1/01/2008

तरसत जियरा हमार ( ओ मेरी सोनचिरैया ऐसे मत होना फुर्र )

आग की लपट रह रह कर लपकती चमक जाती थी आँखों की पुतलियों में । लकड़ी के पतले फट्टों में किसी बरसाती साल की नमी कैद थी , आज रह रह निकलती कौंधती थी , एक चिंगारी कूदती थी बेखौफ । उबल जाता था एक एक , जाने कितने बुलबुले भूरे लसलसे । झुरझुराता था पल को गर्मी से , तेज़ आँच से फिर सिकुड़ विलीन हो जाता था । राख , गर्म राख का ढेर ,कल कराना होगा साफ पर अभी इस फायरप्लेस के आगे , तापते आग को , चेहरे पर रोकते मुट्ठी में भरते देखते हैं बीतते । कल से समय का नया होगा नाम एक नम्बर आगे पर समय ? क्या वही होगा ? नींद में झुकती हैं आँखें , सपने टिकते हैं पलकों की नोक पर , काँपता है भाग्य सहमती है नियति , गणेश जी की मूर्ति पर गेंदे का फूल , चाँदी के दीये में जलती है बत्ती ! गाती है हवा , हँसता है पानी । फिसल जाता है रेतकण , करता है नृत्य उन्मत्त बेमत्त । गिरता है मन किसी गड्ढे में , पड़ते हैं पैर किसी सूरज पर । हल्का होता बदन छूता है धरती को चिड़िया का पँख ! हवा में खींचता है रंग कोई अमूर्त चित्र । धूप में खिलखिलाता है दिन फूँकता है सरगम किसी बाँसुरी में लम्बी तान । आती है आवाज़ किसी ग्रामोफोन से । गाती हैं रसूलन बाई कजरी । तरसत जियरा हमार । काला तवा घूमता है । डूबता है मन घूमता है मन किस अदृश्य जाल में ? ओ मेरी सोनचिरैया ऐसे मत होना फुर्र ।

9 comments:

Anonymous said...

aapki kalpanayein kaafi pasand aayi... yun hi likhtey rahiyega...

अफ़लातून said...

जाल में भी और फुर्र भी ?
साल मुबारक ।
अफ़लातून.

Sanjeet Tripathi said...

मन, विचार पलक झपकते ही इधर से उधर किधर से किधर पहुंचने लगते हैं।


जियरा तो तरसने के लिए ही बना है न!!

सोनचिरैया को खोने का डर किसे कब नही होता, भले ही वह हाथ न आई हो पर उसे खोने का डर पहले से ही मौजूद हो जाता है।


नया साल आपको पहले से बेहतर बहुत कुछ दे जाए।
नव वर्ष की शुभकामनाएं

पारुल "पुखराज" said...

bahut khuub....nav varsh mangalmay ho

VIMAL VERMA said...

खूबसूरत बिम्ब !!भाव और बिम्ब में गज़ब का तालमेल रहता है !! अच्छा लगा !!
नई ज़मीन की तलाश नये साल में भरपूर हो यही कामना है मेरी,मुबारक हो नया साल !!

मीनाक्षी said...

रेत के कण सा समय फिसलता है लेकिन फिर भी हम चलते रहते हैं... साल सुनहरा सा चमके आपका ...

रजनी भार्गव said...

प्रत्यक्षा ऐसे ही लिखती रहो.नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.

Poonam Misra said...

तरसते जियरे को मिले कुछ आस और कुछ प्यास भी.तभी हमें मिलता रहेगा तुम्हारी लेख्ननी का सुख

Dr.Ajit said...

हिन्दी साहित्य मैं पेज थ्री लेखन की परम्परा और शब्दावलीकी संवाहक बनी है आप !
आपकी "बतकही" पसंद आई......शेष फ़िर...
डॉ.अजीत