9/29/2008

उफ्फ ये लड़की !

पुराने अखबार के ठोंगे से मोटे मोटे दालमोठ टूँगते लड़का कनखिया कर ताकता है । लड़की गुलाबी सलवार समीज में , बाल की एक लट कान के आगे गिराये शरमाती है । लड़की की मुटल्ली माँ अपने फैले कमर के गिर्द एहतियात से आँचल लपेटती है । गिद्ध दृष्टि से बारी बारी से लड़के फिर लड़की को ताकती है , मुँह पर आई मक्खी को भगाती है , हाथ वाला पँखा झलती है । गुमसाईन गर्मी से सब बेदम हैं । प्लैटफॉर्म पर लम्बे डंडे से लटका काला पँखा अपने डैने बेजारी से हिलाता गर्म हवा धीरे से फेंकता है । लड़का अपने नकली अरिस्ट्रोकैट सूटकेस पर अड़ंगे बैठा है । सामने बेंच पर लड़की और उसकी माँ हैं । माँ रह रह कर सामान टटोलती है । कभी ज़िप खोलकर कपड़े के बैग से कोई चार पॉलीथीन में कैद किसी कागज़ की जाँच करती है , कभी बटुआ खोलकर टिकट चेक करती है , कभी निमकी मठरी का छोटा स्टील का डब्बा निकाल लड़की को पूछती है , खायेगी निमिया ? निमिया अपने निर्मला नाम के अपभ्रंश पर सकुचा कर झल्लाती , क्या मम्मी तुम भी ? कहते एक बार लड़के की तरफ देखती है । लड़का इस बार आराम से मुस्कुराता है ।


लड़की के होंठों के ऊपर पसीने की बून्दों की रेखा है । ज़रा मचल कर कहती है , मम्मी एक लिमका पी लें ?
मम्मी बड़े बैग से छोटा बटुआ सात तहों के अंदर से निकाल कर लड़की को तुड़ा मुड़ा नोट पकड़ाती हैं । हमारे लिये एक पेपरमिंट लेती आना । लड़की सामने स्टॉल से लिमका पेपरमिंट खरीदती है । लड़का विल्स का एक पैकेट खरीदता उसके बगल में खड़ा हो जाता है । इस गरम दोपहरिया में ट्रेन का तीन घँटे चौआलिस मिनट लेट होना नहीं सालता है । लड़की की नुकीली नाक और कान के लाल बुन्दे कुछ मीठा मीठा उमगता है । सब हल्का हल्का । बीसवें इनटरवियु से नाकाम लौटना , नौकरी वाले दोस्तों के बीच एकमात्र बेरोज़गार रहना , बड़ी बहन के शादी न होने के दुख में माँ का दिनरात बुड़बुड़ाना , बाबूजी के सैंडो गंजी से झाँकते सफेद छाती के बाल सी आँखों में स्याह उदासी देखना , सब कहीं पीछे छूट जाता है । जब घर पहुँचेंगे तब फिर सब सोचेंगे देखेंगे । फिलहाल लड़की को देखेंगे के भाव से लड़का कश लेता है । लड़की समझ रही है कि देखी जा रही है । धीमे धीमे मुस्कुराती गुनगुनाती है साँस के भीतर से । उसे क्या पता किसी गोलमटोल गुलथुल से ब्याही जायेगी साल दो साल में । फिलहाल देखा जाना अच्छा लगता है उसे । इस मध्यमवर्गीय जीवन में रस के कुछ क्षण ।


सन उन्नीस सौ पैंसठ में जॉन लेनन अपना गाना गर्ल लिख रहा था । चिलम में मारिजुआना पीते गहरी साँस भरते वे गाना गा रहे थे , प्रेम के बारे में , किसी पीले पनडुब्बी के बारे में , बारिश के बारे में , मिशेल और किसी नॉरवेजियन जंगल के बारे में । संसार के बारे में ..कुछ ऐसे भोलेपन और विश्वास से , ऐसे सहज सरलता से .. धूप में खड़े होकर बरसात के गाने , तारों भरे आकाश की बातें , एल एस डी और वालरस वाज़ पॉल । धूप सने बिम्ब , आशा के चित्र , इमैजिन और स्ट्रौबेरी फील्ड्स । किसी पालतू कछुये की पीठ पर रंगा खरगोश ? कैसी साँस भर लेने की मासूम उकताहट थी । कैसा रंगीन धूँआ धूँआ जीवन था ।


ओह कैसी तुलना ? इस अलस दोपहरी में निमिया लिमका का बोतल मुँह से सटाती है । ठंडा तक नहीं । लड़का देखता है , सिगरेट का धूँआ , लडकी का गुलाबी कुर्ता , किसी और आती रेल की सीटी । माँ पैर मोड़ती है , पँजे फैलाती है , उफ्फ सो गया पैर ! किसी जैसे पिछले जनम में ऐसी ही गुलाबी सलवार समीज में जाने कहाँ कहाँ आती जाती रहीं । जाने कौन देखता रहा था , न देखता था बिना इल्म हुये । किसी ज़माने में , किसी और ज़माने में ।


लड़का लड़की को ताकते सोचता है ... उफ्फ ये लड़की ! जॉन लेनन नेपथ्य से गाता है ..शीज़ द काईंड ऑफ गर्ल यू वॉंट सो मच इट मेक्स यू सॉरी ...


14 comments:

Unknown said...

बहुत अच्छा जी

डॉ .अनुराग said...

विल्स की सिगरेट ...जॉन लेनन .प्लेटफोर्म ....एक लड़की ओर एक लड़का.....नेपथ्य में एक गीत ...छूटा हुआ .क्या कहे आपको ?एक कंट्री सोंग याद आ रहा है ...जो एक मशहूर फ़िल्म का टाइटल सोंग भी है....दोनों का कोई ताल्लुक नही है पर पता नही क्यूँ याद आया ...".स्टेंड बाय मी"

रूपाली मिश्रा said...

आपकी शैली बहुत अच्छी लगी
बहुत कुछ कह दिया छोटी सी इस कहानी ने

Udan Tashtari said...

वाह जी वाह!! क्या जुगलबंदी बन पड़ी है बिटल्स और आपकी कथा की. २५ साल की उम्र में बिना मेरीजोना के अफेक्ट के शायद जान लेनन लिख भी न पाते ऐसा अनुपम गीत!!! :)

दिनेशराय द्विवेदी said...

अपने बेमजा जिन्दगी के कुछ पर खूबसूरत बनाते हैं लोग।
प्लेटफार्म पर किसी लड़की से निगाहें मिला लेते है लोग।

Admin said...

दिल के तार हिला दिए मैडम !

Ghost Buster said...

पढ़ा. पर कान पकड़े, अब कुछ नहीं कहेंगे.

Pushpendra Paliwal said...

शानदार चित्रण .सटीक शब्दावली
मजा आ गया

सचिन मिश्रा said...

Bahut accha likha hai.

नीरज गोस्वामी said...

इतना जीवंत लेखन पढ़ कर आनंद आ गया...बहुत बारीकी से आपने एक रूमानी संसार रचा है अपनी इस रचना से...रूमानी...जो समय की मार से खंडित हो बिखर जाता है...अद्भुत लेखन...वाह.
नीरज

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

achcha likha hai

हिन्दुस्तानी एकेडेमी said...

आप हिन्दी की सेवा कर रही हैं, इसके लिए साधुवाद। हिन्दुस्तानी एकेडेमी से जुड़कर हिन्दी के उन्नयन में अपना सक्रिय सहयोग करें।

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सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते॥


शारदीय नवरात्र में माँ दुर्गा की कृपा से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों। हार्दिक शुभकामना!
(हिन्दुस्तानी एकेडेमी)
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Asha Joglekar said...

हर किसी को हक है कि पल दो पल खुशी के जी ले ।
सुंदर कहानी ओर गीत.

Priyambara said...

Bahut hi dilchasp lekh. shandaar chitran ke liye Badhai .