इस जगह को देख कर सबसे पहले इच्छा होती है कुछ दिन यहाँ रहा जाय । सचमुच रहा जा सकता है अगर आप लेखक हैं और दुकान की मालकिन सिल्विया को आपकी शकल और आपकी लिखाई पसंद आ जाये । सैंतीस रू दला बूशेरी पर स्थित ये शेक्सपियर ऐंड कम्पनी है । लैटिन क्वार्टर्स में सोर्बॉन वाला इलाका । सेन नदी के किनारे साँ मिशेल के ठीक बगल में, नात्र दाम के सामने । दुकान के दरवाज़े पर एक बड़े ब्लैकबोर्ड पर सफेद चॉक से लिखा है ..
" कुछ लोग मुझे लैटिन क्वार्टर्स का डॉन किहोते कहते हैं , इसलिये कि मेरा दिमाग कल्पनाओं के ऐसे बादल में रमा रहता है जहाँ से मुझे सब बहिश्त के फरिश्ते नज़र आते हैं और बनिस्पत कि मैं एक बोनाफाईड किताब बेचने वाला रहूँ , मैं एक कुंठित उपन्यासकार बन जाता हूँ । इस दुकान में कमरे किसी किताब के अध्याय की तरह हैं और ये तथ्य है कि तॉलस्ताय और दॉस्तोवस्की मुझे मेरे पड़ोसियों से ज़्यादा अज़ीज़ हैं .." ।
कुछ पागलपने की मज़ेदार सनक वाली बात है । कहते हैं जॉर्ज विटमैन ने कई साल दक्षिण अमेरिका में घुमक्कड़ी करते बिताया । उन दिनों की शानदार दिलदार मेहमाननवाज़ी की याद में जब उन्होंने ये किताबघर शुरु की , इसे एक आसारा बनाया नये लेखकों , कलाकारों के लिये। कहते हैं , एक बार फिर , कि पचास हज़ार लोगों ने रातें शेक्सपियर में बिताई हैं , उसके मशहूर तकिये पर अपना सर रखा है । हेनरी मिलर , आने निन , गिंसबर्ग , डरेल ने विटमैन के साथ चाय और पैंनकेक साझा किया है । ये भी संभव है कि जब आप किताबों को पलट रहे हों , शायद लेखक के ह्स्ताक्षर कहीं आपको दिख जायें ।
पुरानी शहतीरों पर टिकी छत , लकड़ी की तीखे स्टेप्स वाली सीढ़ी , किताबें अटी ठँसी हुई , बेंचों के नीचे , सीढियों के बगल में , रैक्स पर , फर्श पर ..सब तरफ । कुछ वैसा ही एहसास जैसे आप लेखकों से वाकई मिल रहे हों ..कुछ उनकी दुनिया छू रहे हों ।
मैंने बताया उन्हें , मैं भी लेखक हूँ , हिन्दी में लिखती हूँ , शायद क्या पता कभी अगली दफा आने का मौका हो तो ... उन्होंने कहा आने के पहले बात ज़रूर करिये अगर जगह होगी ..क्यों नहीं । सचमुच क्यों नहीं ..किसी ऐसी दुनिया में खुलने वाली खिड़की हो ..क्यों नहीं
शेक्सपियर महाशय कैसे ताक रहे हैं अचंभित खुशी से । स्ट्रैट फोर्ड से निकल कर पेरिस की गलियाँ
ये पहली मंजिल पर वो कमरा है जहाँ स्लीपींग बैग बिछाकर सोया जा सकता है । कमरे में एक काउच है , एक प्यानो है और ढेर सारी किताबें है , किताबों की पुरानी गँधाई महक है , ज़रा सा पागल कर देने वाली ..
बाहर एक तरफ अंटीक्वेरियन , दूसरी तरफ मुख्य दुकान , रंगीन बेंच और मोटी किताबें । धूप में बैठ कर ठीक अंदर जाने के पहले का मज़ा , थोड़ी उमगती उत्तेजना कि जाने अंदर क्या क्या होगा ..खुशी को कुछ देर स्थगित कर थोड़ा मज़ा बढ़ा लेने वाला बचकाना खेल ही सही
किताबें ही किताबें , पुरानी शहतीर देख रहे हैं आप ?
रीडिंग रूम ..यहाँ रीडिंग सेशंस होते हैं , खिड़की से रौशनी , धूप , बाहर गलियों से आवाज़ें , किताबों के बीच लकड़ी के बेंच पर बदरंग कुशंस ..छत तक किताबें , सुंदर नकाशीदार मेज़..
फताड़ू के नबारुण
1 month ago
13 comments:
कुछ खास तो है यहाँ पर......
काश ऐसी जगह मिल जाए रहने के लिए, जीने के लिए...
अपनी जिंदगी यहाँ बड़ी ख़ुशी ख़ुशी जी जा सकती है
काश ऐसी जगह हमें भी मिल जाये
aisi jagah jaa sakne ki khwaahish to jaane kab poori hogi.... par aapkaa behad dhanyawaad ki aapne us jagah ke rangon,vahan basne waali kitaabon ki gandh aur uss jagah ki rooh ko shabdon mein kaid kar humse uski ek mulaqaat to karwaa hi di....
:)
ऐसी दूकान तो स्ट्रेद्फोर्ड में भी नहीं दिखी ... तुमने कहाँ से ढूंढ निकाली? .... फिलहाल तो मुझे एक ही किताब की तलाश और तलब है जो यहाँ नहीं मिलने वाली :-)
बहुत सही!!!
आप खुशनसीब हो...
Jo dost ye kah rahe hain ki 'Kaash! unhen bhi aisi kitaabon waala aashiaana rahne ko mil jaay!" unke liye "Mystic Himalaya" ke paas ek se ek aashiaane hain. Mujhse pata le sakte hain : 09418240363, 09816509363.
Pratya, Thanks for a 'New' Shakespear... A mysterious man, yet not proved as 'Real' Author of his creations.
We have great books, very rare books, but very few readers. We have countless time for the wanderers... but 'Ye akhiyaan thak gayin panth nihaar. Saal me do-chaar parinde aate hain...
Har koi aaye bhi kyon?
Bada aaraam hai.
Sach yahi hai ki 99 % log aisa silence aur aloneness chaahte hi nahin. A new mind is needed to know the dangerous Life and beautiful Death... the endless celebration of the endless journey.
Again thanks.
Sainny Ashesh
आप जब भी कुछ लाती है अपने ब्लोग पर, गजब का लाती है। सच कहा सागर जी ने कि आप किस्मत वाली है।
आपके ब्लॉग पर मैं अचानक ही पहुँच गया। मैंने पाया है कि अचानक पहुँचना अक्सर लाभदायक ही होता है। मैंने आपकी कई पोस्ट पढ़ ली हैं। आपकी रचनात्मक शक्ति प्रशंसनीय है। बधाई।
एक तरफ आपकी बताई 'शेक्सपियर एंड कंपनी' है जहां आज भी लेखकों के लिए कुछ खास है. बैठने, गपशप करने और ठहरने के लिए. और दूसरी तरफ दिल्ली में 'श्रीराम सेंटर' में अब साहित्यकारों के लिए जगह नहीं बची.
रोचक जानकारी देने वाला लेख।
पूनम
कल्पनाशील आलेख.घूमने की अनुभूति से सराबोर.मैंने पत्रिकाओं में आपकी कहानियां पढ़ी हैं.पसंद आती रही हैं.मैं आपको कहानीकार ही समझता था.यहां आकर जाना और भी रंग हैं आपकी सर्जना के...
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