाय ,किस वाटर किंगडम की झूठी लहरों में लहराया जाय । गोआ और कोवलम , पुरी और दीघा , किस तट पर रेत और सागर के खारे पानी में बदन टैन किया जाय । आखिर कैसे गर्मी को मारा जाय ।

पुराना किला के पास रंगबिरंगे पैडल बोट्स पर जोडे , परिवार, बच्चों की किलकिल खिलखिल , किनारे सडक की गुमटी पर मूंग की बडियाँ और प्याज़ की पकौडी , आह ! कैसी तेज़ तीखी मिर्च की बहती हुई चटनी के साथ , जीभ पर सिसकारी और पसीने की बहती धार , कनपटी से होकर । घमौरियों की चुभन पीठ पर ,पसीने के धार में बही पॉंडस ड्रीमफ्लावर टॉल्क की मीठी खुशबू ।

मॉल में विचरते ,एसी की कूल हवा , ट्रिपल सनडे और आईस्ड सोडा , स्पैगेटी टॉप और बरमूडास , पापा , माँ और बच्चा , सब एक समान । काले चश्मे के पीछे किसी विदेशी परफ्यूम की महक से इतराते इठलाते स्ट्रीक्ड बालों वाली , सुडौल बाँहों वाली , सुबुक टखनों वाली लडकियाँ , बरिस्ता में मोका और लाते और अईरिश कॉफी अदा से सिप करते सफेद पोनीटेल और दाढी वाले बुज़ुर्ग ,साथ में लडकों से कटे छोटे सफेद बालों वाली , ओह कैसी ग्रेसफुल महिला ।और वो छोटी सी लडकी , कमर तक लम्बे बाल , बालों में तितलियाँ , छोटे से शॉर्ट्स और पतले से नाज़ुक पैर , गालों पर कैंडी के निशान , हाथ में कस के पकडा , आईसक्रीम कोन ,आधे से ज़्यादा बहता पिघलता हुआ , कलाई से लेकर कुहनी तक धार बनाता हुआ ।

और आखिर में बचपन के किसी सुदूर जगह और समय में किसी अमराई में , इतनी घनी छाँह कि धूप भी छुप जाये । किसी तालाब के टूटे फूटे किनारे से दूर , सूखी हरी घास पर बिछाई चादर पर पिकनिक के बाद की , कतार में चलते चीटों की बारात , सूखी मुरमुरी पत्तों की चरमराहट के बीच थोडी सी जतन से चुराई मीठी अलस्त झपकी । आखिर गर्मी को कैसे मारा जाय ।

11 comments:

Avinash Das said...

नहीं मार सकतीं! सबके मरने का अपना वक़्त होता है। गर्मी का भी! जैसे जीने का, जीवन का होता है।... लेकिन हमेशा की तरह आपने अच्‍छा लिखा है।

Anonymous said...

बरिस्ता में मोका और लाते और अईरिश कॉफी अदा से सिप करते सफेद पोनीटेल और दाढी वाले बुज़ुर्ग
बरिस्ता में आईरिश कॉफी नहीं मिलती, वह कैफे कॉफी डे में मिलती है "आईरिश ब्लैक" के नाम से!! ;)

Reetesh Gupta said...

आपकी लेखन शैली पसंद आई...बधाई

Anonymous said...

वेरी नास्टेलजिक...
:)
पिछले एक और लेख में आप ऐसे ही यादों की गलियों में छोड गईं थीं...

Sanjeet Tripathi said...

शानदार!!
एक हम हैं जो यादों से उबरने की कोशिश में लगे रहते हैं अउर एक आप हैं जो बार बार यादों के गलियारे में ला पटकती हैं!

एक बहाव सा है आपके लेखन में, शुरु किजिए पढ़ना और बस पढ़ते जाइए!

मसिजीवी said...

तो आपने तो लगता है तय कर लिया कि आप लकीर के किस ओर हैं दिक्‍कत हमारी है हम टाईम व स्‍पेस की लिहाज से ये बरिस्‍ता बगैरह के आस पास हैं पर दिमाग व पढ़ेती ससुर अमराई वाली है जहॉं न कभी गए नए लुका-छिपी खेले...लटका दिया न बीच में।

और हॉं शहराती पंगे ले लिए अमित से...आपने चिट्ठामीट वाले हमारे विवरण पर ध्‍यान नहीं दिया...ये अईरिश कॉफी अमित की खासमखास उसे इधर उधर नहीं ही करना था :)

फिर अच्‍छा लिखा।

Anonymous said...

और हॉं शहराती पंगे ले लिए अमित से...आपने चिट्ठामीट वाले हमारे विवरण पर ध्‍यान नहीं दिया...ये अईरिश कॉफी अमित की खासमखास उसे इधर उधर नहीं ही करना था :)

वैसे अपनी खासमखास तो कैफे कॉफी डे में मिलने वाली "कोलम्बियन क्वेस्ट" है, लेकिन "आईरिश ब्लैक" उन तीन कॉफियों में से एक है जो मुझे पसंद हैं! ;)

अफ़लातून said...

कल बिटिया अौर पत्नी के साथ पहली बार शहर के पहले मल्टीपलेकस मेँ गया, इसलिये महसूस कर सकता हूँ , आपकी आजकी पोस्ट |

Anonymous said...

Sujhaav:
Aglee posts ke titles rakhein===(1) AAKHIR kab tak naheen rukegaa yuvaaon mein badhata paagalpan? (2) AAKHIR kahaan se aayegee wo samajh jo sabko shaant kar degi?
(3) AAKHIR main hee kyon sar khujaaoon?
(4) AAKHIR aap yeh sab padhte kyo jaa rahe ho?
.......aur bhee dekhne hon to suchit kare.

Anonymous said...

Sujhaav:
Aglee posts ke titles rakhein===(1) AAKHIR kab tak naheen rukegaa yuvaaon mein badhata paagalpan? (2) AAKHIR kahaan se aayegee wo samajh jo sabko shaant kar degi?
(3) AAKHIR main hee kyon sar khujaaoon?
(4) AAKHIR aap yeh sab padhte kyo jaa rahe ho?
.......aur bhee dekhne hon to suchit kare.

अनूप शुक्ल said...

जब गर्मी खतम होने वाली है तब उसका संहार करने का उपक्रम! :)