2/28/2008

उसने तो कहा ही नहीं था प्यार !

किसी ने कहा प्यार नहीं
कि बस !
बस,अंदर बहने लगती है नदी
उसने कहा बहो
बढ़ाया आगे झोला
कहा , कुछ गम हैं इनमें
और दूसरे में क्या ? मैंने बच्चों की तरह मचल कर कहा
उसने कहा , पहले इसे खोल लो न
मैं उसके "न" पर खिंच अटकी रही , असमंजस
नीबू की पतली फाँक से चुआती रही बून्द
जीभ पर
बहती रही
सोखती रही
प्यार
फूलों को मसल कर कहा
अब?
नीबू की पत्तियों को मसल कर कहा
अब?
ये तो बड़े दिनों बाद पता चला
उसने तो कहा ही नहीं था
प्यार !
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14 comments:

Arun Aditya said...

नीबू की पत्तियों का बिम्ब नया है। गझिन संवेदना भी है।

Ashish Maharishi said...

भीड़भाड के इस शहर में कुछ समय के लिए आपने दिल से सोचने पर विवश कर दिया

आशीष

रजनी भार्गव said...

क्या कहने प्रत्यक्षा!,बहुत अच्छी है।

अनिल रघुराज said...

प्यार की अमिट प्यास हमें सहज विश्वासी बना देती है। हम अपने में इतने डूबे रहते हैं कि अपनी धारणाओं को, चाहतों को सामनेवाले के ऊपर इम्पोज़ कर देते हैं। पर यही कशिश तो रिश्तों की खूबसूरती है। बहुत ही सुंदर कविता है। दिल में एक कसक पैदा कर जाती है। साथ ही एक झनझनाता सूनापन...

Unknown said...

क्या कहा ? क्या नहीं - वाह

Udan Tashtari said...

बहुत खूब...अनगढ़ सी बात कहने का भी इतना सुन्दर तरीका होता है, मालूम चला. बधाई.

Unknown said...

सच बिंब नये हैं....और कितनी खूबसूरती से बात कह गये।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

नीबू की पतली फाँक से चुआती रही बून्द
जीभ पर
बहती रही
सोखती रही
प्यार
फूलों को मसल कर कहा
अब?
नीबू की पत्तियों को मसल कर कहा
अब?
वाह !!!

azdak said...

नींबू की पत्तियों का बिम्‍ब, गझिन संवेदना.. और वैसा ही गझिन डरानेवाला सेब में कीड़ा (या कीड़ेवाला सेब?).. इज़ इट फेयर जब उसने (किसने?) नहीं ही कहा था प्‍यार तो आप खौफ़ जगानेवाले इमेज़ेस यूज़ करें? बाकी उड़न परात कह ही रहे हैं अनगढ़-सी बात को जबरजस्‍ती गढ़के कहा गया है..

अनूप भार्गव said...

बहुत सुन्दर, बहुत बहुत सुन्दर ....

Astrologer Sidharth said...

इतना सहज सोचा भी नहीं था। नींबू उसके रस और प्यार का वहम तो समझ में आया लेकिन सेव में कीडा कहां से आया है यह दिमाग में उलझन बढा रहा है।

अजय कुमार झा said...

prataksha jee,
shubh abhivaadan. kisi baat ko kisi alag aur naye tareeke se kaise kahaa jaaye aapse seekhaa jaa saktaa hai. likhtee rahein.

Sandeep Singh said...

'नीबू की पतली फाँक से चुआती रही बून्द
जीभ पर'
सचमुच मुंह खटास से भर गया। वैसे भी जब उसने कहा ही नहीं प्यार ऐसे में इस बिंब के क्या कहने।
'फूलों को मसल कर कहा अब'
यहां एक बार फिर प्रतिकार झलका। लेकिन जैसे ही...
'नीबूं की पत्तियों को मसल कर कहा अब' प्रतिरोध में एक बार फिर ताजगी भरी सुगंध घुल गई...ये एहसास है ही ऐसा जो बिलकुल खत्म नहीं होना चाहता।मुझे भी अच्छा लगा।

Ashish sharma said...

प्यार किया नही जाता हो जाता है.प्यार एक खूबसूरत जज्बा है, जिसका सिर्फ एहसास किया जा सकता है, शब्दो मे बयान करना शायद सम्भव नही होगा,