पब्लिक में गंदे कपड़े सुखाने का काम मैं करना नहीं चाहती थी , इसलिये बोधी के पोस्ट पर जहाँ उन्होंने साहित्यिक शब्दों और व्यंजनाओं की छटा बिखेरी है , किताब छपवाने का गुर बताया है , मैं चुप रही । जबकि कुछेक अन्य सूत्रों से उनके ऐसे आशय की बातें , खासकर जुगाड़ लगाकर किताब छपवाने वाली बात , उससे वाकिफ होते हुये भी मैं ने हमेशा संयत खामोशी बरती । मैं ब्लॉग तब से कर रही हूँ जब उन्हें उसका ब तक नहीं मालूम था । ब्लोग शिष्टाचार के कुछ पाठ हमने घुट्टी में शुरु से पीकर रखा उसी असर में उनकी बातों को नज़र अंदाज़ किया ।
उन्होंने एक पोस्ट लिखा जिसके संदर्भ में मैंने
"सीधी बात" लिखी और उसमें अगर कोई 'अशालीन' शब्द था तो वो
"डिग्रेड" था । इसका अर्थ शायद हिंदी के वरिष्ठ कवि ने कुछ और समझा वरना उनके तिलमिलाहट भरे पोस्ट का आशय और सबब मेरी समझ में नहीं आया ।
लीद , मस्ती , प्रकाशक और बूढ़े मालिक को साधना जैसे शब्द लिखे , हाँ अभय के अनुसार ये रामायण महाभारत के ज्ञाता हैं , गुणी हैं , साहित्यकार हैं , भले मित्र हैं पर ऐसी भाषा और ऐसी सोच को न सिर्फ सोच सकते हैं बल्कि खुलेआम एक पब्लिक डोमेन पर बिना सच जाने या जानने की कोशिश किये बिना हुल्लड़ी भाषा में सार्वजनिक भी कर सकते हैं । डिफेंस क्या लिया ..कि मैंने किसी का नाम नहीं लिया । पर मैं या अन्य ब्लॉगर्स अबोध बालक बालिका तो नहीं कि मेरी पोस्ट के इन लाईंस को इस तरह प्रासंगिक व्याख्या सहित और किताब छपवाने के साथ जोड़ कर लिखा जाय और वो समझ में न आये।
इनके स्तर पर आने के लिये मैं भी वरिष्ठ हिन्दी कवि लिख कर चार वाकचाबुक चला दूँ फिर कहूँ कि ऐसे तो कितने कवि हैं आपकी बात नहीं हो रही । इन्हीं की पत्नी जो खुद अपने अनुसार कभी भी किताबवाली हो सकती हैं , उनके किताबवाली हो जाने पर क्या ये उनको भी प्रकाशक मालिक को साधा है , कहेंगे ? अगर नहीं कहेंगे तो इनका क्या अख्तियार बनता है कि बिना मेरे विषय में जाने ये अबतक ऐसी बातें सेलेक्ट सर्कल में तो करते आये थे अब पब्लिक डोमेन में भी कर रहे हैं ..कि ऐसा ही होता है । फिर उम्मीद रखें कि स्त्री है ऐसी बात पर चुप्पी साध लेगी । अज़दक ने इनके बारे में चार बातें कहीं ..इनको बेहद तकलीफ हुई , चार जगह इन्होंने फोन किया , मैंने जेनेरल बात कही , कहा , पर इनके पोस्ट की भाषा और कंटेंट पर कोई आहत होगा इसकी समझ इनको नहीं थी ?
परिपक्व इंसान होते तो मेरी पोस्ट पर अपना तर्क उसी भाषा में देते जिसमे मैंने दी थी । शायद ऐसे नहीं हैं तो
जो आसान तरीका दिखा कि मेरे लेखन को किसी को साधने जैसा टिपिकल मेल स्तीरियोटाईप रंग दे कर गिराने की क्षुद्र कोशिश की । अच्छे कवि होंगे लेकिन कैसे इंसान हैं ये अभय के सर्टिफिकेट के बावज़ूद मुझे खूब समझ आ रहा है । सामान्य शिष्टाचार होता तो मुझसे फोन कर सकते थे , मेरी पोस्ट से कोई आहत होने की बात लगी होती जो कि मेरे समझ से बिलकुल ऐसा नहीं था , तो बात किया होता ... पहले इन्होंने मुझे फोन किया है इसलिये ऐसा भी नहीं कि पहली मर्तबा बात करने की हिचक हो ।
प्रमोदजी किसी के प्रहरी नहीं । पहला ,
मुझे या किसी भी स्त्री को प्रहरियों की ज़रूरत नहीं , हम अपनी लड़ाई खुद लड़ सकते हैं । मैं नौकरी करती हूँ और लोगों को हैंडल करना मुझे आता है । प्रमोदजी ने पोस्ट लिखी तो वो हमेशा से मँहफट ब्लॉग्गर रहे हैं जो अपनी बात खरी खरी करता है और
मेरी ही नहीं जब भी कोई मसला उठता है जहाँ उन्हें कुछ कहना होता है वो खरी बात कहते हैं ।
उनके बारे में कई ब्लॉगर क्या सोचते हैं , उनके लिखे का कितना सम्मान करते हैं इसके लिये हमें किसी बोधी सर्टिफिकेट की ज़रूरत नहीं । दूसरे अपने पोस्ट में बोधी ने उन्हें भी लपेटा था । बोधी ने क्या समझा कि साधू साध्वी कह देने से साधू जैसी ही प्रतिक्रिया पायेंगे ? इतने भोले अबोध तो बोधी उम्र के इस पड़ाव पर नहीं ही होंगे ।
मेरे शालीन बात का जवाब उन्होंने अशालीन होकर दिया । फिर जब उन्हें उनकी ही भाषा में जवाब मिला तो तिलमिलाये क्यों ? हिन्दी साहित्यकार की यही मिसाल वो रख रहे हैं ब्लॉग्गर्स के सामने ? कुछ वरिष्ठ साहित्यकार जो ब्लॉग कर रहे हैं उनके प्रति भी यही लिहाज़ वो दिखा रहे है? फिर दूसरों से लिहाज़ की उम्मीद रख रहे हैं ? कीचड़ में हाथ डाला था दूसरों पर फेंकने के लिये और अब रो रहे हैं कि हाथ गंदे क्यों हुये ?
अभय ने लिखा कि बोधी अकेले पिट रहे हैं । पिट रहे हैं कि पीट रहे हैं ... अभय आप को इतना ही दिखा , उनकी क्षुद्र सोच नहीं दिखी ..दूसरों का पिटना नहीं दिखा ? आप दोस्ती के नाम पर गलत को सही ठहराईये इसलिये कि बात आपके खिलाफ नहीं की गई है । जब ऐसी स्थिति आयेगी तब शायद आप अकेले खड़े दिखाई देंगे ।
माफ करें साहित्यजगत में मेरी एंट्री जुम्मा जुम्मा कुछ दिनों की है और आपकी सोच के विपरीत जो भी मेरा लेखन छपा है वो किसी को साधे बिना छपा है ..शायद आपका छपने का अनुभव दूसरा रहा हो । अपने अनुभव के आधार पर कीचड़ कादो मत फैलाईये ... पानी अगर गंदा है तो उसे साफ करने में अपनी उर्जा लगाईये ..कृपा करके और गंदा मत करिये और उस गंदगी को ब्लॉग जगत में तो मत ही लाईये । साहित्यकार आप हैं , लोकप्रिय ब्लॉग्गर आप हैं .. कमसे कम इतनी ज़िम्मेदारी तो निभाईये ...
पुन: इस प्रसंग में दो नये ब्लॉगरों ने (
नंदिनी और गौरव ) जितनी समझदारी और परिपक्वता दिखाई है , जितना पूरे प्रसंग का नब्ज़ पकड़ा है उतना वरिष्ठ ब्लॉगरों ने भी नहीं जिन्हें इसमें या तो हँसी ठिठोली दिखी या मसाला दिखा ।
उम्मीद है कि मेरी इस पोस्ट में एक गलत बात के खिलाफ तकलीफ और गुस्सा दिख रहा होगा कोई रंगीन मसाला नहीं ।