4/05/2007

पहले चूज़ा या अंडा

पिछले दिनों बहुत सरगर्मी रही । कभी चावल भर कटोरी बाहर जा रही है , कभी जतन से प्याले में पानी । कभी कूट का इंतज़ाम हो रहा है । धूल में घुटने सने , तिनके ,पता नहीं कहाँ से बटोर लाये
तिनके न मिले तो हरी पत्तियाँ भी , पतली टहनियाँ भी चलेंगी । फोन पर लगातार सहेलियों से गुप्त मंत्रणा । पास जाओ तो आवाज़ में फुसफुसाहट । और ज्यादा करीब गये तो , अभी जाओ ,हमारी इम्पॉर्टेंट बात हो रही है ।

सहेलियाँ , झुँड की झुँड आतीं , कमरे का दरवाज़ा बन्द ।
क्या हो रहा है, कि गुहार पर अंदर हँसी ,फिर फुसफुसाहट । उनसे भी इन दिनों दोस्ती हो गई जिनसे हाल हाल में जीवन भर की दुशमनी , कुट्टी हुई थी । लग रहा था कि इनकी पॉपुलैरिटी अचानक आसमान छू रही थी ।

हम भौंचक । भई आखिर हो क्या रहा है हमारे घर में । हमीं कुछ नहीं जान रहे ।अरे भाई हमें भी कोई बताओ । लेकिन नहीं । आखिर एक दिन ऐलान हुआ । आवाज़ गुरु गंभीर । ऑफिस में दोपहर को फोन आया । हमारे घर एक शैतान आया है । रहस्य अब भी रहस्य था । बहुत विनती , मिन्नत करने पर भी सिर्फ खिल खिल हँसी ।

शाम ये देखा ,

स्वागत है महारज

और अगले दिन , ये लो दूसरा भी ...

और ये दूसरा भी

16 comments:

Anonymous said...

वाह! सुनते आये थे हम अंडे से चूजा पैदा होने के बारे में। आज पहली बार देखा। बहुत अच्छा लगा फोटो देखना! अद्भुत! बधाई फोटोग्राफर को!

Jagdish Bhatia said...

बहुत खूब!

पंकज बेंगाणी said...

हमारा घर तो कबुतरों का प्रसुति गृह है प्रत्यक्षाजी. :) वैसे चुजे प्यारे हैं.

Anonymous said...

चित्र और शब्दों में सिमटी बचपन की मस्ती सुन्दर है।

चलते चलते said...

प्रत्‍यक्षा जी अच्‍छा लगा। फोटो अदभुत हैं। आपने लिखा है पहले चूजा या अंडा। लेकिन मैं अपने ब्‍लॉग पर जल्‍दी ही लिखूंगा....वल्‍लाह कमाल है मुर्गी काली और अंडा सफेद। इसके पीछे एक कहानी है जो 1989 में नागपुर से शुरु हुए अखबार लोकमत समाचार में बनी और आज तक वहां कही जा रही है, जबकि इस संस्‍थान को मैंने 1989 में ही छोड़ दिया था। पुराने मित्र आज भी कहते हैं कि कमल.... वल्‍लाह कमाल है मुर्गी काली और अंडा सफेद।

रजनी भार्गव said...

प्रत्यक्षा, बहुत अच्छी फोटोग्राफ हैं और साथ में
विवरण भी.

Anonymous said...

फोटो ना दिखने पर ;( अब सबने आपकी फोटोग्राफी की तारीफ की है तो कृपया ये तस्वीरें मुझे मेल करें।

Anonymous said...

प्रत्यक्षा जी, बताइये बेटी को कि ये उन्हे जितने अच्छे लग रहे हैं, उतने ही बडों को भी!

अनुराग मुस्कान said...

पसोपेश में हूं कि किसकी फ़ोटो ज्यादा अच्छी है- अंडे की, चूज़े की या फिर आपकी :) बहरहाल, कविता शैली में कही गई आपके मन की बात फोटुओं से कम नहीं :)

अनूप भार्गव said...

ओह ! तो ऐसे आती है अंडे से मुर्गी !!!!!

Udan Tashtari said...

बहुत सही फोटो ली गई है और वर्णन भी पसंद आया. :)

Anonymous said...

बधाई हो, जच्चा-बच्चा ठीक से तो हैं न? आपने जिस तरह से ग्लोबल लेवल पर ऐलान किया है, तालियों के साथ जियो-जियो रे लला गाने वालों को बख़्शीश बाँटने के लिए तैयार हैं न आप?
वैसे गुत्थी अभी सुलझी नहीं है, पहले चूज़ा या अंडा में तो पहले अंडा ही होगा...लेकिन पहले अंडा या मुर्गी का जवाब बाक़ी है...कहीं वह भी गुड़गाँव से न आए...मज़ा आया कुल मिलाकर.
अनामदास

Anonymous said...

यानि कि ये तय हो गया है पहले अंडा आया फिर चूजा/मूर्गी ;)

Poonam Misra said...

बहुत अच्छा. मैं कल्पना कर रही हूँ पाखी और उसकी सहेलियों की खुसपुसाहट और मस्ती की.बचपन लौट आया

Anonymous said...

ऐसा है क्या ? मै तो अब तक गलतफहमी मे था!
मै तो सोचता था कि जिसका आर्डर पहले दोगे वो आयेगा!

Pratyaksha said...

हेल्थ बुलेटिन ये कि जच्चा बच्चा स्वस्थ सानंद हैं बावज़ूद पाखी के , जो उन्हें धूप , धूल , अंधड से बचाने के तरीके ,उपाय खोजती रहती है ।

कबूतर बच्चे खूब तेज़ी से बढ रहे हैं । कलियुग है कि बिना घोंसले तिनके के , सिर्फ मिट्टी के गमले में बच्चे पैदा , पल बढ रहे हैं ।

शुएब , तुम्हारा ईमेल क्या है , फोटो भेजती हूँ , वाकई अच्छे हैं :-)

पाखी को ये पोस्ट और टिप्पणियाँ दिखाई । अब वो और ज्यादा महत्त्वपूर्ण महसूस कर रही है ।