10/22/2007

या देवी सर्वभूतेषू

पूरी सड़क गुलज़ार थी । कागज़ के रंगबिरंगे गुलाबी पीले हरे तिकोने हवा में लहरा फड़फड़ा रहे थे । लाउडस्पीकर पर फुल वॉल्यूम गीत बज रहा था । छुट्टन के कब्ज़े में होता तो सेक्सी सेक्सी सेक्सी मुझे लोग बोले और निकम्मा किया इस दिल ने , बजने लगता और भोलाशंकर बाबू जैसे ही समझते कि बज क्या रहा है , तिलमिला कर पहुँचते और फट से भक्ति रस की धार फूटने लगती । माँ शेरांवालिये की मार्मिक पुकार साठ के ऊपर के लोगों में माँ के प्रति व्याकुल भक्ति का भाव प्रवाहित करती । इन सबसे बेखबर बच्चों का छोटा झुँड पंडाल के ठीक ओट में बून्दिये के देग पर काक दृष्टि डाले बको ध्यानम करता । क्या पता कब प्रसाद वितरण का कार्य शुरु हो जाये ।

लाल पाड़ की साड़ी , चटक ब्लाउज़ और कुहनी भर चूड़ियाँ पहने औरतें पूजा की थाल लिये माँ के दर्शन की प्रार्थी होतीं । खूब लहलह सिंदूर और गोल अठन्नी छाप टिकुली और खुले बालों की शोभा देखते बनती । पैरों में आलता बिछिया ,लाल लाल तलुये ।

नयी नवेली लड़कियाँ , कुछ पहली बार साड़ी में । माँ से गिड़गिड़ा कर माँगी , फटेगी नहीं , सँभाल लूँगी के आश्वासन के बाद , भाभी के ढीले ब्लाउज़ में पिन मार मार कर कमर और बाँह की फिटिंग की हुई और भाई से छुपाके लिपस्टिक और बिन्दी की धज में फबती , मोहल्ले के लड़कों को दिखी कि नहीं , इसे छिपाई नज़रों से ताकती भाँपती लड़कियाँ , ठिलठिल हँसती , शर्मा कर दुहरी होतीं , एक दूसरे पर गिरती पड़ती लड़कियाँ । ओह! ये लड़कियाँ ।

लड़कों की भीड़ । बिना काम खूब व्यस्त दिखने की अदा , खास तब जब लड़कियों का झुँड पँडाल में घुसे ।
अबे , ये फूल इधर कम क्यों पड़ गये ,
अरे , हवन का सब धूँआ इधर आ रहा है , रुकिये चाची जी अभी कुछ व्यवस्था करवाते हैं
अरे मुन्नू , चल जरा , पत्तल और दोने उधर रखवा

जैसे खूब खूब ज़रूरी काम तुरत के तुरत करवाने होते । जबकि पंडिज्जी ने जब कहा था इन के बारे में तब सब उदासीन हो एक एक करके कन्नी काट गये होते ।

ये तो दिन के हाल थे । जैसे जैसे शाम ढलती , रौनक बढ़ती जाती । रौशनी का खेला , ढोल और शँख की ध्वनि , शिउली की महक , ढाक की थाप , भीड़ के रेले , माँ की सौम्य मूर्ति ..या देवी सर्वभूतेषू शक्तिरूपेण संस्थिता .... महिषासुर का मर्दन करती हुई भव्य प्रतिमा , कैसा अजब जादू , कैसा संगीत जो शुरु होता है महाल्या के चँडी पाठ से । आरती और ढाकियों का नृत्य और फिर विसर्जन के बाद की मरघटी उदास शाँति । जैसे छाती से कुछ निचुड़ गया हो ऐसा दुख ।

( कल विजय दशमी में पटना के दुर्गा पूजा को याद करते हुये )

15 comments:

Anonymous said...

गजब ! करेजवा निचोड़ दिया ।

Ashish Maharishi said...

kuch eshi hi yaad mere banaras ki hai..

आस्तीन का अजगर said...

बहुत सुंदर. गजब के शब्द चित्र. बिलकुल पिक्चर पोस्टकार्ड की तरह. लिखते रहिए.

Gyan Dutt Pandey said...

सब जगह लड़कियां एक जैसी और लड़के एक जैसे! या नहीं! कुछ सूक्ष्म अंतर तो होता होगा?

मैने बहुत पहले किरन्दुल और बछेली (जहां लौह अयस्क निकलता है) की आदिवासी लड़कियों को देखा था - सफेद भगई नुमा साड़ी में। उनपर भी इसी पोस्ट का लड़कियों वाला व्यवहार थोड़े हेर फेर के साथ फिट किया जा सकता है!

अनिल रघुराज said...

वाकई गजब का चित्रण है। इस पर अनामदास ने भी कुछ दिन पहले बहुत अच्छी पोस्ट लिखी थी...
नवरात्र में शेर और स्कूटर पर सवार माताएँ

Udan Tashtari said...

बहुत बेहतरीन-मानो कविता पढ़ी हो अभी झर झर बहते झरने सी. सुन्दर चित्र.

मीनाक्षी said...

पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ .. पहली ही रचना ने मंत्रमुग्ध कर दिया..
इतना सुन्दर शब्द चित्र कि आँखों के आगे सजीव हो उठा.
शुभकामनाएँ

Manish Kumar said...

हर जगह की दुर्गा पूजा के ये अत्यंत आवश्यक तत्त्व हैं जिनका आपने खूबसूरती से जिक्र किया।
पर आपने पटना की बात की है तो गाँधी मैदान से उठती शास्त्रीय संगीत की स्वरलहरियों और सिटी के इलाके में गूँजती कव्वालियों के दौर और उस माहौल का भी जिक्र किया होता तो रंग और जमता।

राकेश खंडेलवाल said...

फिर वे यादें ताजा कर दीं, जिनको छोड़ चुके थे पीछे
फिर से लगीं आज वे दिखने, खड़ा हुआ मैं आंखें मीचे

हरिराम said...

दुर्गति नाशिनी दुर्गा पूजा के अवसर का इतना सजीव वर्णन "देवी की नई स्तुति" से कम नहीं लगता।

अनूप शुक्ल said...

लहलह सिंदूर और गोल अठन्नी छाप टिकुली और खुले बालों की शोभादेखते बन रही है। :)

रजनी भार्गव said...

प्रत्यक्षा ,सुंदर चित्रण है. बहुत अच्छा लिखा है.

Sagar Chand Nahar said...

एकदम सजीव चित्रण

Poonam Misra said...

आज तुम्हारे जन्मदिन पर यह लेख पढा . हमेशा की तरह लगा की देखा तो हमने यही सब कुछ है,पर लिखने के लिए चाहिए तुम्हारी लेखनी , तुम्हारी शब्दों के रंगों वाली कूची और तुम्हारी नज़र.हमेशा सलामत रहे तुम्हारा यह व्यक्तित्व.अनेकों शुभकामनाएँ

"Vijay Kumar Agrawal" said...

बहुत ही सजीव चित्रण, लिखते रहिये