7/05/2006

रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं


इस साल हम कहीं बाहर नहीं निकले थे. पिछले दो साल में सप्ताहांत दौरे के अलावे हम कहीं दूर भी नहीं गये थे. हाँ ये ज़रूर था कि छोटी छोटी छुट्टियाँ हमने कई मनाई थी. हम जयपुर गये थे, मसूरी, चैल , रानीखेत , नैनीताल, करनाल , हरिद्वार , ऋषिकेश ......लेकिन लंबी छुट्टी ये पुरानी कहानी हो गई थी. हाँ सरकारी दौरे पर हैदराबाद और बंगलौर जरूर गये थे.

इधर ऐसा हुआ कि जिससे भी बात हुई वो केरल यात्रा को निकल रहा था. हम सुनते और हँसते थे. बरसात में क्या घूमना. लेकिन एकदिन ऐसे ही केरल की सुंदरता के बारे में सुन कर एकदम से आनन फानन में तय किया ,निकल पडते हैं बरसात होती हो तो हो .

दो दिन में कार्यक्रम तय किया.अब जो घूमने का पूरा ब्यौरा देखा तो ज़रा घबडाये. ऐसा था कि अब तक हम कोई एक जगह चुनते. वहाँ पहुँच कर डेरा डाल देते और चैन की साँस लेते. मन करता तो निकलते नहीं तो न सही . आराम सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दा होता. इसी चक्कर में कई साल पहले स्टर्लिंग की टाईमशेयर छुट्टियों के सदस्य भी बने थे. 'होम अवे फ्रॉम होम" वाला "कैची स्लोगन " बहुत भाया था.

लेकिन केरल यात्रा भारी पडने वाली थी . बाईस को दिल्ली से कोची पहुँचना था. अगले दिन मुन्नार की ओर . एक दिन छोड कर थेकड्डी. फिर अगले दिन कुमाराकोम . और अंत में कोवलम. उनतीस को त्रिवेन्द्रम से 3.10 की उडान थी. कुल मिलाकार काफी भागदौड वाली घुमाई होने वाली थी. जाने के एक दिन पहले ज़रा हौसला पस्त सा लगा . पता नहीं इतनी भागदौड संभाल पायेंगे या नहीं. बच्चे खूब उत्साहित. हमने भी देखा देखी उत्साह का जामा ओढ लिया. निकलना सप्ताह के बीच में था इसलिये तैयारी ,समय की कमी को देखते हुये काफी अफरा तफरी में हो रही थी . छुट्टी जाने के पहले आमतौर पर कार्यालय वाले भी ऐसा पकड्ते हैं जैसे वापस लौट कर हम आयेंगे नहीं. जितना काम करा सकते हैं उससे कहीं ज्यादा निपटवाने की होड लग जाती है . इन्ही व्यस्तता में ,निकलने के एक दिन पहले ,करीब 3 बजे घर से फोन आया कि जिस सूटकेस में समान पैक किया जा रहा था वो लॉक हो गया है .कई नम्बर कॉम्बिनेशन आजमाने के बावजूद खुल नहीं रहा.

शाम को थके हारे घर पहुँचे. इस बीच अपने एक सहयोगी की सलाह पर हर्षिल को शुरुआत से ले कर सारे कॉम्बिंनेशन आजमाते रहने का आदेश दे चुके थे . वरना ट्रिप कैंसल की तलवार उसके सिर पर लटकी हुई थी. वैसे भी अपनी गलती ,सूटकेस से छेड खानी करना मानते हुये , बेचारा जुटा हुआ था . पाखी बेहद रुआँसी . उसने शायद सच में मान लिया था कि घूमना कैंसल हो जायेगा . संतोष तक ये खुश खबरी पहुँचा दी गई थी कि और कई सारे कामों के अलावा एक और काम उसका इंतज़ार कर रहा है.

आगे के किस्तों में ....सूटकेस की कहानी पहले फिर क्रमवार कोची , मुन्नार, थेकड्डी, कुमारोकोम और कोवलम की कहानी आराम आराम से...............

4 comments:

अनूप शुक्ल said...

हां ठीक है,हम इंतज़ार कर रहे हैं पढ़ने का।

ई-छाया said...

प्रत्यक्षा जी,
ये तो अन्याय है, आपने व्यंजन सामने रख कर हटा लिया, ऐसा लगा। कृपया शीघ्र लिखें आगे का ब्यौरा।

Anonymous said...

भाई ये क्या ? कमरा शूरू होतेईच खत्म हो गया !

(मुन्नाभाई एम बी बी एस के सर्कीट के अन्दाज मे)

Pratyaksha said...

ऐसा है कि हमारी टाईप करने की स्टैमिना खत्म हो गई है. घुमाई ज्यादा जो हुई. अब तक आराम फरमा रहे हैं.
पर अगला भाग शीघ्र ही