2/25/2009

लमोरे के

कैसी आवाज़ थी ? जैसे किसी तूफान में समन्दर हरहराता हो , जैसे रेत का बवंडर गले से उठता था । उसमें पत्थरों की खराश थी , नमी थी एक खुरदुरापन था । रात में खुले में चित्त लेटे तारों को देखना था और किसी ऐसे ज़मीन के टुकड़े पर पाँव रखना था जो इस दुनिया का नहीं था । जैसे छाती में कोई तार अटका कर खींच ले गया हो , वहाँ जहाँ अँधेरे में छिटपुट जुगनू सी रौशनी थी , फुसफुसाहटों की दुनिया थी और बहुत कुछ था , न समझने वाला बहुत कुछ । शायद उस बच्चे की भौंचक रुलाई सा जिसे ये नहीं पता कि उस बड़े ने क्यों उसे एक थप्पड़ मार दिया । सपने की रुलाई , गालों पर नमी छू जाती है । सपने और हकीकत के कैसे तकलीफदेह झूलों पर झुलाती , उसकी आवाज़ । बीहड़ गुफा में अँधेरे को छूती आवाज़ जिसके सुरों पर ..किसी एक टिम्बर पर रौशनी की चमकती किरण सवार हो , आँखों में चमक गया धूप का टुकड़ा , आवाज़ , जिसके सब रेशे बिखरते हों ..

उसकी आवाज़ ऐसी ही थी , रात के फुसफुसाहटों की आवाज़ , जंगल में पेड़ के पत्तों के सरसराने की आवाज़ , आग में लकड़ियों के चटकने की आवाज़ , मुझे मार देने वाली आवाज़ । मुझे कभी प्यार नहीं हुआ । मर जाने वाला प्यार । उस न होने वाले प्यार के सोग में मैं इश्क वाले गाने सुनती हूँ और कल्पना में जीती हूँ कि अगर प्यार हुआ होता तो ऐसा ही होता , रुखड़ा , टेढ़ा , आड़ा तिरछा , बाँका , पागल , अस्तव्यस्त , शायद । हवा के झोंके से झिलमिलाता फिर भी न बुझने वाला प्यार । पर प्यार नहीं हुआ इसलिये मैं इस शब्द को हाथेलियों में भरकर पानी पर तैरा देती हूँ , कोई मछली गप्प से गड़क जाती है । मैं उदास , बहुत उदास होती हूँ पर अच्छा हुआ नहीं तो 'लमोरे के' सुनकर शायद मैं पागल हो जाती । सचमुच ।




पाओलो कोंते की लमोरे के सुनते हुये

14 comments:

मुंहफट said...

आपकी रचना शैली-शिल्प, लालित्य, एहसास और शब्द-संपदा को सलाम. पूरी प्रस्तुति कुछ इस तरह अभिव्यक्त हो पाने का लालच जगाती है. बधाई प्रत्यक्षा जी.

P.N. Subramanian said...

आपने जो लिखा बड़ा ही सुन्दर लिखा है. गीत भी सुनने में अच्छा लगा लेकिन कौन सी भाषा थी यह समझ में नहीं आया.

डॉ .अनुराग said...

आज याद ही कर रहा था आपको....अजीब बात है न यूँ भी आपको पढना किसी मद्धम गीत को खामोशी से सुनना है..जिसके ख़त्म होने पर बार बार रिवाइंड करने को जी चाहता है..

अक्षत विचार said...

समझ से परे...

pallav said...

accha hai. kripya apna email id bheje. pallavkidak@gmail.com

अनिल कान्त said...

man kar raha tha ki ye lekh khatm na ho ....bahut achchha laga padhkar

विजय गौड़ said...

आपका आलेख और लगी हुई स्लाइडस लमोरे के गीत का अच्छे से तर्जुमा कर रही है। भाषा को न जानते हुए भी उन अर्थॊं तक पहुंच पाया हूं शायद। आभार।

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

आवाज़ का खुरदुरापन...बहुत सही। और आपकी लेखन शैली, हमेशा की तरह अद्भुत।

Anonymous said...

शायद इसे ही कहते हैं दर्शन।

पूनम श्रीवास्तव said...

Pratyaksha ji,
bahut sundar shabd chitra .badhai.
Poonam

amitabhpriyadarshi said...

vastav men aap shabdon ko anjuree men bhar kar pani men tairaa deteen hain. achha laga.

khali panne

MAYUR said...

होली की मुबारकबाद,पिछले कई दिनों से हम एक श्रंखला चला रहे हैं "रंग बरसे आप झूमे " आज उसके समापन अवसर पर हम आपको होली मनाने अपने ब्लॉग पर आमंत्रित करते हैं .अपनी अपनी डगर । उम्मीद है आप आकर रंगों का एहसास करेंगे और अपने विचारों से हमें अवगत कराएंगे .sarparast.blogspot.com

प्रवीण त्रिवेदी said...

होली कैसी हो..ली , जैसी भी हो..ली - हैप्पी होली !!!

होली की शुभकामनाओं सहित!!!

प्राइमरी का मास्टर
फतेहपुर

रचना गौड़ ’भारती’ said...

लगातार लिखते रहने के लि‌ए शुभकामना‌एं
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहि‌ए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
http://www.rachanabharti.blogspot.com
कहानी,लघुकथा एंव लेखों के लि‌ए मेरे दूसरे ब्लोग् पर स्वागत है
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