अखबार में खबर ..
शॉर्टेज़ ऑफ फूडग्रेंज़। स्पेंसर और रिलायंस फ्रेश में ट्रॉली में ठसाठस भरते सॉस और जूस के बोतल । बच्चा हृष्ट पुष्ट है , माँ और ज़्यादा । खाते पीते परिवार के सदस्यों का विज्ञापन । ओबेसिटी के शिकार कितने प्रतिशत लोग ? तरह तरह के विज्ञापन .. कैसे मोटापा घटायें , टेलीशॉपिंग नेटवर्क पर वजन कम करने के तरीके , ट्रेडमील , मॉर्निंग जॉग्गर और सौना बेल्ट , जिम के लटके झटके , पर्सनल ट्रेनर्स की स्टेटस सिम्बल। फिर किसको खाना घट रहा है ? ब्रेड नहीं तो केक सही सिंड्रोम । सुपर मार्केट स्टोर्स में कवियार और ब्लू चीज़ , हाएंज़ सॉस और ग्रीन टी , स्मोक्ड सालमन और टाईगर प्रॉंन्स । कितने रंगीन कार्टंस , क्या ग्लॉसी पकेजिंग । शेल्फ पर सामान अड़से भरे हुये , गिरते पड़ते अटके लटके हुये। फिर किसी सोमालिया इथिओपिया के बारे में बात करना फैशनेबल । आपको उदार दिलदार सहिष्णु का खिताब देता है , दूसरों के दुख में दुखी । पर खबरदार किसी कालाहाँडी की बात की । कालाहाँडी सिंड्रोम की तो बिलकुल नहीं । जब शॉर्टेज नहीं था तब ग्रनरीज़ इसलिये भरी हुई थीं कि उसे खरीदने के लिये लोगों के पास पैसे नहीं थे। अब शॉर्टेज़ है , होगा । उससे क्या । लोगों के पास अब भी पैसे नहीं है । क्या फर्क पड़ता है । जिनके पास पैसे नहीं हैं उनको वैसे भी फर्क नहीं पड़ता । जिनके पास हैं उन्हें भी फर्क नहीं पड़ता । भईया पित्ज़ा खायेंगे सॉस डालकर , इडली खायेंगे जैम डाल कर , कोला पेप्सी पियेंगे . बहुत होगा तो डाएट कोक पी लेंगे , पानी की जगह बीयर और वाईन पी लेंगे , रोटी की जगह गार्लिक ब्रेड तो मिलेगा । जाने ऐसे डिप्रेसिंग सवालात क्यों उठाते हैं भाईलोग ? कोक के बर्प के साथ सोच भी एक तृप्त ढकार लेती है । चिल मैन चिल । नथिंग टू वरी ऐज़ ऑफ नाउ , क्यों ? वाट डू यू से ?
15 comments:
बहुत चिलताप्रिय संस्करण है यह हमारी संस्कृति का ! वी आल आर चिल !!
kadva sach...nice
कहने के लिए रह क्या जाता है...:-).
कौन कहता है देयर इज एनी थिंग तू वरी अबाउट??
--और जो कहे उसे सुनेगा कौन?? :)
'डकार'। All of us chill??
ended up here from one of Ashok Da's posts. Nice thoughts. Keep writing.
Best,
H
बहुत चिल चिल है चिल्लाने का मन कर रहा है..और क्या क्या हम लोग देखेगे? हमारे बाप दादा जैसी बाते करते थे, उसे ज़रा सा बदल कर हम फिर से सुना रहे हैं...
डकार नही आ रही जी सोच को ,कुछ अटक रहा है ....
एक कोक और पीती हूँ ...
सच बतायू तो हम जैसे भी लोग भी ब्रांड दुर्वाग्रह से ग्रस्त है ,ओर तकरीबन आसानी से उपलब्ध हर चीज़ अब हमे आसान लगती है ,ओर भागती दौड़ती जिंदगी मे हर चीज को हमने एक प्रिओरिटी की अलिखित लिस्ट मे रखा है ,हर चीज़ अब समय की मोहताज है ....दोस्ती भी ,रिश्ते भी.
:)
sab 'Deevana ki Chilli leela' se bhi badh kar ghat raha hai pratyaksha.
''no breads, let'em have cakes'' ka hi samay hai.
पहली बार आया हूं.. शायद.. मै कौन में आप का परिचय अच्चा लगा...निराला अंदाज..आयद आप की यही पहचान है
कवि कुलवंत सिंह
http://kavikulwant.blogspot.com
सटीक बात.. आपका कहना दुरुस्त है..
इतने दिनों से चिल-चिलाती धूप है, कुछ और पोस्ट करो.
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