11/25/2005

तुम्हारी खुश्बू

तुम्हारी खुश्बू
(1)
घूमती थी मैं
सडकों पर आवारा
तुम्हारे खुश्बू की तलाश में
पर
सूखे पत्तों
और सरसराते पेडों
के सिवा
और कुछ
दिखा नहीं मुझे

(2)
हथेलियों से
चू जाती है
हर स्पर्श की गर्मी
आखिर कब तक
समेटे रखूँ मैं
मुट्ठियों में
चिडिया के नर्म बच्चे सी
तुम्हारी खुश्बू

(3)
साँस लेती मैं
खडी हूँ
तुम्हारे सामने
और भर जाती है
मेरे अंदर
तुम्हारी खुश्बू

11/21/2005

बा अदब बा मुलाहिज़ा होशियार

किन्ही कारण वश "आकाशवाणी " का एपीसोड मुल्तवी किया जा रहा है. उसके बदले पेशे खिदमत है
"बा अदब बा मुलाहिज़ा होशियार "


औन पौपुलर, डिमांड कथा को फिर उसी ट्रैक पर लाया जा रहा है. वैसे मानसी ने अच्छी चिकाई कर दी लेकिन अब ये लिख रखा था तो सोचा पोस्ट कर ही दूँ. (फुरजी नोट करें, दोस्त दोस्त न रहा...पैपुलर डिमांड की संख्या और क्वालिटी देखें)

वैसे एक बात और खास तौर पर फुरजी के लिये , आपकी खिंचाई "मौज़" और हमारी मौज़ "खिंचाई". और वो भी करार दिया कि मज़ा नहीं आया. ये बात कुछ हज़म नहीं हुई.

चलिये कथा आगे बढाते हैं

प्रभु के आराम का वक्त था. फिर भी लगातार प्रार्थनाओं की भुनभुनाहट कानों में पड रही थी.कुछ आवाज़ जब तेज़ हुई
'ये कैसी खिंचाई. अब हमारी गुहार कौन सुनेगा, दलबद्ल लिया ' वगैरह तो प्रभु जरा उठ बैठे, घँटी बजाई.
मिस मेनका दाखिल हुईं.
"शुकुल देव की केस का क्या हुआ "

"प्रभु सर, आपने कहा था कि फुरसत से फुरजी का निदान करेंगे "

"हाँ कहा तो था लेकिन चिकग में खलबली बढ रही है. ऐसा करो केस को लोअर कोर्ट में डाल दो फिलहाल "
प्रभु ने अपनी सफेद दाढी पर हाथ फेरा. मिस मेनका कुशल सेक्रेटरी थीं. तुरत कांसोल पर नाब घुमाया और..



दीवाने खास
(पाठक ध्यान दें 'आम ' नहीं 'खास' (अब अगर इससे भी कोई मुगालते में खुश हो जाय तो क्या कर सकते हैं. कुछ महीन चीज़ें उपर से छूती हुई गुज़र जाती हैं -टैनजेंट - ये पिछले दो लेखों से साबित हो चुका है.
खैर, पहला प्रश्न पाठकों से
तिर्यक भंगिमा घूमफिर कर किस पर आई. अपना मोबाईल उठायें और तुरत समस करें. सही जवाब को पहला ईनाम................ सौजन्य श्री अ.शु (खु.म.र ग्रुप* के मुख्य सचिव)
हाँ तो दृश्य है दीवाने खास का , शहंशाह अकबर गावतकिये पर टिके हैं. कनीज़ पँखा झल रही है. हर दस मिनट में सूँघा हुआ गुलाब फेंक कर, नया ताज़ा गुलाब चाँदी की तश्तरी में आलम पनाह को नोश फरमाती है और इत्र का एक फुहारा दरबारियों पर (भीड की वजह से कुछ बू सी आ जाती है, क्या किया जाय)

"मुजरिम को पेश किया जाय ", शहंशाहे आलम की भारी भरकम रौबदार आवाज़ गूँजती है.
फुरखान मुगलिया लिबास में ( स्कर्टनुमा घेरदार शेरवानी अचकन, चिल्ड्र्नस फैंसी ड्रेस, शाप न. 22, पहला तल ,मुहल्ले का पहला बाज़ार, से रुपये 250/- प्रतिदिन के रेट से किराये पर लाया गया है) सिर झुकाये, हाथ बाँधे खडे हैं.

"हुज़ूर, इनपर इलजाम है कि ये लगातार तीर और तलवार टिप्पणियों और लेख के चलाये जा रहे हैं. मुकदमा पेशी में है, कोई शिकार भी नहीं. खुदा न खास्ता ,जो एकाध थे वो भी एक जुट हो चले हैं. इनके खिलाफ बगावत का बिगुल बज चुका है. हार चुके हैं. आवाम ने इनके सेर पर सवा सेर और नहले पर दहला करार कर दिया ,फिर भी हवा में तीर चलाये जाते हैं. खुद को डान कियोट समझ रखा है. कभी दुश्मन को दोस्त समझ बैठते हैं, कभी दोस्त को दुश्मन. कभी तरीफ करते हैं कभी उसी की बुराई. बुरी तरह से कनफूजिया गये हैं"

"आलमपनाह, आपके शान में अगर गुस्ताखी न हो तो मैं इनके तरफ से कुछ बोलना चाहूँगा ". ये शख्स एक नकाबपोश था. चेहरा ढँका था पर लिबास से दस हज़ारी लगता था (एक ही टिप्पणियाँ दस दस बार पोस्ट करता है (ये संख्या कुछ कम भी हो सकती है सं ))


पाठकों ,इस एपीसोड का दूसरा प्रश्न
कौन है ये शख्स ?
कौन है ये रहस्यमय नकाबपोश ?
तुरत समस करें. सही जवाब पर ढेरों इनाम हैं. देर न करें. अभी अपना सेल फोन उठायें.
(वैसे भी इनाम अ.शु. दे रहे हैं. हमें क्या कितने भी सही जवाब आते रहें )
"बन्दा परवर, इस शख्स की कोई गलती नहीं ", नकाबपोश ने कहा. "अगर है, तो सिर्फ एक गलती. उसे ये मुगालता है कि उसमें हरिशंकर परसाई, श्रीलाल शुक्ल, शरद जोशी, म.स जोशी जैसे लोगों की रूह समा गई है. इसलिये खुद को व्यंग के बादशाह, शहंशाहे हँसी , बीरबल के भाई हातिम ताई समझ बैठे हैं.स्प्लिट पर्स्नैलिटी अलग से है, दो नामों से खुद को बुलाते है. ये सज़ा के नहीं रहम के हकदार हैं"

बादशाह निढाल पड गये. चाँदी के ज़ाम को होठों से लगाया और प्रिय बीरबल की ओर देखा. कुछ कहते उसके पहले ही ...........................


इस कहानी का ये क्रेज़ी टर्न , पागल मोड देने में बहुत मज़ा आया..आगे क्या होगा पता नहीं पर अब लगता है कि फुर जी को बख्श दें,, बहुत हो गया. हो सकता है अगले किश्त में ये हो कि इस एपीसोड से फुरजी का किरदार अलाना निभायेंगे.
बस एक समस्या है. कवितायें टाइप करना आसान था. लंबा लेख टाइप करना बेहद मुश्किल . अब समझ में आया कि फुरसतिया जी कितनी मेहनत करते हैं रोज़. पत्नि वियोग में बेचारे और करें भी तो क्या. अब सुमन जी के आ जाने से देखते हैं क्या स्कोर रहता है उनका

11/18/2005

नारद जी कहिन

इस कथा के सभी पात्र, घटना , स्थान काल्पनिक हैं. इस घटनाक्रम का किसी भी जीवित व्यक्ति से कोई सरोकार नहीं है...वगैरह वगैरह
आज सुबह सवेरे नारद जी दिख गये . . तुरत चेहरा छुपाते हुये खिसकने की तैयारी में लगे. अब हम भी कम थोडे ही हैं . एकदम से घेर लिया.

"नारद जी महाराज, क्या हुआ आपके फरियाद का ? प्रभु ने कुछ उपाय सुझाया ?"

"अरे ! प्रभु हैं. हज़ारों प्रार्थनायें इनबाक्स में पडी हैं. टाइम लगता है ." टालते हुये से फिर पतली गली से निकलने का प्रयास किया.
हमारी आवाज़ कुछ तेज़ हो गई थी. तो आते जाते चिकग हमारी तरफ मुडने लगे . मामला टलने के बजाय गडबडाने लगा तो नारद जी ने हमारी बाँह पकडी और खींच ले गये बगल के काफी शाप में.


"काफी उफी पीजिये. अरे क्या रखा है लडाई झगडे में .”

"पर आप तो बडे नेता बने थे . सबको उकसा रहे थे . अब क्या होगा ?" हमने टहोका .

"अरे होना जाना क्या है . हम तो शांति में विश्वास रखते हैं . ई जो फुरजी अर्थात शुकुल देव हैं न, अब हैं तो हमारे बँधु न. अब उनसे क्या बैर . " नारद जी के चेहरे पर परम ज्ञान की आभा फैल गई. चुटिया भी सहमति में प्रश्नचिन्ह से अल्पविराम में बदल गई.

लेकिन हमारी ज़िज्ञासा इतने से शांत कैसे होती .

"कुछ बताइये न. कोई राज़ तो है जरूर ."


"ज्यादा जिज्ञासा मत करिये . जिज्ञासा ने बिल्ली की जान ली थी, ऐसा कहा जाता है सदियों से "


"पर बिल्ली के तो नौ जीवन होते हैं . अभी तो हमारा पहला ही है . एक तो कुर्बान कर ही सकते हैं "

हमने फिर अस्त्र दागा. नारद जी ने मुँह बन्द रखा, सिर्फ मुंडी हिलाई. हमने भी पैंतरा बदला. वेटर को बुलाया. "ये मोका, लाते, कापुचिनो ह्टाओ और् रेगुलर काफी ढेर सारी क्रीम के साथ लाओ. हमें पता था नारद जी की कमजोरी.
तीसरी घूँट क्रीम की अंदर जाते ही नारद जी आनंदातिरेक के प्रथम अवस्था में आ गये. हम अपनी वाली ,जेम्स बांड स्टाईल में,दिमागी पैनापन और सतर्कता बनाये रखने के लिये, पास वाले नकली फूलों की झाड को पिला दिये.

काफी ने ट्रुथ सीरम का काम किया. नारद जी के मुँह से अमृत वचन फूटे,


"अब ऐसा है कि फुरजी ने बुलाया हमें . जरा घबडाये हुये थे. या तो मोनिका बेदी तर्ज़ पर स्टेट अप्प्रूवर बन जायें या फिर हमें फुसला लें अपनी फरियाद वापस करने को "


पाठकों फ्लैशबक में देखते हैं आगे की कहानी


फुरजी मसनद पर हताश ढलके हुये हैं .पुरानी वर्षों के बंधुत्व की दुहाई दे रहे हैं. नारद जी 'बडी मुश्किल से तो चंगुल में आये हो अब ऐसे थोडे छोड देंगे " वाला भाव चेहरे पर फेयर ऐंड लवली क्रीम की तरह झलकाये हुये हैं . कई घंटे की आरज़ू मिन्नत के बाद डील फाइनल होता है. फुरजी भी जैसे डील तय होती है आशस्वति का भाव पुन: उनके चेहरे पर विराजमान हो जाता है .



"अब देखा जाय आपको कौन सा फार्मूला दिया जाय ." आँख उलट कर ध्यानमग्न होने का सफल नाटक किया. कुछ अस्फुट बुदबुदाये, फिर स्वयं ही नकार में सर हिलाया, " न , ये आपसे नहीं होगा रहने दीजिये "


नारद जी अब प्रिय शिष्य का अवतार ले चुके थे और फुरजी को चातक दृष्टि से निहार रहे हैं .

"अच्छा, चलिये फार्मूला नम्बर 11 ठीक बैठेगा आप पर. लेख 420 तो हमारा पढा ही होगा. अरे वही शिकार और रानी वाला . बस वही करना है. धडाधड फर्जी चिट्ठा बनाते जाईये थोक भाव से, बस अंगूठी और पासवर्ड की कुंजिका हरदम साथ रखें (कमर में खुंसा हुआ दिखाते हुये). बस जैसे ही ओरिजिनल चिट्ठा पर लेख लिखें, दूसरे रानियों वाले चिट्ठा से दनादन टिपियाना शुरु कर दीजिये. 7-8 टिप्पणी के बाद अन्य चिकग अपने आप इस मुगालते में कि इतना टिप्पणी, बाप रे बाप, जरूर धाँसू होगा , हम काहे पीछे रहें, 3-4 टिप्पणी और बिना पढे दाग देंगे. और उसके बाद 3-4 जवाबी टिप्पणी आप दे डालिये.
फिर देखिये की टीप की संख्या दो दर्जन पहुँचती है कि नहीं. ई हमारा सुपरहिट फार्मूला है.

फुरजी का ज्ञान सुदर्शन चक्र की तरह नाचता नाचता नारद जी के चक्षुओं में समा गया.



फ्लैशबैक समाप्त होता है पाठकों



नारद जी ने काफी का अंतिम घूँट समाप्त किया. परम तृप्ति का ढकार लिया.


"धन्य हैं महाराज " हम भी अब तक पूरे प्रभाव में आ चुके थे.

"जरा धीरे बोलिये, उपर तक बात पहुँचेगी तो सब गडबडा जायेगा. मामला प्रभु के पेशी में है, सब जूडिस है. फुरजी वाला फार्मूला आजमा कर देखते हैं . नहीं तो अंत में सर्व शक्तिमान हैं ही.

नारायण नारायण "


नारदजी इकतारा बजाते हुये नेपथ्य की ओर विलीन हो जाते हैं.

11/17/2005

भक्त जनों की गुहार


ऐक्ट 1 सीन 1


सारे चिट्ठा लोक में त्राहि त्राहि मची है.चारों ओर अफरा तफरी का महौल है. सारे चिट्ठा कार गण ( आगे से सुविधा के लिये इन्हें चिकग कहा जायेगा..सं ) जान बचाये इधर उधर भाग रहे हैं .सब पहुँचे प्रभु के पास.

"प्रभु हमें बचायें. शुकुल देव की तारीफ हमारी जान लेने पर तुला है.हर दिन दो से तीन के हिसाब से तरीफ और लेख रूपी बमगोले यत्र तत्र सर्वत्र बिखेर रहे हैं. न दिन को चैन ,न रात को नींद. अब तो, प्रभु, हमें सोते जागते, उठते बैठते उनकी तारीफ और टिप्पणियाँ दिखाई देती हैं.साँस थामे चिट्ठा खोलते हैं अब तो ऐसी हालत हो गई है. ज्यादा तरीफ से प्रभु अब अपच और टीपच (टिप्पणी की अधिकता) हो रही है. जीना दूभर हो गया है.उनकी तारीफी ज्याद्तियाँ अब बरदाश्त के बाहर हो गई हैं. प्रभु, अब हम आपके शरण में आये हैं. आप ही हमारा उद्धार करें "

प्रभु ने आँख बंद की, ध्यान मग्न हुये.चिकग समूह भावना के अतिरेक से उत्तेजित थे. शोर से प्रभु के ध्यान में खलल पडा.नेत्र खोले और कहा,
"इतनी भीड क्यों है ? आपसब बाहर प्रतीक्षा करें. अपने एक या दो प्रतिनिधि को मेरे सामने भेजें. ( प्रभु भी अब तक बहुत डेली गेशन झेल चुके थे, देवताओं के कई यूनियन को सफलतापूर्वक निपटा चुके थे)

बह्त चिंतन मनन के बाद नारद जी को तैयार किया गया चिकग की बात प्रभु के सामने रखने के लिये. नारद जी ( जीवन स्टाईल में) नारायण ,नारायण कहते अंदर प्रविष्ट हो गये.अपने कमंडल और इकतारा ( या और जो भी होता होगा ) को रखा और पद्मासन में बैठ गये.

प्रभु ने शिव अवतार लिया, दोनों नेत्र बंद किये, तीसरे अध खुले नेत्र से नारद का अवलोकन किया.
"अब कहो वत्स. अपनी समस्या रखो"

"आप तो अंतर्यामी हैं प्रभु. बस हमारी समस्या का निदान बतलायें "नारद भावविह्वल हुये.

प्रभु ने तिर्यक भंगिमा से आसमान को देखा, थोडा बेजार हुये. अब कितनी समस्याओं का निपटारा करते रहें. ये आराम का वक्त था. पर खैर क्या करें प्रभु हैं तो भक्तों को देखना ही पडेगा. आवाज को गंभीर किया , नारद के झुके शीर्ष को प्रेम से निहारा और बोले, "................



ऐक्ट 1 सीन 2

हवन, धूप, लोबान के धूँये के बीच अचानक बिजली सी कडकी और बाबा प्रगट हुये. तुरत एक चेला बायें और एक ने दायें स्थान ग्रहण किया. हाथ बाँधे, बाबा की मुखमुद्रा भक्ति भाव से निहारते ( एक स्टिल पोज़ )

भक्त बाबा को साक्षात सामने देख धड से दण्डवत हुआ. चार बार "बाबा ,बाबा " की विकल गुहार लगाई. चेला नम्बर 1 उवाचा,
"बाबा आज मौनव्रत धारण किये हैं. अगर कुछ खास कहना होगा तो चुटका लिख कर देंगे,बाकी हम तो हैं ही अर्थ समझाने को"
(डाक्टर के क्लीनिक में पूर्व अवतार में,बतौर कम्पाउंडर कई कर्षों तक काम किया था. डाक्टर का पुर्जा, मरीज़ को समझाने में महारथ हासिल था)

भक्त लेटे लेटे,
"बाबा आप तो अंतर्यामी हैं. हमारी समस्या का समाधान करिये "
बाबा के बायें भौंह का एक बाल काँपा. चेले ने तत्परता से अनुवाद किया,
"बच्चा, आगे कहो"
"बाबा, हमारे चिट्ठा पर टिप्पणी का अभाव है, अकाल, सूखा सब पडा है. कोई उपाय बताइये. हवन, पूजा, यज्ञ, कोई तो उपाय होगा, पूरी बरसात न सही,कुछ बून्दा बान्दी ही सही "

बाबा की मुखमुद्रा गंभीर से गंभीरतम हुई. (नेपथ्य से उपयुक्त संगीत बजा .)फिर चेहरे पर दिव्य मुस्कान फैल गई.बायें आँख को दो बार नचाया. एक बार मध्यमा से नासिका खुजाई और मोनालिसा मुस्कान भक्त की ओर फेंक दिया.(अब समझते रहो बरखुरदार !)

बडी देर बाद चेला 1 को बोलने का पार्ट मिला था. सामने आया, छाती फुलाई, गला खखारा. चेला 2 मुँह फुलाये खडा था.बुदबुदाया "मेरी बारी (बोलने की) कब आयेगी ?"
बाबा ने एक उँगली उसकी ओर नचाई, अर्थात, धीर धरो, वत्स. इतनी आसानी से बोलव्वा पार्ट नहीं मिलता. बहुत पापड बेलने पडते हैं. मुझे देखो, इतने एक्स्पीरियंस के बाद भी आज मौन व्रत धारण करवा दिया.फिर गहन सोच में सर हिलाया, सोलीलोकी की, लगता है चेला 1 ने खास चढावा चढाया है, खैर आगे हम भी देख लेंगे.

चेला 1 तब तक शुरु हो चला था. ऐसी चीज़ों में देरी बिलकुल नहीं, इतना तो वह भी अब तक समझ चुका था.
चेहरे पर उचित भावभंगिमा को लाने के प्रयास में काफी हद तक सफल होते हुए (आगे का भविष्य स्वर्णिम लग रहा है)बोला,
"सुनो, भक्त,.............


चेले ने भक्त को क्या उपदेश दिया ???, प्रभु ने नारद को कौन सा ब्रह्मास्त्र दिया ???, चिकग की विकट समस्या का क्या निदान हुआ ??? (तेज़ नगाडे की अवाज़ के साथ)
इसकी कहानी अगले एपीसोड में

तबतक पढते रहिये, लिखते रहिये,कलम की स्याही सूखे नहीं, मूस का चटका चटकता रहे, तख्ती पर उँगली चलती रहे

11/11/2005

क्या फिर वसंत आया है

पेड के नीचे धूप मिली छाँह,
हिलती हुई कुर्सी और गोद में किताब,

बगल में लंबा ठँडा ग्लास
कुछ तीखा कुछ मीठा
तरल सा पेय

पैर के पास मेरा प्यारा कुत्ता
पंछियों के शोर पर एक आँख

खोलता ,फिर सर पँज्रे पर रख कर
आँखें बंद कर लेता

सामने मेरे आगे ,अंत में वृक्षों की कतार
पर उसके पहले हरी मखमली घास
और रंगीन फूलों की बेल


मेरे पीछे मेरे गाँव का प्यारा सा घर,
लाल छत और हरी खिडकियाँ

उजली धूप में खिलता हुआ
मैंने आँखें बंद कर लीं थीं,शांत स्निग्ध स्थिर
पर क्यों
मेरी उँगलियाँ अचानक बेचैन
हो रही हैं थिरकने को

शायद किसी प्यानो की कीज़ पर
क्यों मेरे पैर मचल रहे हैं किसी अनजानी
धुन के संगत को
मेरे मन में मद्धम संगीत का शोर किधर
से आया है ,
क्या फिर वसंत आया है

11/07/2005

कुछ हाइकु..दीवाली के

दीपक कहे
जगमगाये जग
मेरे ही संग

कैसी लगन
जलता रहा दीप
अँधेरा डरा

तेरा चेहरा
फुलझडी सी हँसी
रौशन जहाँ

घर आंगन
जुगनू से चमके
आज दीवाली

मुट्ठी भर
बिखेर दिये तारे
धरती पर

नैन चमके
दीये की रौशनी से
यही है खुशी

आज बिराजे
श्री लक्ष्मी औ गणेश
घर घर में

रंगोली सजी
जोत कलश जला
दीवाली मनी

11/01/2005

वही तन्हा चाँद

मुद्दतों बाद कुछ ऐसा
सा हुआ
रात भर धमनियों में
टपकता रहा
वही तन्हा चाँद

खिडकियों के सलाखों से
कभी झुक कर झाँके
धीरे से पलकों को
कभी छू कर के भागे
आखिर में इस खेल से
थक कर के
फैले हुए बिस्तर पे
सिमट कर के

रात भर पहलू मे
मेरे सोता रहा
वही तन्हा चाँद

गई रात तक
खेली गई जो
आँखमिचौली
उनींदे आँखों की
मदहोश खुमारी
हँस कर कह देती
वो मासूम कहानी
वो नटखट ,नादान
नन्हा सा वो खेल

दिनभर मुझे याद
आता रहा
वही तन्हा चाँद