किससे बात करें ? क्या बात करें ? गालों पर पेंसिल टिकाये सोचते हुए चेहरे दीखते हैं , सोच की घरघराती मशीन का वाजिब प्रॉडक्ट क्या है, हाथ नहीं आता । हाथ आता है, स्वाति ? स्वाति मेरी तरफ देख रही है, दीखता है, वाकई सुन पा रही है ऐसा नहीं लगता । लंच के बाद बेसमेंट के कॉरिडोर के भीड़ के अकेलेपन में फिर अपना शिकायतनामा पढ़ेगी, ‘ तुम आजकल बात नहीं करती !’ भीतर कोई बात थी , तैर रही थी , एकदम से ठहर जाती है , स्वाति इज़ राईट , बहुत कर लिया , अब करती- करती थक गई हूं , लेट मी थिंक फॉर अ मिनिट । ज़रा साथ सोच लें , स्वाति , बुरा तो नहीं मानोगी ना ?
मौसम , ट्रैफिक , अखबार के हेडलाईंस , बिजली की आउटेजेस , दफ्तर की पॉलिटिक्स , कामवाली के नखरे और माईग्रेन की दहशत , उसके बाद ? उसके बाद क्या , कोई बतायेगा मुझे ? जीवन बीतता रहता है । रीतता रहता है , मतलब की बात नहीं आती पकड़ में। बारिश की झड़ी में भीतर समटाये , काले घने बादलों को देखते सिर्फ खुद से हो सकती है बात । तुम्हें बुरा लगता है तो आई एम हर्ट, स्वाति , बट दैट इज़ हाउ इट इज़ ।
बच्ची की उँगली हथेली में थामे मैं पूछती हूँ उससे , बच्चे मुझसे बात करो । बच्ची हाथ छुड़ाती भागती है , अभी नहीं बाद में । बाथरुम , डिनर, मां का फ़ोन , कुर्सी पर बैठे- बैठे जाने कब झपकी आ गई के बाद बालकनी में लगा कोई चिड़िया आकर बैठी है , होश में लौटती , हाथ तोड़ती बालकनी में झांकती हूं तो कोई चिड़िया नहीं दीखती । चिड़िया का पर भी नहीं दीखता । दोस्त से पूछती हूँ , आखिर क्यों करते हैं बात हम ? मिलता क्या है आखिर ?
दोस्त बिना जवाब दिये जारी रहता , कॉफी की घूँट के बीच व्यस्त कहता है , समय नहीं है इसके लिये , पहले ये तय करो कि कुछ मिलना ही क्यों ज़रूरी है । व्हाई यू आर सच अ मटीरियलिस्ट ? बात से भी कुछ पा जाओ ऐसी बुर्जुआ आकांक्षा , रियली दिस इस द लिमिट ।
दफ्तर में कोई और दिन । कामों के शोर में मतलब के खालीपन से भरा दिन । सहकर्मी से फाईल्स निपटाते बीच में पूछ लेती हूँ , तुम क्यों करते हो बात ? भौंचक देखता , कहता है पहले ये फाईल निपटा लें ? फुरसत मिली फिर तो बैंगलोर में एक घर खरीदने की बात चल रही है उसके बारे में तुमसे राय लेनी है ?
कैफेटेरिया में खाने की मेज़ पर देखती हूँ , तश्तरी और चम्म्च की खनक के बीच , बात को कटोरियों से होते , नमकदान से गुज़रते , नैपकिंस की तह में खोते । वही, खाने में आज तीखा कम है , तेल ज़्यादा है , सामने लगे टीवी पर राखी सांवत है , पीछे दीवार पर टंगी पेंटिग में अफ्रीकी औरत है , अक्वेरियम टैंक में तैरती , गोल गोल गप्पी मछलियाँ हैं , बात कहीं नहीं है । नोव्हेयर । और डैम्म , क्यों नहीं है कि चिंता किसी को नहीं है ।
रात को चैट मित्र से हरी बत्ती टिमटिमाते ही , क्या खबर में कोई खबर नहीं का रसीद नत्थी करती , चैट लिस्ट की सब लाल हरी बत्ती को नमस्कार करती पूछती हूँ , अच्छा सोच कर बताना , आज कोई बात जैसी बात हुई ?
सबकी रौशनी गुल हो जाती है ।
याद आता है बरसों पहले किसी ने कहा था , तुम बड़ी अजीब बातें करती हो ।
फताड़ू के नबारुण
1 month ago