फिरंगी , पियर , नेरो, कालू , लिला और पन्ना ..यही नाम तय किये गये थे । नेरो लैटिन में काला , ऐसा बताया गया था । इस तथ्य की पुष्टि नहीं की गई थी , बस मान लिया गया था क्योंकि नेरो अच्छा सुनाई पड़ रहा था । दो काली थीं इसलिये नेरो और कालू । एक गुलाबी थी इसलिये लिला , जर्मन में फूल , गुलाबी नाज़ुक फूल । फिर जो नारंगी थी सो फिरंगी थी और जो पीले थे सो पियर , भोजपुरी वाला पियर और बाकी थी पन्ना , इसलिये कि पन्ना मुझे पसंद थी । पन्ना पीली पन्ना पुखराज । तो ये थे हमारे बाबू गुलफाम नये मेहमान !
बच्ची ने पूछा ,मैं इनको चूम नहीं सकती ? मैं इनको बाँहों में नहीं भर सकती ? मैं इनकी पीठ सहला नहीं सकती ? बच्ची शीशे के गोल मर्तबान को बाँहों में घेर बैठ जाती ।
माँ काम करती इधर उधर गुज़रती , देखती बच्ची मर्तबान के आगे ठुड्डी टिकाये तन्मय बैठी है , जो कभी मिनट भर चुप न होती हो सो चुप हो और मछलियाँ बेखबर। आईपॉड से निकलते धुन के परे उनका नृत्य चलता । बच्ची विश्वास करना चाहती कि उनकी हरकत धुन की संगत की है । उसकी उँगलियाँ शीशे पर धीमे फिरतीं । मछलियाँ अचक्के कभी उस तरफ आतीं फिर सूई की तेज़ी से फिर फिर जातीं ।
बच्ची बेजार होती कहती ओह ये कभी पालतू होंगी ? मैं कहूँ लिला तो लिला आयेगी उधर ? जिधर मेरी उँगली पुकारती उसको ? माँ उबासी लेती कहती तुम पहचानती हो लिला है कि फिरंगी है ? माँ गुपचुप मुस्कुराती , देखती बच्ची कितनी तो बच्ची है अब तक ।
बच्ची हफ्ते भर तक देखती परखती आखिर निराश होती कहती , माँ क्या अच्छा हो अगर तुम मुझे एक बिल्ली ला दो या फिर कोई प्यारा नन्हा पिल्ला ? माँ कहती तुम्हारी मछलियाँ ये सुन दुखी नहीं हो जायेंगी ?
बच्ची दुखी भारी आवाज़ में कहती , माँ लेकिन मछलियाँ बिल्ली नहीं होतीं । एक दिन पाया गया कि बच्ची मर्तबान में हाथ डाल कर उन्हें सहलाने दुलारने की कोशिश में है । पियर बाबू भागे भागे फिरे । लिला तो सबसे नाज़ुक नन्हीं परीजान दुबक कर तल में छिपी बैठी , नेरो और कालू प्यारा कार्लो काली गोल गोल भागम भाग चक्कर घिन्नी खाये और मेरी पन्ना चौंक चौं गप्पा गप्प मुँह फकफक किये उँगली के गिर्द फिरती दिखें । फिरंगी जाने किस शोक शॉक के असर में अगले दिन सतह पर उलटे दिखे । फर्स्ट कैज़ुअलटी । बॉलकनी के कोने में रखे बड़े गमले की नम मिट्टी में उनका डीसेंट बरियल हुआ । अब पाँच रह गईं । माने लिला जो गुलाबी होने के नाते फिरंगी नारंगी से सबसे नज़दीक थी , सो रह गई अकेली । पर इस हादसे के बात तय बात थी कि बच्ची को समझाया जाय कि बाबू बच्चा प्यारा मछली मछली होती है , नर्म रोयेंदार ऊन का गोला नहीं , प्यारी दुलारी किटी नहीं जिसके रोंये की नरमाहट हाथ को सुख दे । मछली तो सिर्फ नयन सुख देती है , आँखों की हरियाली । शीशे के पारदर्शक बरतन में घूमती नाचती रंगीन तितली , लहराती तिरती तैरती परियाँ ।
बच्ची को , सोचते हैं एक बिल्ली ला दें । बिल्ली अपने ऐटीट्यूड में घर भर घूमेगी । मछलियाँ अपने मर्तबान में । फिर सोचते हैं मछली और बिल्ली का कॉम्बिनेशन खतरनाक है । बच्ची आजकल मछलियाँ देखती है , तन्मय हो कर । फिरंगी को तल कर खा जाने की बात भूल चुकी है । बच्ची आजकल गाना गाती है ,मर्तबान के आगे बैठकर होंठ शीशे से सटाये । पियर या पन्ना मुँह गप्प गप्प करती बच्ची के होंठ की तरफ आती हैं । घर के एक खाली कोने में आजकल बहुत सारा लय है ।
8 comments:
बहुत अच्छी प्रत्यक्षा. एक खूबसॄरत कविता भी लगी।
सुन्दर !
बच्ची को मछली ..होना
बिल्ली....नको :)
ओर मै "नीमो "के प्रेम में डूबे एक बच्चे ओर उसके बाप को याद करता हूँ.....ओर उस बचपन को भी फ्रीज़ .....
मछलियाँ बिल्ली नहीं होतीं....
मगर एक CATFISH होती है !!
दोनों एक साथ होना खतरनाक।
बचपन में मामी लायी थीं ....उन्हें बहुत पसंद थीं.... फिरंगी, पियर, पन्ना पुखराज और नेरो ....
बस वही प्रश्न हमेशा, कैसे लिख लेती हैं आप ऐसा?
मछली तो सिर्फ नयन सुख देती हैयहां तो पढ़नसुख मिला।
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