3/13/2007

कुछ मीठा हो जाये

पेस्ट्री पेस्ट्री


सामाने ये रखा हो और आप कैलोरीज़ सोचें इससे ज्यादा दुखदायी और क्या हो सकता है मरफी के नियम अपनी सत्यता साबित करवा ही लेते हैं जब दुबले पतले थे तबा मीठा भाता ही नहीं था ज़रा मरा टूँग टाँग लेते । एकाध कोना कुतर लेते और परम तृप्ति । और अब ये हाल है कि मीठा देखते ही मन बेकाबू । बडी मुश्किल से सरपट भागते बिगडैल घोडे से मन को काबू करना पडता है । ये जो आप देख रहे हैं स्ट्रौबेरी वाली , उसका एक फाँक स्ट्रौबेरी उदरस्थ हो चुका है । बडी कठिनाई से फोटो खींचने तक रुका गया । उसके बाद तो 'डेमोलिशन स्क्वैयड ' टूट पडा ।

ये सच है कि इनको देखकर मेरा मन हो जाता है दीवाना सा ।अब मैं कोई 'गूर्मा' तो हूँ नहीं पर अच्छे खाने की थोडी बहुत शौकीन तो हूँ ही । मेरे विशलिस्ट में ये भी है कि कई जगहों प्रदेशों का खाना चखूँ , बनाऊँ । बचपन में एक ब्रिटिश पत्रिका वीमेन एंड होम आती थी । घँटों उसमें दिये खाने की फोटोज़ और रेसिपी देखा करती थी । नये नाम , नये व्यंजन । अब बगल के डिपार्टमेंटल स्टोर में उस ज़माने की पढी हुई सारी चीज़ें मिलती हैं , कैवियर से लेकर बेक्ड किडनी बींस और हाइंज़ सॉस से लेकर डैनिश ब्लू चीज़ तक ।

तय ये किया है कि हर बार कोई नयी चीज़ वहाँ से लाऊँगी । हो सकता है हिट हो जाये । खाने में एक्स्पेरीमेंट , आनन्द ही आनन्द । और ईस्वामी की तरह फ्यूज़न चिकन बनाना , य्म्म्म !


एनिड ब्लाइटन की किताबों में बच्चे जब बटर्ड स्कोन विद क्लौटेड क्रीम खाते तो मुँह में पानी आ जाता । ये तो अभी हाल फिलहाल पता चला कि क्लॉटेड क्रीम एक तरीके का गाढा किया हुआ रबडी नुमा चीज़ है ।

पूर्व और पश्चिम की भौगोलिक दूरी शाश्वत है पर खाने के मामले में हम करीब आते जा रहे हैं । इसी लिये तो लंदन में चिकन करी और गुडगाँवा में टॉरटिल्ला और नाचोस । अमर रहे हमारी स्वादेन्द्रियाँ ।

10 comments:

Anonymous said...

स्वादेन्द्रियों की स्वायत्तता और मन की चंचलता का यह 'गद्य गीत' मत्त कर गया.

Udan Tashtari said...

बहुत तेज भूख लग आई है... :) शाम को आज ज्यादा देर रह लूँगा ट्रेड मिल पर..अभी तो खा ही लेता हूँ!! :)

azdak said...

जो तस्‍वीर में दिख रहा है उसे सीधे खा सकने (भकोसना कहना चाहता हूं, नगरीय संकोच में इस्‍तेमाल से बच रहा हूं) की कोई तरकीब नहीं आपके पास?

अनूप शुक्ल said...

बढ़िया फोटो हैं। स्वाद पता नहीं कैसा है। वैसे ऊपर सबसे दायां कोना देखकर लगता है स्वादेंद्रिय को उसके लिये की सजा मिली है, कटी पड़ी है।

राकेश खंडेलवाल said...

बरफ़ी केक ब्राऊनी सब कुछ रखा हुआ है सामने
लेकिन भूख अभी वैसी है, जैसी दी थी राम ने

मसिजीवी said...

अरे लोगों कोई अवसर तो बता दो इन आधा दर्जन डिब्‍बों को खरीद लाने का। हैप्‍पी बर्थ डे टू यू....प्रत्‍यक्षा।

ePandit said...

देखिए ये गलत बात है ऐसी ऐसी फोटू लगाते हो, या तो कोई ऐसा बंदोबस्त भी करो कि क्लिक करने से उसका भोग भी लगाया जा सके। अपन को तो देखकर ही मुंह में पानी आ गया, वैसे इधर कैलोरी बढ़ने का कोई टेंशन नई, जब भी आपको इस बारे चिंता हो तो ये सब इधर भेज देना जी।

Anonymous said...

पूर्व और पश्चिम की भौगोलिक दूरी शाश्वत है पर खाने के मामले में हम करीब आते जा रहे हैं । इसी लिये तो लंदन में चिकन करी और गुडगाँवा में टॉरटिल्ला और नाचोस । अमर रहे हमारी स्वादेन्द्रियाँ
अगर ऐसे ही करीब बने रहें तो कुछ दिनों बाद सेहत में भी करीब हों जायेंगे, अमरीकी बच्चे आजकल ओवरवेट की समस्या से जूझ रहे हैं।

Poonam Misra said...

'सलैवरी ग्लैन्ड" अपनी पूरी ताकत से लपलपा रहे हैं. मीठे का शौक नहीं है पर तस्वीर और लेख का असर है उनपर!

Anonymous said...

हाँ जी ये वाकई गलत बात है, मैं श्रीश जी से सहमत हूँ, ऐसी तस्वीरें लगा अपने पाठकों के साथ जुल्म नहीं करना चाहिए, यदि एकाध की होती तो कोई बात नहीं थी, अपना मन मार लेते लेकिन इतनी सारी के देख कैसे मारे??

अहा, यम यम ... :( :(