कैसी धम धम धमक थी । पैर के घुँघरू की आवाज़ दब जाती थी । तबले की टनकार हर थाप पर गूँज कर , उठकर तानपूरे के स्वर के साथ कुछ छेडछाड कर लेती । गले की खखास , कुछ तैयारी ,तानपुरे का टुनटुना देना बस एक दो बार । गावतकिये के सहारे सफेद जाज़िम पर बैठे ढुलके अधलेटे स्वर जाने किस तन्द्रा में चौंक चौंक जाते । महफिल की तैयारी थी या समाँ खत्म होने की शुरुआत , पता नहीं चलता था । सुर साधक थे कि राग टाग क्या विहाग जैसे अनाडी थे । हर खम पे सिर डुलाते हाथों से ताल देते किस दुनिया के वासी थे । झूमने वाले रात भर डोलने वाले अधनींदी आँखों से मधुरम मधुरम जपने वाले , सब उसी उजली रात के स्याह सलेटी सलाखों को छाती से लगाये चेतन अचेतन जड थे । आधी रात का राग था कि भरी चटकीली कँटीली दोपहरी का स्वरगान था , कौन जाने पर कोई अधूरी पंक्ति का बिसराया हुआ गीत जरूर था , अटका हुआ था स्मृति के किसी नोक पर , तलवे पर गडे काँटे सा , न निकलते न भूलते बनता । बस एक खोंच सा , लटपटायी ज़बान सा , था तो सही ऐसा ही कुछ अनाम सा ।
किसी सिहरते रोंये का नृत्य था , नसों में दौडता संगीत था , पान खाये होंठों की जालिम ललाई थी , गाढे शहद सी बहती आवाज़ थी ।
फताड़ू के नबारुण
1 month ago
8 comments:
इतनी सारी सूक्ष्म छवियां और ध्वनियां एक साथ। एक-एक लाइन की झंकार पर रुक कर डूबने की, माहौल को जज्ब करने की जरूरत। अद्भुत है...
किसी सिहरते रोंये का नृत्य था, नसों में दौडता संगीत था, पान खाये होंठों की जालिम ललाई थी।
अद्भुत!
इज़ ईट अबाउट राग, ऑर टाग, ऑर विहाग?.. व्हॉट आर यू ट्राइंग टू से? कैन यू से ईट मोर क्लियरली, प्लीज़?
कहां, कब, कैसे
?
दिखाइए, सुनाइए, बताइए।
क्यों बेचैन कर रही हैं....
तन्द्रा का यह आलम-किसी सिहरते रोंये का नृत्य!!!
सुन्दर.
पूरा शब्दकोश...सामने कीबोर्ड....और उनमें ड़ुबो ड़ुबो कर चित्र में जान डालती जाती हैं....लगता है अभी बोल पडेंगी।
हेलॊ जी
मैँ केरल से हूँ। मलयालम में ब्लोग कर रहा हूँ।
मैंने ब्लॊगिंग ब्लॊगस्पॊट में शुरू किया था। अब मेरा जॊ ब्लॊग( रजी चन्द्रशॆखर ) वॆर्ड्प्रस में है, उसी में हिन्दी प्रविष्टियाँ भी शामिल कर रहा हूँ । कृपया दॆखें और अड्वैस भी दें।
बहुत बार पढ़ा,प्रत्येक बार अलग अलग अनुभूति
हुई,स्वर लय मे बहती चली गयी …अजब समा है……
अद्भुत!…अभी और भी कयी बार पढ़ना बाक़ी है……।
Post a Comment