मैं सपने देखने के सपने देखता हूँ ।
हवा तेज़ चलती है , सीटी बजाती और गौरैया फुदकती है खिड़की के सिल पर ,रेडियो सिलोन पर पुराने गाने बजते हैं, प्रीतम आन मिलो ....और बाहर सड़क पर सिलबट्टे कूटने वाला फेरी लगाता है सुनसान सड़क पर , अकेला
सब दरवाज़े बन्द हैं , एक परिन्दा तक झाँकता नहीं सिर्फ एक लाल चेहरे वाला लंगूर सफेद चूने लगी छत पर से ताकता है , बिटर बिटर आँखों से , कपड़े तार पर फड़फड़ाते हैं , अबरक लगे दुपट्टे और कलफ की गई पाँच गजी साड़ियाँ और सफेद पजामे के नाचते पैर, बिन बाँह की नीली शमीज़
शायद जब बादल घुमड़ेंगे तब मोर नाचेगा अपने पँख फैलाकर
शायद उसका एक जादू गिर जायेगा , फिर टंग जायेगा उस दीवार पर जिसमें एक खिड़की खुलती है , रंगीन छीटदार परदे के पीछे
बाबू रात को बारह बजे तक लैम्प की रौशनी में पढ़ेगा , माँ रात को एक गिलास हॉरलिक्स रख जायेगी फिर,बिवाई वाले तलवे पर वेसलीन मलेगी , बिंटी पॉंन्ड्स ड्रीमफ्लॉवर टॉल्क अपने गरदन पर छिड़क कर डूब जायेगी उमस भरे नींद में
रात के अँधेरे में बहादुर की जागते रहो गूँजेगी , फिर लाठी की ठकठक और तेज़ सीटी , चाँद साक्षी है ... साक्षी है तब जब टीवी पर देर रात देखता है कोई पेरिस ज़तेम और सोचता है इस समय का हो कर भी इस समय का मैं नहीं
मैं पन्ने पलटता हूँ , ये दुनिया झप्प से ओझल हो जाती है, शब्दों का बोध खत्म होता है , समय खत्म होता है , मैं एक गुमशुदा घर का बाशिन्दा हूँ , एक खोये सपने का मालिक , अपने समय से बिछुड़ा एक अदना सा मुसाफिर
नीलगाय चर जाते हैं सपने हर रोज़ और मैं हर दिन की ऊब को जम्हाई में भर कर पी जाता हूँ , आईने में देखकर कहता हूँ ..यू आर ऐन ऐडिक्ट नीडिंग यॉर फिक्स ऑफ ड्रीम्ज़ एवरी नाईट ..शुक्र है अब भी सपने देखने के सपने देखता हूँ , दीवार पर जबकि काली परछाईयों का शोकगीत है ..
फताड़ू के नबारुण
1 week ago
23 comments:
Shbdon ki chitrakaari.....Lajawaab !!!
Waah !!!
vah pratyakshaji bilkul naam ke anusar sundar abhivyakti hai aabhaar
www.veerbahuti.blogspot.com
क्या खूब लिखा है पढ़ कर अच्छा लगा
मैं सपने देखने के सपने देखता हूँ ।
सुन्दर शब्द संयोजन। वाह।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
आपकी लेखनी के बारें में हम कुछ कह नही सकते। बस पढकर आनंद आ जाता है। पर बहुत दिनों के बाद मिला आपका लिखा पढने को।
बहुत दिनों बाद, यहां पढ़कर अच्छा लगा।
किब्ला तभी तो हम रोज मुए कंप्यूटर में इस उम्मीद में झांकते है की शायद किसी रोज नीलगाय रास्ता भूल जाए ...ओर पूरा का पूरा सपना दिखे साबुत ..इसके परदे पे ....उम्मीदों का ऐडिक्ट होना भी बुरी बात है.....
वैसे शुक्रिया इस आमद के लिये ........
रिचर्ड गेरे '.शेल वी डांस ' में परदे पर नाच रहा है....कोई सपना बुन रहा है शायद ...स्क्रीन पर है ना...
आँखों को तलाश थी शब्द चित्र की बहुत समय से वो आज पूरी हो गई...
सपने देखते तो हैं।
अच्छा व सार्थक प्रयास।
काली परछाइयों का शोकगीत!!!
शब्दों की रंगत तो लुभावनी है...भावों तक आजकल हम पहुंच नहीं पाते :)क्योंकि बेकसी के मजा़र पर टिके हैं...
जय हो। रमानाथ अवस्थी लिखते हैं:
रात लगी कहने सो जाओ देखो कोई सपना
जग ने देखा है बहुतों का रोना और तड़फ़ना।
आपके शब्द दृश्यों को ऐसा रच देते हैं जैसे अभी वहीं खड़े हों।
मैंने कभी कोई लाल चेहरे वाला लंगूर नहीं देखा।
bhitar ya bahar,baat jab fantasi ke baadshahon ki hogi,tum hogi vahan,kaner ke phool todte hue.
kalpanaye to bas kalpanaye hai
pleasant cerebral flight
"शुक्र है अब भी सपने देखने के सपने देखता हूँ , दीवार पर जबकि काली परछाईयों का शोकगीत है .. "
सच सपने देख पाना भी एक उपलब्धी सी ही जान पड़ती है ऐसे समय में जब सपने उगने से पहले ही खा लिए जाते हों... बहुत सुंदर लेखन ...
मैं सपने देखने के सपने देखता हूँ ।
हवा तेज़ चलती है , सीटी बजाती और गौरैया फुदकती है खिड़की के सिल पर ,रेडियो सिलोन पर पुराने गाने बजते हैं, प्रीतम आन मिलो ....और बाहर सड़क पर सिलबट्टे कूटने वाला फेरी लगाता है सुनसान सड़क पर , अकेला
शब्दों का बहुत ख़ूबसूरत कोलाज ....हर बार की तरह सुंदर पोस्ट .
हेमंत कुमार
aapka blog creative h lekin mere comment ki vajah dusari hi h.
on blog since - april 2005
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quite impressive
किसी पड़ाव में रुकना मना है, बस चलते ही जाना है शव्दों की दुनिया में । भाव अपने आप जोड़ते जाएंगे, जैसे कृतसंकल्प राही को रास्ते में हमसफ़र मिल जाते हैं ।
''samay sapna''ek sundar rachna hai ,waise aapki anya achnayen bhi mai padti rahti hun........mere blog par bhi aana....
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