6/22/2005

तो तुम आये थे

रात भर ये मोगरे की
खुशबू कैसी थी
अच्छा ! तो तुम आये थे
नींदों में मेरे ?

6/17/2005

हृदय कुछ और भर आया

लिया जब नाम प्रियतम का
हृदय कुछ और भर आया
एक मीठी चपल चितवन की
बिजली कुछ इस तरह चमकी
घने बादल के पीछे से
सजीला चाँद निखर आया
कोई कह दे ये बादल से
कि अब वो और न बरसे
लिया है नाम प्रियतम का
हृदय कुछ और भर आया

शायद

ये धूप कहाँ से
खिल आई ??
शायद
चेहरे से तुमने
बालों को
हटाया होगा....

6/07/2005

भीने लम्हे

दर्द के काँटों ने कितनी शबनमी बून्दे
तेरे इन बन्द पलकों पर मोती सी सजाईं हैं

ये तन्हा चाँद के आँसू बरसते यूँ ही शब भर थे
हर सुबह फूलों की पँखुडियाँ इन्ही से तो नहाई हैं

ज़ख्म तुमने दिये थे जो कई सदियों पुरानी सी
मेरे होठों पे अब भी क्यों सिसकती ये रुलाई है

तुम्हारे खत में ताज़ा है अभी भी प्यार की खुशबू
इन भीने लम्हों से अब भी कहाँ बोलो रिहाई है