9/01/2007

किताबों के बीच

कमरे में ड्रेसर के ऊपर मैं कुछ किताबें रखती हूँ । फिर पलंग के पास हाथ बढाकर छू सकने वाली दूरी पर शेल्फ में भी कुछ किताबें रखती हूँ । जो किताबें पढी जा रही हैं वो पलंग के पास और जो पढी जाने वाली हैं या साथ साथ कुछ अंतराल पर पढी जा रही हैं वो ड्रेसर टॉप पर । ये किताबें बदलती रहती हैं । पहले ये रफ्तार तेज़ होती थी । टर्नओवर फास्ट । अजकल काफी धीमा हो गया है । किताबें भी कई कई एकसाथ पढी जा रही हैं । पहले यही बात कोई कहता तो मैं हैरान हो जाती । डूब कर एक किताब खत्म करने के बाद ही दूसरे को हाथ लगाती । लेकिन अब ऐसा छूटता जाता है । दोस्त कम हो रहे हैं और किताबें , एक समय पर पढी जाने वालीं , बढ रही हैं । ड्रेसर पर की किताबों में जो पलटे पढे जा रहे हैं , प्रियंवद की भारत विभाजन की अंत:कथा , नायपॉल की द मिमिक मैन , मार्खेज़ की द औटम ऑफ द पैट्रिआर्क , डगलस ऐडम्स की हिचहाईकर्स गाईड टू द गैलेक्सी , पालीवाल की भक्तिकाव्य से साक्षात्कार , पामुक की स्नो। मुराकामी पलंग के बगल में हाथ से छूने की दूरी पर हैं । बीच बीच में साईनाथ के कुछ चैपटर्स भी पढ रही हूँ ।

गाडी में भी हमेशा कुछ किताबें पडी रहती हैं । पता नहीं कब किस लाल बत्ती पर घंटे दो घंटे की फसान हो जाय , तब मंसूर सुना जा सकता है या फिर किताब पढी जा सकती है । तो ऐसे किसी औचक अवसर के लिये , जो अबतक आई नहीं है , किताबें गाडी में भी रखी रहती हैं , हैदर और इस्मत चुगताई और निर्मल वर्मा , फिलहाल । कल कुर्र्तुलएन हैदर की श्रेष्ठ कहानियाँ गाडी के पिछले सीट पर से उठा लाई । कलन्दर और डालनवाला फिर फिर से पढी । ज़िलावतन पढने की हुमस हो रही है । जितनी किताबें साथ साथ चलती हैं उतनी ही वो भी अपना प्रेसेंस बनाये रखती हैं जिन्हें पहले पढा हो । दिमाग में किताबें कैसे गडमड अपनी अपनी जगह बनाये रखती हैं । टेक्टोनिक प्लेट्स के हिलते रहने जैसे पता नहीं कब कौन सा परत ऊपर आ जाये और कौन सी किताब का कौन सा पात्र दरवाज़ा ठकठका दे । दूसरे कमरे में , जहाँ और किताबें रखी हैं वहाँ कोई याद आई किताब ढूँढ लेना महान काम है । तब जब आपके मन पर उस किताब का कवर , लिखाई सब तस्वीर जैसे साफ हो । किताब का न मिलना तब कैसा त्रास दायी होता है । दाँत में फँसे अमरूद के बीज जैसा कुछ अजीब अटका सा । कल से पानू खोलिया की किताब सत्तरपार के शिखर खोज रही हूँ । एक दोस्त से किताबों की चर्चा हो रही थी । पानू खोलिया का ज़िक्र कुछ याद करते करते हुआ । तब से अटके हैं पानू पर ।

पानू खोलिया नहीं मिले लेकिन और कुछ किताबें मिल गईं , इन्नर कोर्टयार्ड मिली और डार से बिछुडी मिली , तालस्ताय मिले और जेन औस्टेन मिलीं । चाँदनी बेगम मिली और मित्रो मरजानी मिली । ये सारी किताबें ड्रेसर पर आ गई हैं । घर में थोडा हंगामा मचा है कि एक बार में इतनी किताबें कैसे कोई पढ सकता है , कुछ तो हटाओ यहाँ इस कमरे से । और मैं सोचती हूँ थोडा थोडा सबसे मिलूँ फिर से ।

18 comments:

अनिल रघुराज said...

बाप रे, इतना सारा पढ़ती रहती है आप। कमाल है! चलिए बहुत सारी किताबों के नाम आपके जरिए पता चल गए। मैं भी इन्हें खरीदकर लाकर रखने की कोशिश करूंगा।

Rajesh Roshan said...

किताबो के मामले में मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ हो जाता है :)

azdak said...

बस इतनी ही किताबें पढ़ती हैं? और अपने को बड़ पढ़वैया लगाती हैं? निर्मल वर्मा में अब तक फंसी हुई हैं? और कृष्‍णा सोबती? ओह!

चंद्रभूषण said...

इतना पढ़ती हैं और चश्मा भी नहीं लगातीं?

Yunus Khan said...

अच्‍छा है । अरे जब किसी पुरानी पुस्‍तक की याद आये और फिर पता चले कि
किसी मित्र ने उधार ली थी फिर वो 'कॉरपोरेट जिलाबदर' हो गया ।
सच मानिए गोली से उड़ा देने की इच्‍छा होती है ।
हमारे साथ यही हुआ है । जाने कब से 'नौकर की क़मीज़', 'रागदरबारी',
परसाई की कई किताबें, एक ईरानी लेखक की हस्‍तरेखाएं पढ़ने की किताब,
आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी की पुस्‍तकें । और हाल ही में 'इनहेरिटेन्‍स आफ लॉस' सब की सब
उधारिये मांग के ले गए ।
आप ही बताईये क्‍या करें ।

अभय तिवारी said...

पामुक और मुराकामी.. मैं कब पढ़ूँगा..ह्म्म्म..मैं भी हेडरेस्ट पर धर लेता हूँ इन्हे..

Udan Tashtari said...

पढ़िये --पढ़िये!! शुभकामना. फिर सबके बारे में एक एक पन्ना लिख दिजियेगा..वही पढ़कर हम भी भीड़ में अपने आपको पढ़ा लिखा साबित कर लेंगे.

बोधिसत्व said...

पिछले 6 साल में मैंने सबसे अधिक पढ़ाई गाड़ी में पीछे बैठ कर या बस और ट्रेन में की है। मैं कुछ-कुछ अध्याय करके पढ़ता हूँ। एक किताब महीनों में पढ़ी जाती है। बिना पढ़े आज तक नहीं सोया हूँ और पढ़ते पढ़ते मरने की चाहत है।
जो किताबें खो गईं उनकी बहुत याद आती है। दोस्तों ने जिन्हें नहीं लौटाया उन्हे फिर खरीदा। 102 किताबों की की दो प्रतियाँ पिछले साल घर में थीं। कुछ दोस्तों को दीं कुछ अपने भाई को भेंज दीं। खो गई किताबों के तकाजे किए पर किताबों के लिए दोस्तों को गाली और गोली दोनों नहीं मार सकता ।

Anonymous said...

बढ़िया है। लेकिन हम तभी मानेगे जब पढ़ी गयी किताबों के बारे में रिपोर्ट पेश की जायेगी।

Anonymous said...

aapko samajhna mushkil ho gaya hai. likhne ke nam par to sangharsh rahit komal photo dikahayengi aur ab bade bade lekhkon ka nam gina kar ek baudhik aatank paida karne ki koshish kar rahi hain. kitabon ki guniye unke hawale se garajiye mat.

ANPARH PANDE, LUCKNOW

siddharth said...

good articales and i appriciate u for ur efforts.i try ti readout all , but someother day.keep itup. thankyou

Reyaz-ul-haque said...

कुछ और किताबें

* अग्निदीक्षा
* देशेर बात
* नवसाम्राज्यवाद के नये किस्से
* एकोत्तरशती
* खट्टर काका
* संघर्ष
* सांग आफ़ यूथ
* आदिविद्रोही
* अमेरिकन
* आयरन हील

कुछ पुरानी हैं-कुछ नयी, पर ज़रूरी.

Gyan Dutt Pandey said...

महान पढ़ाकुओं की 12 टिप्पणियां! तेरहवीं टिप्पणी वैसे भी ज़िक्स्ड होती है!
खैर मैं यही दर्ज करना चाहता हूं कि पुस्तक ईश्वर (या मानव) की लाजवाब कृति है. हर लाजवाब कृति को निहारना अच्छा लगता है पर परखना/पढ़ना कठिन होता है!

Anonymous said...

छवि सुधारने का अच्छा प्रयास है... कि देखो मूढ़मतियों... !!! एक तुम हो जो दिन रात टीवी से चिपके रहते हो बज्रमूर्खों. और एक मैं हूँ जो ....

कभी सुना है नाम इतनी किताबों, इतने लेखकों का. और हाँ... मेरे पास गाड़ी भी है. यानी कार और उसमें बैठकर भी मैं पढ़ती हूँ.

अजित वडनेरकर said...

बहुत खूब। एक साथ कई पुस्तकें तो हम भी पढ़ते हैं। एक वक्त में एक से काम नहीं चलता और संभव भी नहीं लगता। कुछ बरस पहले खरीदी मार्कोपोलो की आत्मकथा को ढूंढ रहा था। फिर पढ़ने का मन था। दीदी के घर पर पर मिली साथ ही आठ नौ और पुस्तकें भी जो वक्तन फ वक्तन उन्हें पढ़ने दी थीं। विस्मृत खजाना मिलने की खुशी शायद ऐसी ही होती होगी।

Anonymous said...

kitni parhi likhi hain yah sab aapki kahaniyon se pata chal jata hai. ab is tarah apn tathakathit parhaku hone ka nagn pradarshan kyon karrahi hain aap?

AC car me baith kar kitab parhna aur uska yun dhidhora pitna ek ashlil vilasita hai.

azdak said...

अबे, बेनामी इल्‍लो-टिल्‍लो-बिल्‍लो! घर में मम्‍मीजी ने नाम पब्लिक में लेना नहीं सिखाया था, कि किताब की दुकान बाहर खड़े होकर आप इन्‍हीं बेनामी-दाग़दार अदाओं का रियाज़ कर रहे थे? कार नहीं है आपके पास? तो इसके लिए सार्वजनिक शोक-सभा का आयोजन किया जाए? कंप्‍यूटर अपनी है या वह भी बेनामी अदाओं की करतब से लहायी गई है? जीवन में किताब कभी पढ़ी है? नहीं पढ़ी होगी? क्‍योंकि किताब पढ़ाई की तो तमीज़दार आपकी ज़बान लगती नहीं? मगर नहीं पढ़ी है तो पढ़नेवालों से खार खाने की कसम तो मम्‍मीजी ने नहीं खिलाई है ना? किसी और ने खिलाई है? मैं उन चवालीस किताबों का ज़ि‍क्र करूं जो साथ-साथ पढ़ रहा हूं? फिर क्‍या करेंगे आप.. कांखेंगे या बगल में खड़े होके पादना शुरू करेंगे? गंवार कहींके!

Neelima said...

अच्छा विवाद चल रहा है यहां ! इस बहाने सबका पुस्तक (प्र )दर्शन बाहर आ रहा है!