लिया जब नाम प्रियतम का
हृदय कुछ और भर आया
एक मीठी चपल चितवन की
बिजली कुछ इस तरह चमकी
घने बादल के पीछे से
सजीला चाँद निखर आया
कोई कह दे ये बादल से
कि अब वो और न बरसे
लिया है नाम प्रियतम का
हृदय कुछ और भर आया
'टामक टुइयाँ' का रहस्य: एक मुहावरे का पैदा होना
19 hours ago
1 comment:
प्रत्यक्षा जी,
आज ही आपकी कहानी 'मुक्ति' अभिव्यक्ति पर पढी. इतनी अच्छी रचना के लिये बधाई। सच में आप बहुत अच्छा, दिल के करीब और जीवन के यथार्थ को लिखती हैं। आपकी नेट पर सभी रचनायें हम पढ चुके हैं। बहुत दिनों से मन था आपको पत्र लिखने का, पर आज ये कहानी पढ कर बस खुद को रोक नहीं पाये।
शुभकामनाओं के साथ
सारिका
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