11/21/2005

बा अदब बा मुलाहिज़ा होशियार

किन्ही कारण वश "आकाशवाणी " का एपीसोड मुल्तवी किया जा रहा है. उसके बदले पेशे खिदमत है
"बा अदब बा मुलाहिज़ा होशियार "


औन पौपुलर, डिमांड कथा को फिर उसी ट्रैक पर लाया जा रहा है. वैसे मानसी ने अच्छी चिकाई कर दी लेकिन अब ये लिख रखा था तो सोचा पोस्ट कर ही दूँ. (फुरजी नोट करें, दोस्त दोस्त न रहा...पैपुलर डिमांड की संख्या और क्वालिटी देखें)

वैसे एक बात और खास तौर पर फुरजी के लिये , आपकी खिंचाई "मौज़" और हमारी मौज़ "खिंचाई". और वो भी करार दिया कि मज़ा नहीं आया. ये बात कुछ हज़म नहीं हुई.

चलिये कथा आगे बढाते हैं

प्रभु के आराम का वक्त था. फिर भी लगातार प्रार्थनाओं की भुनभुनाहट कानों में पड रही थी.कुछ आवाज़ जब तेज़ हुई
'ये कैसी खिंचाई. अब हमारी गुहार कौन सुनेगा, दलबद्ल लिया ' वगैरह तो प्रभु जरा उठ बैठे, घँटी बजाई.
मिस मेनका दाखिल हुईं.
"शुकुल देव की केस का क्या हुआ "

"प्रभु सर, आपने कहा था कि फुरसत से फुरजी का निदान करेंगे "

"हाँ कहा तो था लेकिन चिकग में खलबली बढ रही है. ऐसा करो केस को लोअर कोर्ट में डाल दो फिलहाल "
प्रभु ने अपनी सफेद दाढी पर हाथ फेरा. मिस मेनका कुशल सेक्रेटरी थीं. तुरत कांसोल पर नाब घुमाया और..



दीवाने खास
(पाठक ध्यान दें 'आम ' नहीं 'खास' (अब अगर इससे भी कोई मुगालते में खुश हो जाय तो क्या कर सकते हैं. कुछ महीन चीज़ें उपर से छूती हुई गुज़र जाती हैं -टैनजेंट - ये पिछले दो लेखों से साबित हो चुका है.
खैर, पहला प्रश्न पाठकों से
तिर्यक भंगिमा घूमफिर कर किस पर आई. अपना मोबाईल उठायें और तुरत समस करें. सही जवाब को पहला ईनाम................ सौजन्य श्री अ.शु (खु.म.र ग्रुप* के मुख्य सचिव)
हाँ तो दृश्य है दीवाने खास का , शहंशाह अकबर गावतकिये पर टिके हैं. कनीज़ पँखा झल रही है. हर दस मिनट में सूँघा हुआ गुलाब फेंक कर, नया ताज़ा गुलाब चाँदी की तश्तरी में आलम पनाह को नोश फरमाती है और इत्र का एक फुहारा दरबारियों पर (भीड की वजह से कुछ बू सी आ जाती है, क्या किया जाय)

"मुजरिम को पेश किया जाय ", शहंशाहे आलम की भारी भरकम रौबदार आवाज़ गूँजती है.
फुरखान मुगलिया लिबास में ( स्कर्टनुमा घेरदार शेरवानी अचकन, चिल्ड्र्नस फैंसी ड्रेस, शाप न. 22, पहला तल ,मुहल्ले का पहला बाज़ार, से रुपये 250/- प्रतिदिन के रेट से किराये पर लाया गया है) सिर झुकाये, हाथ बाँधे खडे हैं.

"हुज़ूर, इनपर इलजाम है कि ये लगातार तीर और तलवार टिप्पणियों और लेख के चलाये जा रहे हैं. मुकदमा पेशी में है, कोई शिकार भी नहीं. खुदा न खास्ता ,जो एकाध थे वो भी एक जुट हो चले हैं. इनके खिलाफ बगावत का बिगुल बज चुका है. हार चुके हैं. आवाम ने इनके सेर पर सवा सेर और नहले पर दहला करार कर दिया ,फिर भी हवा में तीर चलाये जाते हैं. खुद को डान कियोट समझ रखा है. कभी दुश्मन को दोस्त समझ बैठते हैं, कभी दोस्त को दुश्मन. कभी तरीफ करते हैं कभी उसी की बुराई. बुरी तरह से कनफूजिया गये हैं"

"आलमपनाह, आपके शान में अगर गुस्ताखी न हो तो मैं इनके तरफ से कुछ बोलना चाहूँगा ". ये शख्स एक नकाबपोश था. चेहरा ढँका था पर लिबास से दस हज़ारी लगता था (एक ही टिप्पणियाँ दस दस बार पोस्ट करता है (ये संख्या कुछ कम भी हो सकती है सं ))


पाठकों ,इस एपीसोड का दूसरा प्रश्न
कौन है ये शख्स ?
कौन है ये रहस्यमय नकाबपोश ?
तुरत समस करें. सही जवाब पर ढेरों इनाम हैं. देर न करें. अभी अपना सेल फोन उठायें.
(वैसे भी इनाम अ.शु. दे रहे हैं. हमें क्या कितने भी सही जवाब आते रहें )
"बन्दा परवर, इस शख्स की कोई गलती नहीं ", नकाबपोश ने कहा. "अगर है, तो सिर्फ एक गलती. उसे ये मुगालता है कि उसमें हरिशंकर परसाई, श्रीलाल शुक्ल, शरद जोशी, म.स जोशी जैसे लोगों की रूह समा गई है. इसलिये खुद को व्यंग के बादशाह, शहंशाहे हँसी , बीरबल के भाई हातिम ताई समझ बैठे हैं.स्प्लिट पर्स्नैलिटी अलग से है, दो नामों से खुद को बुलाते है. ये सज़ा के नहीं रहम के हकदार हैं"

बादशाह निढाल पड गये. चाँदी के ज़ाम को होठों से लगाया और प्रिय बीरबल की ओर देखा. कुछ कहते उसके पहले ही ...........................


इस कहानी का ये क्रेज़ी टर्न , पागल मोड देने में बहुत मज़ा आया..आगे क्या होगा पता नहीं पर अब लगता है कि फुर जी को बख्श दें,, बहुत हो गया. हो सकता है अगले किश्त में ये हो कि इस एपीसोड से फुरजी का किरदार अलाना निभायेंगे.
बस एक समस्या है. कवितायें टाइप करना आसान था. लंबा लेख टाइप करना बेहद मुश्किल . अब समझ में आया कि फुरसतिया जी कितनी मेहनत करते हैं रोज़. पत्नि वियोग में बेचारे और करें भी तो क्या. अब सुमन जी के आ जाने से देखते हैं क्या स्कोर रहता है उनका

6 comments:

Jitendra Chaudhary said...

अब गाड़ी पटरी पर आये दिख्खे है मने!
अब जाकर लगा कि फ़ुरजी की खैर नही। अभी तक तो मामला सब लीपापोती जैसा लग रहा था। खैर आगे आगे देखते है क्या होता है।

मेरे विचार से इस विषय पर सभी ब्लॉगर(वैसे सभी फ़ुरजी से त्रस्त हैं) लिखना चाहेंगे। देखें कौन पहले लिखता है।

Sarika Saxena said...

प्रत्यक्षा जी आपके इस नये अंदाज को खूब मजे लेकर पढ रहे हैं। कहानी कहीं भी जाय हम तो बस एक पाठक हैं, जो हिन्दी चिट्ठा जगत में आये इस नये ट्विस्ट का मजा ले रहे हैं।
वैसे एक बात और स्पष्ट कर दें, हमारी गिनती फुर जी से पीड़त जनों में न की जाय, हम तो उनके लेखन के प्रशंसक हैं। वैसे खिंचाई भी उन्हीं लोगों की हो सकती है, जो खिंचना चाहते हों, हम तो खिंचाई हो या प्रशंसा सभी का आनन्द एक समान लेते हैं।

Ashish Shrivastava said...

प्रत्यक्षा जी,

आप व्यंग्य अच्छा लिख लेती हैं, इसे जारी रखें

मजा आया फुर्जी की खिंचाई पढकर

आशीष
http://www.ashish.net.in/khalipili

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

वाह प्रत्यक्षा, मैने लिखा ज़रूर था ये सोच कर कि कहानी यहीं खत्म हो गयी, कुछ मज़ा नहीं आया, तो इसे मैं ही पूरी कर दूं। यहां तक कि आप ही के जैसे डाय्लाग्स भी इस्तेमाल किये। मगर अब आपने बडे खूबसूरती के साथ इस एपिसोड को बढाया है। पर फ़ुर जी इतना रो रहे हैं, कि वो बडे दुखी हैं, उदास हैं कि सब उनके पीछे पडे हैं तो लगता है आपकी बात ही ठीक है। चलिये छोड दिया जाये...:-)

Pratyaksha said...

फुरसतिया जी की खिंचाई कौन कर रहा है. हम तो मौज़ :-)) ले रहे हैं

अनूप शुक्ल said...

लेख मजेदार है। मौज है लेकिन कुछ और आनी चाहिये थी। बहरहाल,फिर सही।