सुना था
कुछ ऐसे वृक्ष
होते हैं,जो
निगल जाते हैं
मनुष्य को समूचा
मेरे अंदर भी
उग आया है
एक पूरा जंगल
ऐसे वृक्षों का
सोख रहा है जो
धूप का हर एक कतरा
आँखों से जब कभी
खून के आँसू
ट्पकते हैं
तब पता चलता है
काँटों से बिंधा शरीर
और क्या उगल सकता है ?
एक कँटीली बाड
ओढ ली है मैने
कहीं ये जंगल
जो मेरे अंदर
पनप रहा है,
बाहर निकल कर
समेट न ले
मेरे आसपास की
दुनिया को भी
अपनी पुख्ता शाखों में
ये कँटीली बाड
इस जंगल को तो
रोक लेगी
बाहर अगने से
पर मैं ये भूल गई थी
कि बाहर की धूप भी तो
बहिष्कृत हो गई है
अंदर आने से
फताड़ू के नबारुण
1 month ago