6/17/2005

हृदय कुछ और भर आया

लिया जब नाम प्रियतम का
हृदय कुछ और भर आया
एक मीठी चपल चितवन की
बिजली कुछ इस तरह चमकी
घने बादल के पीछे से
सजीला चाँद निखर आया
कोई कह दे ये बादल से
कि अब वो और न बरसे
लिया है नाम प्रियतम का
हृदय कुछ और भर आया

1 comment:

Sarika Saxena said...

प्रत्यक्षा जी,
आज ही आपकी कहानी 'मुक्ति' अभिव्यक्ति पर पढी. इतनी अच्छी रचना के लिये बधाई। सच में आप बहुत अच्छा, दिल के करीब और जीवन के यथार्थ को लिखती हैं। आपकी नेट पर सभी रचनायें हम पढ चुके हैं। बहुत दिनों से मन था आपको पत्र लिखने का, पर आज ये कहानी पढ कर बस खुद को रोक नहीं पाये।
शुभकामनाओं के साथ
सारिका