8/23/2006

मैं और मेरी कूची

मुझे चित्रकारी का बहुत शौक था । पहले रंगों में खेलती थी , पेंसिल स्केचेज़ भी खूब बनाये । सीखने की बहुत इच्छा रही पर मौका नहीं मिल पाया ।जब स्कूल में थी तो किताबों और कॉपियों के मार्जिंस पर तरह तरह के चेहरे बनाना पसंदीदा समय निकालने का , वो भी पढाई के वक्त , तरीका था । अब भी मीटिंग्स में , वर्कशॉप में , कॉंफरेंसेस में , लोगों की शक्लें बनाना , मज़ा आता है ।

कई साल पहले बनाये गये अपने दो वाटर कलर पेंटिग्स पेश हैं


water colour village


और ये रहा एक और

water colour solitary house

ये शौक अब छूट सा गया है । कभी खूब सारी छुट्टी मिले तो फिर शुरु किया जाय ।

10 comments:

Laxmi said...

वाटरकलर सुन्दर हैं, प्रत्यक्षा। और चित्रों की प्रतीक्षा है।

अनूप भार्गव said...

कल्पना यदि सुन्दर और मौलिक हो तो चित्र चाहे कूची से बनें या कलम से, अच्छे ही होंगे ।

ई-छाया said...

अरे बाप रे, छुपी रुस्तम हैं आप तो।
कभी सोचता हूं अच्छा ही हुआ जो आप चित्रकार न बनीं, नही तो आपको चिठ्ठाकारी करने का वक्त न मिलता और हम न जाने कितने बेहतरीन लेखों कविताओं आदि से वंचित हो जाते।
वैसे वंचित तो हम अब भी हैं। वो मुन्नार यात्रा का क्या हुआ? मुन्नार , मुन्नार , हम आ रहे हैं, लेकिन कब पंहुचेंगे भाई? क्या वृत्तांत पूरा हो गया?

RC Mishra said...

बहुत बहुत अच्छे चित्र हैं। अभी तो मैंने यहीं से save कर लिये हैं। यदि ये digital छाया चित्र बडे़ आकार मे प्राप्त हो सकें तो आपका बहुत आभारी रहूँगा।

Pratyaksha said...

शुक्रिया लक्ष्मी जी , अनूप जी, छाया जी , मिश्रा जी, अब तारीफ कर दी है तो कुछ और स्केचेज़ और वाटर कलर्स झेलने पडेंगे ;-)

छाया जी , मुन्नार यात्रा बाकी है , लिखेंगे । केरल यात्रा के फोटो अडियल टट्टू हो गये हैं लैपटॉप पर अपलोड नहीं कर पा रहे । वैसे अंदर की बात बतायें ,आलसी लोगों से और क्या उम्मीद कर सकते हैं

'अजगर करे न चाकरी ,पंछी करे न काज
दास मलूका कह गये सबके दाता राम'

मिश्राजी ,ये पेंटिंग छोटी सी है । इसे भाई ने डिजि कैम से खींचकर पीसी में डाल दिया । पता नहीं ये बडा हो सकता है या नहीं ।मैं वैसे भी तकनीकी बुद्धु हूँ ।

Manish Kumar said...

कल आपके ब्लॉग पर आया तो देखा कि एक नहीं बल्कि ३ पोस्ट हैं। लगा कि प्रत्यक्षा जी किसी हालत में ये चित्र दिखाये बिना नहीं मानेंगी :) किस पोस्ट पर comment करूँ इस असमंजस में
वापस लौट गया ।
बहरहाल सुंदर चित्र हैं । आगे भी आप इन्हें बांटेगी ऐसी आशा है ।

Anonymous said...

अति सुन्दर प्रत्यक्षा जी ! आपकी "कूचीकारी" और "शब्दकारी" दोनो देखने यहाँ आते रहना होगा!

अनूप शुक्ल said...

हमारी तरफ से भी बधाई स्वीकार कर लें। कल की तारीख में ही 'एडजस्ट' कर लें। अब जो बने होंगे उनको तो पोस्ट किया बिना तो आप मानेगी नहीं,इतने लोग कह जो चुके हैं ,इस लिये अनुरोध है कि और भी चित्र दिखा दें।

Pratyaksha said...

हा हा मनीष , सही पकडा । दिखाये बिना ऐसे कैसे छोड दूँ ।
शुक्रिया रचना , अगले पोस्ट में दोनों झेलना पडेगा :-)

अनूप जी हाज़िर है अगला पोस्ट

Anonymous said...

यहां सभी चित्रों की तारीफ कर रहे हैं।
अब मैं क्या करूं प्रत्यक्षा जी क्योंकि यहां की सरकार flickr.com को बलॉक कर रखी है :(