6/16/2007

खुश होने का एक बहाना भी चलेगा

गर्मी का आख्यान लिखा ही था कि बस बारिश शुरु हो गई । पहले गुमस ,एकदम महौल गुम फिर अंधड , तेज़ हवा , धूल । आसमान काला मटमैला ।यूँ भी एकदम नीला आसमान कहाँ दिखता है । मकान और मल्टी स्टोरीज़ , हाई राईज़ और ऑफिस कॉम्प्लेक्स की लगातार चकर मकर , बालू सीमेंट , ईट गारा ,रॉलर ,मिक्सर , रोड , हाईवे , फ्लाईओवर की घिचिर पिचिर , और अब इन सबके ऊपर मेट्रो की खटर पटर ।

जहाँ तहाँ काम चल रहा है । लाल और पीले नियान जैकेटस में , सेफ्टी हेलमेट लगाये कर्मचारी , हाईवे बनाने वाले ठेकेदार , डीएमआरसी के कर्मचारी , इधर उधर, ट्रफिक तक चलाते हुये । क्रेंस और ट्रक , पाईलिंग और बोरिंग । मेट्रो के चौखुटे साईनबोर्डस आधी आधी रोड को घेरे । और इन सब हंगामे और शोर में मिली जुली हॉर्न और गाडियों का शोरगुल । रात रात भर काम , रोड डाईवर्शन के चक्करों में लम्बे चौडे डीटुअर्स । और अब इस बात की दहशत कि बरसात हुई नहीं कि सडकों पर पानी का जमाव शुरु । और हम इन सब के बावज़ूद सब्र और शाँति से बिना किचकिचाये , बिना हडबडाये , बिना एक भी फालतू हॉर्न बजाये झेल रहे हैं इन सारे घँटगोल को । झेल ही नहीं रहे बल्कि मन ही मन खुश होने की सूरत भी खोज रहे हैं कि चलो दो गाने और सुनने भर ही तो रास्ता बढा है ।तो, हम ध्यान मग्न हो सूफी संगीत में रमें हैं । अली मौला मौला , जप रहे हैं । सिर्फ इसलिये कि कहीं बोर्ड पर किसी बनते हुये हाईवे , फ्लाईओवर के धूल धूसरित उपेक्षित कोने पर गर्द और गुबार से ढंका ,बीयर विथ अस फॉर अ बेटर टुमारो देख लिया था ।

8 comments:

Satyendra Prasad Srivastava said...

यही है राजधानी की जिंदगी। अच्छा पकड़ा है आपने। हम सब की खुशियां भी अब आत्मकेंद्रित ही है। हम अपनी ही खुशी में ही खुश होते हैं, अपने ही दुख से दुखी। राजधानी दूसरों की परवाह करने की इजाजत नहीं देती

azdak said...

नारद पर जो बेटर टुमॉरो दिख रहा है.. उसे लेकर भी बड़ा घिसिर-पिसिर मचा हुआ है.. उसपर भी चार लाईन लिख डालिए, प्‍लीज़?..

Divine India said...

राजधानी में बढ़ती घुड़-दौड़ में अगर ऐसा कुछ मिल जाए तो मन क्यों न कहे कि थोड़ी देर और होती तो मन मुग्ध हो जाता।

अभय तिवारी said...

सही लिखा.. पूरा जीवन इसी तरह होम होता है..

मसिजीवी said...

हमने खुश होने का कारण देखा कि प्रत्‍यक्षा ने टैंपलेट बदला है, फिर मायूस हुए कि मॉडरेशन भी डाल दिया है।(मायूस इसलिए कि आशंका हुई कि कुछ हुआ क्‍या)

खैर टेंपलेट पसंद आया और मॉडरेशन की सुरक्षा भी सह लेते हैं फॉर बेटर टुमारो

Anonymous said...

सही है। तमाम स्थानीय शब्द बहुत दिन बाद देखने को मिले।

उमाशंकर सिंह said...

छोटा पर जानदार!

शुक्रिया, उमाशंकर सिंह

उन्मुक्त said...

अरे गर्मी के बारे में पहले क्यों नहीं लिखा - बरसात पहले आ जाती :-)