11/18/2005

नारद जी कहिन

इस कथा के सभी पात्र, घटना , स्थान काल्पनिक हैं. इस घटनाक्रम का किसी भी जीवित व्यक्ति से कोई सरोकार नहीं है...वगैरह वगैरह
आज सुबह सवेरे नारद जी दिख गये . . तुरत चेहरा छुपाते हुये खिसकने की तैयारी में लगे. अब हम भी कम थोडे ही हैं . एकदम से घेर लिया.

"नारद जी महाराज, क्या हुआ आपके फरियाद का ? प्रभु ने कुछ उपाय सुझाया ?"

"अरे ! प्रभु हैं. हज़ारों प्रार्थनायें इनबाक्स में पडी हैं. टाइम लगता है ." टालते हुये से फिर पतली गली से निकलने का प्रयास किया.
हमारी आवाज़ कुछ तेज़ हो गई थी. तो आते जाते चिकग हमारी तरफ मुडने लगे . मामला टलने के बजाय गडबडाने लगा तो नारद जी ने हमारी बाँह पकडी और खींच ले गये बगल के काफी शाप में.


"काफी उफी पीजिये. अरे क्या रखा है लडाई झगडे में .”

"पर आप तो बडे नेता बने थे . सबको उकसा रहे थे . अब क्या होगा ?" हमने टहोका .

"अरे होना जाना क्या है . हम तो शांति में विश्वास रखते हैं . ई जो फुरजी अर्थात शुकुल देव हैं न, अब हैं तो हमारे बँधु न. अब उनसे क्या बैर . " नारद जी के चेहरे पर परम ज्ञान की आभा फैल गई. चुटिया भी सहमति में प्रश्नचिन्ह से अल्पविराम में बदल गई.

लेकिन हमारी ज़िज्ञासा इतने से शांत कैसे होती .

"कुछ बताइये न. कोई राज़ तो है जरूर ."


"ज्यादा जिज्ञासा मत करिये . जिज्ञासा ने बिल्ली की जान ली थी, ऐसा कहा जाता है सदियों से "


"पर बिल्ली के तो नौ जीवन होते हैं . अभी तो हमारा पहला ही है . एक तो कुर्बान कर ही सकते हैं "

हमने फिर अस्त्र दागा. नारद जी ने मुँह बन्द रखा, सिर्फ मुंडी हिलाई. हमने भी पैंतरा बदला. वेटर को बुलाया. "ये मोका, लाते, कापुचिनो ह्टाओ और् रेगुलर काफी ढेर सारी क्रीम के साथ लाओ. हमें पता था नारद जी की कमजोरी.
तीसरी घूँट क्रीम की अंदर जाते ही नारद जी आनंदातिरेक के प्रथम अवस्था में आ गये. हम अपनी वाली ,जेम्स बांड स्टाईल में,दिमागी पैनापन और सतर्कता बनाये रखने के लिये, पास वाले नकली फूलों की झाड को पिला दिये.

काफी ने ट्रुथ सीरम का काम किया. नारद जी के मुँह से अमृत वचन फूटे,


"अब ऐसा है कि फुरजी ने बुलाया हमें . जरा घबडाये हुये थे. या तो मोनिका बेदी तर्ज़ पर स्टेट अप्प्रूवर बन जायें या फिर हमें फुसला लें अपनी फरियाद वापस करने को "


पाठकों फ्लैशबक में देखते हैं आगे की कहानी


फुरजी मसनद पर हताश ढलके हुये हैं .पुरानी वर्षों के बंधुत्व की दुहाई दे रहे हैं. नारद जी 'बडी मुश्किल से तो चंगुल में आये हो अब ऐसे थोडे छोड देंगे " वाला भाव चेहरे पर फेयर ऐंड लवली क्रीम की तरह झलकाये हुये हैं . कई घंटे की आरज़ू मिन्नत के बाद डील फाइनल होता है. फुरजी भी जैसे डील तय होती है आशस्वति का भाव पुन: उनके चेहरे पर विराजमान हो जाता है .



"अब देखा जाय आपको कौन सा फार्मूला दिया जाय ." आँख उलट कर ध्यानमग्न होने का सफल नाटक किया. कुछ अस्फुट बुदबुदाये, फिर स्वयं ही नकार में सर हिलाया, " न , ये आपसे नहीं होगा रहने दीजिये "


नारद जी अब प्रिय शिष्य का अवतार ले चुके थे और फुरजी को चातक दृष्टि से निहार रहे हैं .

"अच्छा, चलिये फार्मूला नम्बर 11 ठीक बैठेगा आप पर. लेख 420 तो हमारा पढा ही होगा. अरे वही शिकार और रानी वाला . बस वही करना है. धडाधड फर्जी चिट्ठा बनाते जाईये थोक भाव से, बस अंगूठी और पासवर्ड की कुंजिका हरदम साथ रखें (कमर में खुंसा हुआ दिखाते हुये). बस जैसे ही ओरिजिनल चिट्ठा पर लेख लिखें, दूसरे रानियों वाले चिट्ठा से दनादन टिपियाना शुरु कर दीजिये. 7-8 टिप्पणी के बाद अन्य चिकग अपने आप इस मुगालते में कि इतना टिप्पणी, बाप रे बाप, जरूर धाँसू होगा , हम काहे पीछे रहें, 3-4 टिप्पणी और बिना पढे दाग देंगे. और उसके बाद 3-4 जवाबी टिप्पणी आप दे डालिये.
फिर देखिये की टीप की संख्या दो दर्जन पहुँचती है कि नहीं. ई हमारा सुपरहिट फार्मूला है.

फुरजी का ज्ञान सुदर्शन चक्र की तरह नाचता नाचता नारद जी के चक्षुओं में समा गया.



फ्लैशबैक समाप्त होता है पाठकों



नारद जी ने काफी का अंतिम घूँट समाप्त किया. परम तृप्ति का ढकार लिया.


"धन्य हैं महाराज " हम भी अब तक पूरे प्रभाव में आ चुके थे.

"जरा धीरे बोलिये, उपर तक बात पहुँचेगी तो सब गडबडा जायेगा. मामला प्रभु के पेशी में है, सब जूडिस है. फुरजी वाला फार्मूला आजमा कर देखते हैं . नहीं तो अंत में सर्व शक्तिमान हैं ही.

नारायण नारायण "


नारदजी इकतारा बजाते हुये नेपथ्य की ओर विलीन हो जाते हैं.

6 comments:

Ashish Shrivastava said...

प्रत्यक्षाजी

ये क्या सारा का सारा पासा ही पलट गया ! हम तो ये सोचे बैठे थे की फुरजी की और खिंचाई होगी.

अब तो हमे आप पर ही शक हो रहा है, लगता है इस समझौते की एक पार्टी आप भी है :-(

आशीष

Atul Arora said...

मेरे ख्याल से आगे इस कथा पर ज्यादा प्रकाश डालने की जिम्मेवारी तो फुरजी की बनती है । हय कि नही?

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

शुकुल देव की महिमा अपरमपार है। नारद जी तो नारद जी देवी प्रति भी अपना देवी रूप धारण न कर पाईं। अर्थात अभी आगे भी पीडितजनों की गुहार नहीं सुनी जायेगी...

अनूप शुक्ल said...

शुकुलजी कहते हैं:-
बड़ा बढ़िया लेख लिखा है। बधाई। आगे भी ऐसे ही लिखती रहें।मन खुश हुआ कि कोई और भी है जो आम जनता का ख्याल रखता है।
लगता है ये फ़ुरसतिया बिना बोले मानेगा नहीं सो उसके भी विचार सुन लीजिये:-
१. सुना था महफिल में गालिब के उड़ेंगे पुर्जे
देखने हम भी गये पर तमाशा न हुआ।

२.इतनी सुंदर खिंचाई की भूमिका बनाकर सम्भावनायें झटके से सुला दीं। जनता के मन को ठेस पहुंचा कर क्या मिला आपको?
३.कविता-कानन से गद्य भूमि में आकर आपने जो महान कार्य किया वो काबिले तारीफ है। हायकू लिखने के आदी हाथों ने इतनी लंबी पोस्ट टाइप
कर ली। वाह-बधाई।
४.हमारे दुलारे जीतू जो हमारी खिंचाई को देखने के लिये व्याकुल होंगे वे कहेंगे -खोदा पहाड़ निकली चुहिया।
५.जिनको हम अपना समझते थे वे हमारी खिंचाई के लिये इतने उत्सुक!हे भगवान, काश हम कोई फाइल होते ताकि 'रिसाइकिलबिन' में जाकर
डिलीट हो जाते।
६. भोला भाई, जिस तरह तुमने मेरे हित की चिंता की उतनी चिंता तो अमेरिका भी नहीं करता पाकिस्तान,इजराइल की।तुम्हें देखकर लग रहा
है कि दुनिया में अच्छे लोगों की भी कमी नहीं है।
७.कुछ दिन खिंचाई में हाथ रवा होने के बाद खींचा जाता तो ज्यादा मज़ा आता।
८. जो तरीका बताया है इतनी लंबी पोस्ट में टिप्पणी पाने का वो तो सबको पता है।जीतू के ब्लाग में इतनी टिप्पणी अइसे ही थोड़ी हो गईं।
९. जो लिखा गया उसका मतलब भी समझा दिया होता तो लेख और मजेदार हो गया होता।

प्रत्यक्षाजी के लिये केवल 'शुकुलजी' की टिप्पणी है। बाकी फ़ुरसतिया की टिप्पणियां उन साथी ब्लागर के लिये हैं जो अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं। ये फ़ुरसतिया भी कहते हैं कि लेख मजेदार है काहे से कि यह टिप्पणी भी शामिल हो गई न लेख में।

Pratyaksha said...

नर हो न निराश करो मन को

आपलोगों में यही खराबी है. तुरत धर्य खो देते हैं और दलबद्लू का आरोप मढ देते हैं.अभी तो नारदजी का पक्ष सामने लाया गया. प्रभु का निदान और बाबा के चेला का उपाय तो बाकी है. लगता है आपलोग टीवी सीरियल नहीं देखते. धीरे धीरे न ससपेंस बनाया जाता है. एके बार में खेला कईसे खतम किया जाय. फुरजी को भी थोडा मज़ा लेने दिया जाय. देखिये कैसे हमारी तरीफ कर गये. उ तो बाद में पता चलेगा कि तरीफ कितना फिट बैठा.

अगला एपीसोड " आकाशवाणी " का इंतज़ार किया जाय सुधि पाठकगण

Sunil Deepak said...

प्रत्यक्षा जी आप का यह जासूसी उपन्यासकार वाला रुप तो पहले कभी नहीं देखा था. अगली किश्तों का इंतजार रहेगा. सुनील