उन फेंससिटर्ज़ के नाम जो सुबह से ये सोचते हैं इस फेंस पर बैठूँ या उस फेंस पर । कहाँ फेंस पार कर के आना पॉलिटिकली करेक्ट होगा , कितना बोलना करेक्ट होगा , कहाँ कहना सही होगा , कहाँ बोलने से फँसेंगे नहीं , कहाँ दो बात कह देने से फूट इन माउथ सिंड्रोम नहीं होगा ।
उफ्फ कितनी दुविधायें हैं , कितना द्वंद है जीवन में । दिन रात इसी सोच में घुले जाते हैं कैसे सबके चहेते बने रहें । किसी ने बुरा कह दिया तो क्या , अपना दूसरा गाल बढ़ाते हैं ..तब तक जब तक तमाचा गाल लाल न कर दे । वरना बड़ी मीठी झिड़की थी ..ऐसे ही स्नेह हम पर लुटाते रहिये और हमारा आदर पाते रहिये .. हमें जब सही मौका मिलेगा हम भी आपको स्नेह वर्षा से नहलाते रहेंगे .. कुछ शीतल तरल कवितायें सुनाते रहेंगे । फिलहाल अपने गोल और उनके बहनापे पर मस्त रहेंगे , सराबोर तरबतर रहेंगे ।
हम टिप्पणी भी वहीं करेंगे ..चार जब तक देख न लेंगे ..क्या सुर है , टोन टेनर क्या है ? फिर हम अपनी पॉलिटिक्स तय करेंगे । आपका मसला हो फिर हम चुप रहेंगे , साईड से तमाशा देखेंगे , होगा संभव तो मौज मज़ा ले लेंगे । हमारा मसला हो तो देखेंगे कौन कह रहा है , मेरा भाई बँधु सखा यार । गलबहियाँ डालूँ कि गाली हार .. आखिर मेरी पॉलिटिक्स क्या है यार ?
ये दिन रात का सोचना अपने बस की बात नहीं । आपका सोचें कि अपना ? कैसे चिरकुट हैं आप ? अपना ब्लॉग अपना पोस्ट अपनी टिप्पणी अपना जोश । आपका क्या ? चूल्हे में जाय अपना क्या ? सुबह सुबह की पोस्ट , दो डिजिट कमेंट्स का मोल फिर सारे दिन मटरगश्ती , इधर ज्ञान उधर बत्ती । मुफ्त बाँटते हैं यार । ये तो हुई अपनी बात पर ये तो बताओ आखिर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है पार्टनर ?
फताड़ू के नबारुण
1 week ago
14 comments:
दिन रात इसी सोच में घुले जाते हैं कैसे सबके चहेते बने रहें ।
baruu aane sachii kehaa bahina
मुक्ति का बोध ही - हमारी पॉलिटिक्स है , पार्टनर।
हम हमेशा पॉलिटिकली करक्ट बोलते हैं..हमको नेता बनना है जी..किसी ने लंगी लगा दी तो कैसे करेंगे ये चिर्कुटईयां...आप नाराज ना हों... आप भी चोखेर बाली हैं ना...ओ...आई.सी...सी सी....
अपनी पॉलिटिक्स खालिस मटर्गश्ती...और क्या!
राजनिती के कौटिल्यो की चाले कुटिल,फ़रेबी है और इंदिरा गांघी के भारत मे नेता फ़ुलन देवी है
बात पते की है पार्टनर -वी आर लिविंग इन एन इम्पेशेंट वर्ल्ड ,नो बडी केयर्स फार एनी बडी एनी मोर!
अफ़लातून जी के स्वर में मेरा स्वर शामिल है .
पुलिटिकली करैक्ट न दिखने पर भी और गांधी की तरह अकेले होने और होते जाने पर भी अपनी बात कहने का साहस भी उसी पॉलिटिक्स का हिस्सा होता है .वरना भेड़चाल में रेवड़ जरा से हांकने-हंकाने पर एक दिशा में चलता रहता है .
हम टिप्पणी भी वहीं करेंगे ..चार जब तक देख न लेंगे
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बहुत सही बात । यही तो हाल है यहाँ का ।
वैसे ऐसे तीखे तेवर में आप्को शायद पहली बार देखा है । बहुत जानदार ! कटाक्ष भी उतना ही उम्दा जितना गम्भीर बाकी लेखन ।
philhaal to hum politically ye soch rahe hain ki aisi kya politics kari jaay ki humare blog me Pratyaksha ki tippani bhi milne lage....baaki politics baad me dekhte rahenge.
Waise bhi apni samajh me is line ke alawa kuch nahi aaya.
यही तो पॉलिटिक्स है और आप उसमें उलझ भी गई हैं...can't you see...move move move ...now
जबर्दस्त राजनीतिक लेखन हो गया ये तो.....
बेबाक सवाल बेबाक अंदाज़ में। फेंस पर बैठे लोगों को इसका जवाब तलाशना होगा। वैसे, अवसरवाद भी एक पॉलिटिक्स है जो हर पॉलिटिक्स के रंग में रंग जाने की ऊर्जा देती है।
आपकी पुस्तक का विमोचन हो गया? कैसा रहा कार्यक्रम? कुछ उसके बारे में भी तो बताएं या बस यह बहस ही चलती रहेगी अब?
यह साधुवाद स्कूल ऑफ ब्लॉगिंग की विरासत रही है, कुछ दरक रही है पर दुर्भाग्य से अधिकतर पनप ही रही है। पर कितना भी हो कुछ लोग हमेशा फेंससिटर रहेंगे, समय लिखता रहे अपराध।
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