5/10/2006

र्सिफ एक आईसक्रीम के लिये

मेरी निगाह टिकी हुई थी धीरे धीरे बढते हुए अंको पर हर पच्चीस कदम पर एक कैलोरी और .
पसीने की एक छोटी धार र्गदन से होकर कँधों की पेशियों के रास्ते, रीढ की हड्डी पर रास्ता बनाती , बढना ही चाहती थी .
अभी र्सिफ दस मिनट हुए थे . साँस कुछ त़ेज चलने लगी थी . सामने आईने में ,अनवरत ,एक लय से बढता एक पैर , फिर दूसरा .
"स्वींग योर आर्म्स "
प्रशिक्षक की आवाज थी .
बोलने में उर्जा खर्च नहीं किया .उसी ऱफ्तार से से चलते चलते, हल्का सा सर हिलाया .
कुछेक मिनट वह वहीं खडा रहा . मेरी ऱफ्तार और लय को नापता तौलता . फिर लौट गया .
साँस अब मेरी त़ेज चल रही थी . पसीने की धार , नदी बन चुकी थी . रीढ से होती, चुनचुनाती, सिहराती, नीचे . बिना आस्तीन वाली टी र्शट बदन पर चिपक गई थी . बाँहें पसीने से नम . बाल बँधे पर भीगे चिडिया से सर पर चिपके . चेहरे पसीने में नहाया, तमतमाया हुआ .
कैलोरी काउन्टर 185 पर पहुँच गया था . समय ,लगभग साढे अठारह मिनट .ऱफ्तार 7 के आसपास .
कितनी देर और , मेरे मालिक !
आँखें अब सामने आईने से हट्कर कैलोरी काउन्टर पर चिपक गई थीं . दिमाग शून्य . अब और कुछ नहीं सूझ रहा था . अपने आप को सामने आदमकद आईने में देखना भी नहीं .
185 से 200
200 से 215
225, 250
सौ कदम और . अब ऱफ्तार क्म करनी पडेगी . पैर जवाब दे रहे हैं . वैसे भी मेरी स्टैमिना कम है .
नाजुक हूँ . शरीर से नहीं , मन से .
फिर भी कितनी मेहनत कर रही हूँ .
नही, जनाब ! मैं कोई फिटनेस फ्रीक नहीं हूँ . पर क्या करें एक आईसक्रीम के लिये इतना कुछ तो करना ही पडता है . मानते हैं न आप भी .


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( ये लेख "शब्दाँजलि में छप चुका है)

11 comments:

पंकज बेंगाणी said...

माफ किजीए. मैरे पल्ले नही पडा....

Anonymous said...

पहले बार मै आपका blog पढ रहा हूँ. अछ्छा लगा.

हॆमन्त

Pratyaksha said...

ट्रेडमील की व्यथा कथा है पंकज, ज्यादा और कुछ नहीं

Sunil Deepak said...

मैंने एक आईसक्रीम डाइट के बारे में सुना था, जिसमें कहते थे कि केवल आईसक्रीम ही खाईये, वजन अपने आप ही घट जायेगा. :-)
वैसे मैं स्वयं भी सोने से पहले रात को अक्सर सोचता हूँ कि कैसे वजन कम किया जाये पर अभी तक ट्रेडमिल पर चढ़ने की हिम्मत नहीं हुई.
सुनील

Udan Tashtari said...

अरे,यह रोना तो मेरे साथ भी है,मगर ट्रेडमील से बचने के लिये मैने आईसक्रीम खाना ही छोड दिया। गुस्सा तो ईस बात का है कि बढत मे फिर भी कोई कमी नही आ रही है।;(
समीर लाल

Jitendra Chaudhary said...

कुछ महीने पहले श्रीमती जी ने बांस बरेली कर दिया था, ट्रेडमिल लाओ,ट्रेडमिल लाओ, बाहर जाने मे दिक्कत होती है(धूल भरी आंधियों की वजह से), फिर मोटापा,कैलोरी,बीमारी और ना जाने कौन कौन से बनवारीलाल के किस्से सुनाए।कुछ दिन झेला,फिर एक दिन खुन्नस मे आकर जेब ढील करके मंहगा वाला(काहे? स्टोरी लम्बी है,बाद मे) ट्रेडमिल लाकर दे दिया, अब ट्रेडमिल बेचारा एक किनारे पड़ा धूल खा रहा है और अपनी किस्मत को रो रहा है, और मै जब भी श्रीमती जी टैडमिल की बात करता हूँ तो उन्हे घुटनो का दर्द सताने लगता है। ये लेडीज ऐसी क्यों होती है यार?प्रत्यक्षा तुम ही बताओ।

Pratik Pandey said...

आपने इस प्रविष्टि में जितनी महनत का उल्लेख किया है, उस हिसाब से तो आप अब पूरी ब्रिक खा सकती हैं।

ई-छाया said...

प्रत्यक्षा जी, बेहद खूबसूरत लिखती हैं आप, कभी मैने भी व्यायाम किया है :)), यादें ताजा कर दीं आपने। वैसे मै प्रतीक जी की बात से सहमत हूँ।

अनूप भार्गव said...

अभी एक नयी 'रिसर्च' से पता लगा है कि 'वीकेन्ड' पर ली गई 'कैलोरीस' काउन्ट नहीं होती । खबर की पुष्टि तो नहीं हुई है लेकिन सच माननें को जी चाहता है ।

संगीता मनराल said...

अच्छा लेख लिखा है| वैसे मैं भी आईसक्रीम कि दिवानी हूँ| अनूप जी काश वो "रिसर्च" वाली बात सच हो जाये :-) तो मज़ा ही आ जायेगा|

Basera said...

भार बढ़ाने के लिए भी कोई ट्रेडमिल्ल होती है क्या? आज ही ले आऊँ।