10/31/2006

ओ मधुमक्खी

ये तस्वीर है मेरे भतीजे दिव्यांश की । इसे हम प्यार से दिवि पुकारते हैं । दिवि महाराज ने हाल में ही प्री स्कूल जाना शुरु किया है । ये सिंगापुर में रहते हैं ।
ये तस्वीर ली गई उनके स्कूल के कंसर्ट वाले प्रोगराम से जहाँ वो मधुमक्खी बने थे । दायीं ओर वाला बच्चा दिवि है । अब आप बताइये जब मधुमक्खी इतनी सुंदर है तो फूल कितने सुंदर होंगे ।

दिवि

ओ मधुमक्खी
कितने फूल देखे
कितनी वादियाँ घूमे

आओ अब सुस्ता लो
बैठो कुछ पल
और हँसो

हँसो कि
हम भी खुश हो लें
हँसों कि
हम भी
मुस्कुरा लें

कि हम भी
घूम लें तुम्हारे संग
फूलों भरी वादियों में

10 comments:

विजय वडनेरे said...

प्रत्यक्षा जी,

हमें तो पता ही नहीं था कि जहाँ हम रहते हैं वहाँ इतनी सुँदर सुँदर मधुमक्खियाँ होती हैं. :)

वैसे जब वो "भतीजा" है तो वो - मधुमक्खा होगा ना??

:D

Anonymous said...

मधुमक्खा!!
तथा उससे प्रेरीत कविता दोनो ही सुन्दर हैं.

राकेश खंडेलवाल said...

क्योंकि पुष्प का आमंत्रण ही सुन्दरता को रहा निखार
तभी हुआ है मधु से पूरित चंचल बचपन का संसार
जो अबोध हैं वही बोध का अर्थ सत्य समझाते आये
सौम्य शिवम भर कर नयनों में फिर सुन्दरता रही निहार

Pratik Pandey said...

मधुमक्खी खुद फूल जैसी ही सुन्दर है।

Anonymous said...

मधुमक्खी पर लिखी कविता और मधु भरी मुस्कान दोनों मीठी है।

Udan Tashtari said...

वाह प्रत्यक्षा जी, खुबसुरती का नायाब मिश्रण आपकी कविता और शिवम की मुस्कान में. बहुत बढ़ियां.

Anonymous said...

मधुमक्खी बहुत प्यारी और सुंदर है कविता भी पसंद आई

अनूप शुक्ल said...

बढि़या है. लेकिन सुना है मधुमक्खी काटती भी बहुत जोर से है.

Anonymous said...

मधुमक्खी फूलों जितनी ही सुंदर दिख रही है....मेरा मतलब है फूल खुबसूरत तो मधुमक्खा हैंडसम

Anonymous said...

ठंडी-ठंडी बूँद पड़ीं है
ठंडी-ठंडी बूँद पड़ीं है

पापा, नीली पैन्ट ना पहन के निकलें
कल परसों ही नई सिली है !

ठंडी-ठंडी बूँद पड़ीं है....
:)

मधुकीट ने मन मोह लिया !