ऐक्ट 1 सीन 1सारे चिट्ठा लोक में त्राहि त्राहि मची है.चारों ओर अफरा तफरी का महौल है. सारे चिट्ठा कार गण ( आगे से सुविधा के लिये इन्हें चिकग कहा जायेगा..सं ) जान बचाये इधर उधर भाग रहे हैं .सब पहुँचे प्रभु के पास.
"प्रभु हमें बचायें. शुकुल देव की तारीफ हमारी जान लेने पर तुला है.हर दिन दो से तीन के हिसाब से तरीफ और लेख रूपी बमगोले यत्र तत्र सर्वत्र बिखेर रहे हैं. न दिन को चैन ,न रात को नींद. अब तो, प्रभु, हमें सोते जागते, उठते बैठते उनकी तारीफ और टिप्पणियाँ दिखाई देती हैं.साँस थामे चिट्ठा खोलते हैं अब तो ऐसी हालत हो गई है. ज्यादा तरीफ से प्रभु अब अपच और टीपच (टिप्पणी की अधिकता) हो रही है. जीना दूभर हो गया है.उनकी तारीफी ज्याद्तियाँ अब बरदाश्त के बाहर हो गई हैं. प्रभु, अब हम आपके शरण में आये हैं. आप ही हमारा उद्धार करें "
प्रभु ने आँख बंद की, ध्यान मग्न हुये.चिकग समूह भावना के अतिरेक से उत्तेजित थे. शोर से प्रभु के ध्यान में खलल पडा.नेत्र खोले और कहा,
"इतनी भीड क्यों है ? आपसब बाहर प्रतीक्षा करें. अपने एक या दो प्रतिनिधि को मेरे सामने भेजें. ( प्रभु भी अब तक बहुत डेली गेशन झेल चुके थे, देवताओं के कई यूनियन को सफलतापूर्वक निपटा चुके थे)
बह्त चिंतन मनन के बाद नारद जी को तैयार किया गया चिकग की बात प्रभु के सामने रखने के लिये. नारद जी ( जीवन स्टाईल में) नारायण ,नारायण कहते अंदर प्रविष्ट हो गये.अपने कमंडल और इकतारा ( या और जो भी होता होगा ) को रखा और पद्मासन में बैठ गये.
प्रभु ने शिव अवतार लिया, दोनों नेत्र बंद किये, तीसरे अध खुले नेत्र से नारद का अवलोकन किया.
"अब कहो वत्स. अपनी समस्या रखो"
"आप तो अंतर्यामी हैं प्रभु. बस हमारी समस्या का निदान बतलायें "नारद भावविह्वल हुये.
प्रभु ने तिर्यक भंगिमा से आसमान को देखा, थोडा बेजार हुये. अब कितनी समस्याओं का निपटारा करते रहें. ये आराम का वक्त था. पर खैर क्या करें प्रभु हैं तो भक्तों को देखना ही पडेगा. आवाज को गंभीर किया , नारद के झुके शीर्ष को प्रेम से निहारा और बोले, "................
ऐक्ट 1 सीन 2हवन, धूप, लोबान के धूँये के बीच अचानक बिजली सी कडकी और बाबा प्रगट हुये. तुरत एक चेला बायें और एक ने दायें स्थान ग्रहण किया. हाथ बाँधे, बाबा की मुखमुद्रा भक्ति भाव से निहारते ( एक स्टिल पोज़ )
भक्त बाबा को साक्षात सामने देख धड से दण्डवत हुआ. चार बार "बाबा ,बाबा " की विकल गुहार लगाई. चेला नम्बर 1 उवाचा,
"बाबा आज मौनव्रत धारण किये हैं. अगर कुछ खास कहना होगा तो चुटका लिख कर देंगे,बाकी हम तो हैं ही अर्थ समझाने को"
(डाक्टर के क्लीनिक में पूर्व अवतार में,बतौर कम्पाउंडर कई कर्षों तक काम किया था. डाक्टर का पुर्जा, मरीज़ को समझाने में महारथ हासिल था)
भक्त लेटे लेटे,
"बाबा आप तो अंतर्यामी हैं. हमारी समस्या का समाधान करिये "
बाबा के बायें भौंह का एक बाल काँपा. चेले ने तत्परता से अनुवाद किया,
"बच्चा, आगे कहो"
"बाबा, हमारे चिट्ठा पर टिप्पणी का अभाव है, अकाल, सूखा सब पडा है. कोई उपाय बताइये. हवन, पूजा, यज्ञ, कोई तो उपाय होगा, पूरी बरसात न सही,कुछ बून्दा बान्दी ही सही "
बाबा की मुखमुद्रा गंभीर से गंभीरतम हुई. (नेपथ्य से उपयुक्त संगीत बजा .)फिर चेहरे पर दिव्य मुस्कान फैल गई.बायें आँख को दो बार नचाया. एक बार मध्यमा से नासिका खुजाई और मोनालिसा मुस्कान भक्त की ओर फेंक दिया.(अब समझते रहो बरखुरदार !)
बडी देर बाद चेला 1 को बोलने का पार्ट मिला था. सामने आया, छाती फुलाई, गला खखारा. चेला 2 मुँह फुलाये खडा था.बुदबुदाया "मेरी बारी (बोलने की) कब आयेगी ?"
बाबा ने एक उँगली उसकी ओर नचाई, अर्थात, धीर धरो, वत्स. इतनी आसानी से बोलव्वा पार्ट नहीं मिलता. बहुत पापड बेलने पडते हैं. मुझे देखो, इतने एक्स्पीरियंस के बाद भी आज मौन व्रत धारण करवा दिया.फिर गहन सोच में सर हिलाया, सोलीलोकी की, लगता है चेला 1 ने खास चढावा चढाया है, खैर आगे हम भी देख लेंगे.
चेला 1 तब तक शुरु हो चला था. ऐसी चीज़ों में देरी बिलकुल नहीं, इतना तो वह भी अब तक समझ चुका था.
चेहरे पर उचित भावभंगिमा को लाने के प्रयास में काफी हद तक सफल होते हुए (आगे का भविष्य स्वर्णिम लग रहा है)बोला,
"सुनो, भक्त,.............
चेले ने भक्त को क्या उपदेश दिया ???, प्रभु ने नारद को कौन सा ब्रह्मास्त्र दिया ???, चिकग की विकट समस्या का क्या निदान हुआ ??? (तेज़ नगाडे की अवाज़ के साथ)
इसकी कहानी अगले एपीसोड मेंतबतक पढते रहिये, लिखते रहिये,कलम की स्याही सूखे नहीं, मूस का चटका चटकता रहे, तख्ती पर उँगली चलती रहे