सुग्गा कहता है लिखता हूँ किसी और दुनिया में रहता हूँ , कोई जीवन हो तो सुनाओ , लिख दूँगा उसे
मैं कहती हूँ जाओ जाओ किसी की जान अटकी है , हरी मिर्च खाओ और किसी और को बहलाओ
बहंगी वाला टेर लगाता है , चाहा , तीतर , बटेर , लाल्शेर , मुर्गाबी , बत्तख या फिर चूड़ी , बिन्दी, आलता, रिबन,
गर्दन टेढ़ी करते ऊँट अपने दाँत दिखाता है , सारे , कहता है , मेरी दुलकी चाल चलो तो एक दिन मराकेश पहुँच जाओगे
मैं कहती हूँ , जाऊँ भी तो माराकेश ? बस ?
सुग्गा टपक पड़ता है बीच में , नक्शे पर चोंच रखता है , भाग्य फल बाँचता हो जैसे , रेगिस्तान के बीच किसी नखलिस्तान का नाम ढूँढता है
मैं जिरह में फँसी हूँ खुद से , नीली नदी की रात में तारों को देखती , खोजती हूँ माराकेश , ठंडी हवा छूती है त्वचा , समंदर, समय, तुम्हें
हाथ बढ़ाये , आँखों पर काली पट्टी चढाये , एक पैर पर कूदती बच्ची हँसती है , झपक कर ताली बजाती है , मेरे खेल में कुछ भी सोचना मना है और सब कुछ लिख डालना वाजिब
काला कौव्वा, काग भुशुंडी, द वाईज़ ओल्ड मैन , द वाईज़ ओल्ड क्रो , गंभीर बुज़ुर्गियत में , धीमी गहरी आवाज़ में कहता है रात और कहता है दिन , कहता है एहसास और कहता है कहानी और अंत में कहता है नींद , और उसके बाद कहता है जाग
चुटकी बजाता ऊँट , अपने पीले खपड़े दाँत निपोरता ऊँट जाग जाता है और चल पड़ता है , पीछे सूरज का नारंगी गोला , रात की स्याही में डूबता है , कैलेंडर का वो पन्ना फड़फड़ाता है
नींद से जागती , उनींदी देखती हूँ कागज़ पर सजे शब्द और खुश होती हूँ , कि लिखना प्यार करने जैसा होता है और प्यार किसी दिन माराकेश जाना होता है , नींद में सपने में एक समय में कई समय का होना होता है , तुम्हारे साथ कोई और हो जाना होता है , खुद के भीतर हज़ारों संसार का जनमना होता है , उम्मीद का भोलापन होता है और सुग्गे की चोंच में लाल मिर्च का होना होता है और बहुत सारी बकवास से रुबरू होना होता है , हर दिन कई बार
माराकेश में फिर एक नया दिन हुआ । ऊँट सवार रेत के कण पोछता , रूमानी सपना दिखाता लौटता फिर सजता है कैलेन्डर में , कल फिर जायेगा किसी और देस किसी और के सपने का उड़ता पतंग बना
फताड़ू के नबारुण
1 week ago