आज अखबार में पढा,
कल बहुत ठंड थी.
कल जैसे पता ही नहीं चला
इसकी वज़ह खास थी
कल, अर्से बाद, मिले थे
हमसब
मिलने की तपिश थी
धूप की चादर तनी थी
बातें थीं
कवितायें थी
हंसी थी
रौशनी थी
चाय की गर्म चुस्की थी
खाकरी करारी थी
कुछ पुराने थे
कुछ नये चेहरे भी थे
जो नहीं थे
उन्हे याद किया
जो मिले थे
उन्हें दुगुने जोश से
स्वीकार किया
अब उम्मीद करते हैं
आगे भी ऐसा दिन आये
जब ठंड हो चारों ओर
तो दिलों में
गर्मी हो
और अगर
गर्मी का मौसम हो
तो दिलों में
एक दूसरे से मिलने का
शीतल एहसास हो
फताड़ू के नबारुण
2 weeks ago
3 comments:
पढ़कर इस ठंड मे भी वसंती मौसम, और बीते दिनों का एहसास हो आया
कविता का प्रवाह बोले तो 'फ्लो' बड़ा बढ़िया है। यह 'हायकू' कविता से 'हाईवे'कविता की यात्रा
है!यह भी कि कविता अच्छी लगी। बधाई मुलाकात की। दुबारा मिलें तो फिर विस्तार से लिखें।
आप पर मुझे लिखने का आग्रह किया है किसी ब्लागर साथी ने । मेल आया है मुझे । पढ रहा हूँ इन दिनों आपकी रचनाएं क्रमशः । लिखूँगा विस्तार से फिर .... । कृपया जीवन-वृत बताना चाहें । समीक्षा में रचनाकार के परिवेश को जानने से सुविधा होती है । यदि न भी भेंजे तो भी मैं लिखूंगा । फिलहाल इतना ही ।
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