पुराने अखबार के ठोंगे से मोटे मोटे दालमोठ टूँगते लड़का कनखिया कर ताकता है । लड़की गुलाबी सलवार समीज में , बाल की एक लट कान के आगे गिराये शरमाती है । लड़की की मुटल्ली माँ अपने फैले कमर के गिर्द एहतियात से आँचल लपेटती है । गिद्ध दृष्टि से बारी बारी से लड़के फिर लड़की को ताकती है , मुँह पर आई मक्खी को भगाती है , हाथ वाला पँखा झलती है । गुमसाईन गर्मी से सब बेदम हैं । प्लैटफॉर्म पर लम्बे डंडे से लटका काला पँखा अपने डैने बेजारी से हिलाता गर्म हवा धीरे से फेंकता है । लड़का अपने नकली अरिस्ट्रोकैट सूटकेस पर अड़ंगे बैठा है । सामने बेंच पर लड़की और उसकी माँ हैं । माँ रह रह कर सामान टटोलती है । कभी ज़िप खोलकर कपड़े के बैग से कोई चार पॉलीथीन में कैद किसी कागज़ की जाँच करती है , कभी बटुआ खोलकर टिकट चेक करती है , कभी निमकी मठरी का छोटा स्टील का डब्बा निकाल लड़की को पूछती है , खायेगी निमिया ? निमिया अपने निर्मला नाम के अपभ्रंश पर सकुचा कर झल्लाती , क्या मम्मी तुम भी ? कहते एक बार लड़के की तरफ देखती है । लड़का इस बार आराम से मुस्कुराता है ।
लड़की के होंठों के ऊपर पसीने की बून्दों की रेखा है । ज़रा मचल कर कहती है , मम्मी एक लिमका पी लें ?
मम्मी बड़े बैग से छोटा बटुआ सात तहों के अंदर से निकाल कर लड़की को तुड़ा मुड़ा नोट पकड़ाती हैं । हमारे लिये एक पेपरमिंट लेती आना । लड़की सामने स्टॉल से लिमका पेपरमिंट खरीदती है । लड़का विल्स का एक पैकेट खरीदता उसके बगल में खड़ा हो जाता है । इस गरम दोपहरिया में ट्रेन का तीन घँटे चौआलिस मिनट लेट होना नहीं सालता है । लड़की की नुकीली नाक और कान के लाल बुन्दे कुछ मीठा मीठा उमगता है । सब हल्का हल्का । बीसवें इनटरवियु से नाकाम लौटना , नौकरी वाले दोस्तों के बीच एकमात्र बेरोज़गार रहना , बड़ी बहन के शादी न होने के दुख में माँ का दिनरात बुड़बुड़ाना , बाबूजी के सैंडो गंजी से झाँकते सफेद छाती के बाल सी आँखों में स्याह उदासी देखना , सब कहीं पीछे छूट जाता है । जब घर पहुँचेंगे तब फिर सब सोचेंगे देखेंगे । फिलहाल लड़की को देखेंगे के भाव से लड़का कश लेता है । लड़की समझ रही है कि देखी जा रही है । धीमे धीमे मुस्कुराती गुनगुनाती है साँस के भीतर से । उसे क्या पता किसी गोलमटोल गुलथुल से ब्याही जायेगी साल दो साल में । फिलहाल देखा जाना अच्छा लगता है उसे । इस मध्यमवर्गीय जीवन में रस के कुछ क्षण ।
सन उन्नीस सौ पैंसठ में जॉन लेनन अपना गाना गर्ल लिख रहा था । चिलम में मारिजुआना पीते गहरी साँस भरते वे गाना गा रहे थे , प्रेम के बारे में , किसी पीले पनडुब्बी के बारे में , बारिश के बारे में , मिशेल और किसी नॉरवेजियन जंगल के बारे में । संसार के बारे में ..कुछ ऐसे भोलेपन और विश्वास से , ऐसे सहज सरलता से .. धूप में खड़े होकर बरसात के गाने , तारों भरे आकाश की बातें , एल एस डी और वालरस वाज़ पॉल । धूप सने बिम्ब , आशा के चित्र , इमैजिन और स्ट्रौबेरी फील्ड्स । किसी पालतू कछुये की पीठ पर रंगा खरगोश ? कैसी साँस भर लेने की मासूम उकताहट थी । कैसा रंगीन धूँआ धूँआ जीवन था ।
ओह कैसी तुलना ? इस अलस दोपहरी में निमिया लिमका का बोतल मुँह से सटाती है । ठंडा तक नहीं । लड़का देखता है , सिगरेट का धूँआ , लडकी का गुलाबी कुर्ता , किसी और आती रेल की सीटी । माँ पैर मोड़ती है , पँजे फैलाती है , उफ्फ सो गया पैर ! किसी जैसे पिछले जनम में ऐसी ही गुलाबी सलवार समीज में जाने कहाँ कहाँ आती जाती रहीं । जाने कौन देखता रहा था , न देखता था बिना इल्म हुये । किसी ज़माने में , किसी और ज़माने में ।
लड़का लड़की को ताकते सोचता है ... उफ्फ ये लड़की ! जॉन लेनन नेपथ्य से गाता है ..शीज़ द काईंड ऑफ गर्ल यू वॉंट सो मच इट मेक्स यू सॉरी ...
फताड़ू के नबारुण
1 month ago