10/01/2008

बोतल में बन्द चिट्ठी ..

उन फुदकती चिड़ियाँ
जिनके पैरों में बँधे थे
छोटे छोटे संदेसे
किसी मंदिर के कँगूरे से
बजती घँटियाँ
आवाज़ जो टकरातीं थी
सामने की पहाड़ी से

उन कविताओं को सुनते
गिरते हैं शब्द
किसी तालाब में
सतह पर फैलता है वृत
अर्थ गायब हो जाते हैं
कभी तल पर बालू में
कभी गोल चमकीले पत्थर में
कभी तैरती मछली के पेट में

बात हमेशा अपना सिरा खोजती है
चाहे कितना फेंको उसे
मछुआरे जाल में
बँधेगी आखिर
आखिर
फँसेगी आखिर आखिर

कोई कागज़ की नाव तो नहीं
या कोई बोतल में बन्द
चिट्ठी भी नहीं
जो मिलेगी
सदियों बाद
किसी बच्चे को
समन्दर के किनारे
रेत का घर बनाते
या फिर कौन जाने
किसी टाईमवार्प में
किसी अतीत के समय में
अपने पूरे रहस्य से भरपूर ?और
तुम कहोगे

अरे ! ये तो मेरे ही शब्द हैं जिन्हें कहा था
मैंने सदियों पहले किसी भविष्य में ..

23 comments:

Unknown said...

बहुत अच्छी लगी आपकी ये रचना पढ़कर। अच्छी अभिव्यक्ति

डॉ .अनुराग said...

या फिर कौन जाने
किसी टाईमवार्प में
किसी अतीत के समय में
अपने पूरे रहस्य से भरपूर ?और
तुम कहोगे

अरे ! ये तो मेरे ही शब्द हैं जिन्हें कहा था
मैंने सदियों पहले किसी भविष्य में ..






यही लफ्ज़ तो फेंके थे मैंने भी बोतल में बंद करके किसी रोज .....आपकी कविता भली भली सी है इन दिनों बहसों की भीड़ में ...

MANVINDER BHIMBER said...

अरे ! ये तो मेरे ही शब्द हैं जिन्हें कहा था
मैंने सदियों पहले किसी भविष्य में ..
hota hai kabhi kabhi khoobsurat hadsa

महेन्द्र मिश्र said...

उन कविताओं को सुनते
गिरते हैं शब्द
किसी तालाब में
सतह पर फैलता है वृत
अर्थ गायब हो जाते हैं
कभी तल पर बालू में
कभी गोल चमकीले पत्थर में
कभी तैरती मछली के पेट में

bahut badhiya rachana lagi. lkhate rahiye .

योगेन्द्र मौदगिल said...

मुक्त अहसासों से भरी आपकी यह मुक्तछंद कविता अपनी लय और गति से सक्षम है..
आपको बधाई..

Ghost Buster said...

आपकी आवाज में सुनने को मिलती तो और असर करती. कई दिनों से कोई पौड्कास्ट नहीं सुनवाया आपने.

Anonymous said...

har lafz kuch apni baat kehta,bahut sundar rachana.

Geet Chaturvedi said...

... और सदियों पहले किसी भविष्‍य के
मेरे अनकहे शब्‍द ?
?
?

ravindra vyas said...

और अनकहे में हमेशा छूट जाते अनकहे शब्द।

वीनस केसरी said...

आपकी सोंच आपकी कहन अच्छी लगी

गजल की क्लास चल रही है आप भी शिरकत कीजिये
www.subeerin.blogspot.com
वीनस केसरी

Manjit Thakur said...

शब्द घूमते हैं वापस लोटकर आते हैं हम तक, शभ्द होते हैं शाश्वत गोकि स्वर ही ईश्वर है।

सुधांशु said...

pata nahi aap kab se likh rahi ho par aapne apne shabdo or anubhavon ko lambe or bahut hi kathin shadhna se paripakwa kiya hai pahli bar tmko padha achha laga.....

roushan said...

आपकी कविता का प्रवाह अच्छा लगा
क्या पता क्या क्या महसूस होगा कुछ शब्दों को कुछ्बातों को बिल्कुल अपने सा पा करके

Suneel R. Karmele said...

कहे गये शब्‍द हवा में वि‍लीन होकर आकाश गंगा में सफर कर रहे होते हैं, जब अचेतन मन में उन शब्‍दों की ध्‍वनि‍ जब गूँजती है, तब चेतन मन में यह महसूस होता है कि‍ वे उन शब्‍दों हमने अभी ही कहा था, अभी अभी ही कहा था, बहुत सुन्‍दर कल्‍पनाओं को शब्‍दों से श्रृंगारि‍त करने के लि‍ए बधाई .....

Vinay said...

किस किस लाइन की तारीफ़ करूँ, कविता तो पूरी की पूरी अच्छी है...

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बोतल मेँ बँद शब्द भी
दिल से निकले हैँ ..सुँदर !

Sandeep Singh said...

संदेशों की पाती बांधे गौरैया फुदकती रही...पहाड़ों से टकराकर बयार सुर में बजती रही...फिर भी कुछ अनकहा रह गया...हमेशा की तरह इस बार भी प्रत्यक्ष होते हुए भी उम्मीदों कयासों से घिरी रहीं...क्योंकि जो शब्द शेष थे वो बोतल में बंद मिले...

makrand said...

अरे ! ये तो मेरे ही शब्द हैं जिन्हें कहा था
मैंने सदियों पहले किसी भविष्य में ..

to express the desire
we need inner to fire
u got courage to fill
the gap of era

makrand-bhagwat.blogspot.com
regards

दीपक said...

अच्छी कविता के साथ अखबार मे आपके ब्लाग के चर्चा की बधाई!!

Anonymous said...

rahasy bana rahaa
kavita men
abhivyakti sunder hai

Anonymous said...

Superb flow like a river...
Aapki kavita me jo khuboohai hai vah sidhe man ko chhooti hai...
Really a beautifl poem....
http://dev-poetry.blogspot.com/

adil farsi said...

उन फुदकती चिडिया
जिनके पेरो मै बँधे थे...कोई बोतल मैं बन्द चिटठी भी नहीँ
जो मिलेगी सदियो बाद किसी बच्चे को..
अपने आप मेँ कुछ खोजती हुई कविता..रहस्य....।
बधाई हो.

प्रशांत मलिक said...

अरे ! ये तो मेरे ही शब्द हैं जिन्हें कहा था
मैंने सदियों पहले किसी भविष्य में ..

sahi baat