असफुद्दौला तुम्हारे जूते की नोक पर किसका तस्मा फँसा है ? तस्मा ?
असफुद्दौला नीचे देखते हैं , वहाँ कुछ भी तो नहीं है, न तस्मा न जूता न पाँव । फिर ठठाकर हँसते हैं , अच्छा तस्मई और तासीर
बेग़ैरत बेवफा बे नियाज़
पीछे मेंहदी हसन गुनगुनाते हैं ,नमक घुली तासीर
नावक -अंदाज़ जिधर दीदा –ए -जानाँ होंगे
नीम -बिस्मिल कई होंगे कई बे -जाँ होंगे
आवाज़ की नमक घुल जाती है , त्वचा की ?
आज हम अपनी दुआओं का असर देखेंगे
तीरे नज़र देखेंगे , ज़ख्मे जिगर देखेंगे
तस्मे का एक रेशा फँसा है , एक केसर का । जीभ की नोक बार बार वहीं लौटती है कमबख्त
कहते हैं ये वही समय है जब धूप छिटकती है बदन पर , और स्याह सदा मन पर
असफुद्दौला धीमे बुदबुदाते हैं परिन्दा फ़ाख्ता , बदजात
पहाड़ा रटते हैं , हिज्जे ..आलिफ बे ते
शाम के समय ऐसे बदसगुन न उचारो .. धानी चूड़ियों की किरचें समेटती औरत उसाँस भरती है ।
कहती है हम तो सदा से ऐसे ही थे , ज़रा मक्कार ज़रा भोले , गर्मी के दिन में पानी के छपाके
सुरमई तसमई तासीर , ठंडी सर्द तासीर जैसे ठंडी आह के रसीले लजीले अफसाने
औरत झुकती सचमुच शरमाती है , नीम बिस्मिल कई होंगे ....
(बी प्रभा की पेंटिंग)
7 comments:
sundar rachna ke sath penting bhi sundar
नज़्म !! कुछ नहीं सूझा... जाने दिया ... पास
गुज़रा नज़र के सामने हर लफ्ज़ तुम्हारा,
न समझ में आये तो, तेरा दिल समझ में आ गया।
हाय!!! डूब गए है ...अब जरा देर से निकलेगे
missed the plot here! :-(...must be my grey cells....
कौन गाव,देश काल..दुनिया है ये.......?
किस अन्जानी,अलहदा,गुम्शुदा जगह कि बाशिन्दि हो....??
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लजीले अफ़्सानो का रन्ग कहा से ले आई ???
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