6/19/2007

आखिर है किस चीज़ की तलाश आपको ?

बचपन से लेकर बडे होते होते हम कितने लोगों से मिलते हैं , बातें करते हैं , कुछ स्नेह सौहाद्र के दायरे खींचते हैं , कुछ घृणा और नफरत के चौखुटे में भी बँधते हैं , कहीं कहीं बिलकुल निस्पृह भी हो जाते हैं । घर में , दोस्तों के बीच , दफ्तर में , रिश्तेदारियों की भीड में , परिचितों के झुँड में और अब इस आभासी दुनिया के अनहोनेपने में भी हम कहाँ कहाँ क्या क्या तलाशते हैं ये कई बार हमसे भी छूट छूट जाता है । सही पकड में कहाँ आता है ।


किसी की कोई बात ऐसे छू जाती है , गज़ब ! ऐसा ही कुछ मुँह से निकल जाता है ।कोई और ठीक आप जो सोच रहे थे उसको आप से भी बेहतर , और आप ये मन ही मन मान भी जाते हैं , कह डालता है और आप चकित हो जाते हैं । किसी और ने आपकी बरसों पहले पढी किताब की कोई पंक्ति ऐसे याद दिलाई होती है कि आपकी आँखों के आगे पुराने फीके बदरंग सीपिया रंगों के ,बक्से में बन्द तस्वीरों की , कतार की कतार , कौंध जाती है । ऐसे कि पल भर को साँस हक्का बक्का रह जाती है । कोई ऑरकेस्ट्रा का ऐसा टुकडा , किसी गीत का भूला हुआ मुखडा , कोई राग शिवमत भैरव , कहाँ किस चीज़ की तलाश है आपको ?


कौन सा रेज़ोनेंस खोजते हैं आप ? कौन सी सिम्फनी , कौन सा छूटा हुआ तार सितार , कौन से बुलबुले की मीठी झाग ? कैसे राग ,कैसे रंग ? आखिर है किस चीज़ की तलाश आपको ?

11 comments:

Anonymous said...

सही व्यक्त किया । हम resonence तो पाने पर प्रसन्न होते हैं।कौन सा resonence ? यह जानना क्या जरूरी होता है?

Anonymous said...

तलाश तो है। किसकी? यह पता नहीं, पता करने की कोशिश जारी है, शायद तभी मिले, या हो सकता है मिलने पर पता चले कि किसकी तलाश है! :)

Udan Tashtari said...

अनेकों भटकन हैं..एक मिले तो दूसरी की तलाश. क्या यह एक अनवरत सिलसिला नहीं है?

राकेश खंडेलवाल said...

नयनों की भटकन को मिलता अगर कहीं भी कोई ठिकाना
तो निश्चित, संभव न होता अभिलाषा के नग्मे गाना

v9y said...

सदियों पहले मेरी एक पर्सनल वेबसाइट हुआ करती थी (जैसे आजकल हर किसी का ब्लॉग होता है, उन दिनों "पर्सनल होमपेज़ों" का चलन था), उसके शीर्षक पर मैंने ऑस्कर वाइल्ड की कुछ पंक्तियाँ डाली थीं. ये पंक्तियाँ आपकी इस बात को पुख़्ता करती थीं कि "कोई और ठीक आप जो सोच रहे थे उसको आप से भी बेहतर कह डालता है और आप चकित हो जाते हैं". आपकी बात पढ़कर वो याद आ गईं. बिना अनुवाद के प्रस्तुत हैं.

"Life is not governed by will or intention. Life is a question of nerves, and fibres, and slowly built up cells in which thought hides itself and passion has its dreams. A chance tone of colour in a room, or a morning sky, a particular perfume that you had once loved and that brings subtle memories with it, a line from a forgotten poem that you had come across again, a cadence from a piece of music that you had ceased to play - it is on things like these our life depends."
- OSCAR WILDE

Anonymous said...

हमें आपकी अगली पोस्ट की तलाश है!

ePandit said...

अगर यही पता लग गया तो इंसान की जिंदगी के मायने क्या रहेंगे।

Arun Arora said...

आपकी बात का १००% समर्थन.मुझे गीत याद आ रह है बाकी वो कह देगा
" कई बार यू ही देखा है ,ये जो मन की सीमा रेखा है,मन तोडने लगता है ,अन्जानी आस के पीछे अनजानी प्यास के पीछे मन दौडने लगता है"

Neelima said...

यदि यही जान पाते तो खुदा ही हो जाते

हरिराम said...

अन्ततः एक ही तलाश होती है - "आत्मा के परमात्मा से मिलन की" उसकी अनन्त शक्ति, शान्ति, प्रेम .... अपने में भर लेने की...

Monika (Manya) said...

Jaane kya dhoondhataa hai ye mera dil .. tujhko kya chaahiye zindagi.. (song of lucky Ali).. bahut shai likha hai aapne..