3/06/2008

अँधेरे में लाईटहाउस

तुम्हारे होंठ इतने खट्टे क्यों हैं? पुरुष पूछता है क्रूरता से। और मन भी? औरत का चेहरा कड़ा है। किसी ज़माने में सुन्दर रही होगी , लीला नायडू जैसी , उन्नत ललाट , थोड़ी सी विडोज़ पीक भी। सस्ते शराब के खट्टे नशे में पुरुष को हर चीज़ खट्टी दिखाई देती है। कमबख्त नशा भी। सोचता है सूखी मछली का टुकड़ा मुँह में डालते। सामने दीवार पर ब्लैक ऐंड वाईट तस्वीर है अलीशिया मार्कोवा की, रौशनी और अंधेरे के खेल में रौशन चेहरा। रंग से चीज़ें गड़बड़ होती हैं। उनका स्टार्क डिफरेंस डाईल्यूट हो जाता है। अब औरत को बीच के खेल पसंद नहीं। आरामकुर्सी पर पैर सिकोड़े शीशे के बाहर अँधेरे को देखती है। बाहर कुछ नहीं है सिर्फ घटाटोप अँधेरा है। वही देखती है औरत। लहरों के गरजने की आवाज़ बेमत्त होकर सुनती है। बचपन में लुक अलाईव में पढ़ी थी किसी लड़की की कहानी जो लाईट हाउस में रहती थी। किसी भयंकर तूफान में अकेले पड़ी लहरों के थपेड़ों से बचती बचाती लाईटहाउस के लैम्प जलाती बहादुर लड़की की कहानी। औरत सोचती है मेनलैंड कितनी दूर है, तूफान कितना भयानक है और लाईटहाउस में कैद अभी लैम्प जलाना बाकी है।

पुरुष दरी पर लुढ़क गया है। बोतल खाली है। मछली के काँटे चीनी मिट्टी के सफेद प्लेट में अमूर्त डिज़ाईन बना रहे समुद्र तल के खारे जल के पुष्ट मछलियों की नियति गीत गाते हैं। रह रह कर पुरुष सुगबुगाकर हिलक कर एक खर्राटा ले , करवट बदल पसर जाता है नशे के अनाम बेहोश आलम में। बाँहों पर सर धरे क्लांत औरत कुर्सी पर गुड़ीमुड़ी सोचती है किसी अनजान तट पर छूटी कोई एक गीत की एक पंक्ति , किसी घुम्मक्कड़ बंजारे के सुरों का बिछड़ा धुन , कोई तलाश , एक खोज जाने किस का । एक चोट धँसती है छाती पर , रुलाई रुकती है छाती पर , साँस अटकती है छाती पर। लाईटहाउस अब भी अँधेरे में जड़ है।



(उस लाईट हाउस तो नहीं लेकिन उस चीनी घर की तलाश का गीत सुनिये पाओलो कोंते की खरखराती आवाज़ में .. ला कासा चीनेज़े )




और ये रहा

ballerina

अलीशिया मार्कोवा का स्केच उसी ब्लैक ऐंड वाईट तस्वीर से.. बनाने वाले फूहड़ हाथ ? मेरे !

6 comments:

Udan Tashtari said...

सुन्दर लेखनी का नमूना..अद्भुत..बधाई ..वैसे स्केचिंग भी बेहतरीन की है.

Sanjeet Tripathi said...

एक अलग ही दुनिया बुन देती हैं आप!!
मुझे लगता है यह कला बहुत कम लोगों को हासिल हो पाती है!! सो बनाएं रखें!!!

चलो जी, सस्ती शराब कभी नई झेलेंगे, आपने बता दिया न कि उसके खट्टे नशे में हर चीज खट्टी ही दिखाई देती है। ;)

वैसे स्केच बढ़िया बनाया आपने!!

Ghost Buster said...

स्केच सुंदर है. दिन भर का थका हुआ मस्तिष्क आर्टिकल तो ठीक से समझ नहीं सका. पर आप ने लिखा है तो कुछ अच्छा ही होगा.

azdak said...

ओह, महाराज कोंते के लिए कितना प्‍यार का दलिद्दर उमड़ा दिख रहा है.. कि आपके मोदिल्‍यानी टाइप स्‍केच के विहंगम स्‍तर से डरके लोग कुछ कहने से सहम जा रहे हैं? वैसे मैं भी घबराया हुआ-सा ही हूं..

azdak said...

और हां, घोस्‍ट ब्‍लस्‍टर जी सही कह रहे हैं- आपने लिखा है तो सही ही लिखा होगा.. लिखा है न?

डॉ .अनुराग said...

स्केच बहुत सुंदर है ओर विवरण भी पर ये पुरूष ....इसकी तो खासी ऐसी तैसी कर दी आपने