5/24/2006

गुलमोहर



काली डामर की सडक
अटी पडी है
झरे गुलमोहर के फूलों से
इस दोपहरी में
आओ
चुन लें इन्हें
ये मौसम
पता नहीं
कब बीत जाये
.............................................................

सफेद चाय की प्याली
और लाल गुलमोहर
जैसे मेरी सफेद साडी
नीचे लाल पाड
बस एक फूल
की कमी है
आओ
खोंस दो न
मेरे बालों में
बस एक गुलमोहर

...........................................................
तपती दोपहरी में
समय ठहर जाता है
डामर की सडक
चमकती है पीठ पर पडी
सर्पीली चोटी जैसी
फ्रॉक के घेरे में
गुलमोहर बीनती लडकी
कब बदल जाती है
मरीचिका में
............................................


( ऊपर की पेंटिंग ज्यार्जिया ओ कीफ की )

5/12/2006

हम तो सीख कर रहेंगे

आजकल मेरे सिर पर एक नया भूत सवार हुआ है. मैं तैरना सीख रही हूँ. बचपन से बडी इच्छा थी तैरना सीखने की. कभी एक लिस्ट बनाई थी कि क्या क्या सीखना है. उनमें घुड सवारी, संगीत , गाडी चलाना , तैरना, चित्रकला, स्कीईंग , पॉटरी, कई चीज़ें शामिल थीं

साल बीतते गये पर इनमें से कोई संभव नहीं हो पा रहा था. कभी समय का अभाव , कभी सिखांने वाले का अभाव.


खुदा खुदा करके गाडी चलाना सीखा. अब लगता है कि गाडी चलाने में ऐसी कौन सी खास बात है.यही होता है जबतक कोई चीज़ करनी नहीं आती तबतक उत्कट इच्छा होती है उसे करने की. पर जब वो चीज़ करनी आ जाती है, तुरत हम उसे बायें हाथ का खेल समझने लगते हैं.

खैर अभी तैरने के साथ ऐसा नहीं हुआ है. शायद इसलिये कि तैरना सीखने की प्रक्रिया अभी भी जारी है.पहली बार जब पूल में गई , तब रेलिंग पकड कर लटकी रही. जब बच्चे सीख रहे थे तब उन्हें मैं थ्योरेटिकल सीख देती रही थी. आश्चर्य होता कि सीखना क्या मुश्किल है. बस हाथ और पैर ही तो चलाने हैं .हर्षिल ने सीखा नौ साल की उमर में . पाखी ने शुरुआत की पाँच साल की उम्र से बच्चों के पूल में फ्लोटर्स के साथ . अब मज़े में तैरती है . हर्षिल तो खासा एक्सपर्ट समझता है अपने आप को . अब रोल रिवर्सल हो गया है.
पहले दिन पाखी मेरे साथ थी . मुझे नसीहत दे रही थी," ममा सिर पानी के अंदर करो, और ज्यादा. पैर ऐसे चलाओ"

पहला दिन.....
पहली बार जब पूरा सिर अंदर किया और सारा शरीर पानी में तैर गया और जैसे ही पानी ने शरीर को ऊपर फेंका डर एकदम से काफी कम हो गया. पहले दिन तो बस यही किया . रेलिंग पकड कर सिर पानी में और शरीर को हल्का पानी में तैतना महसूस किया.उसके पहले पानी देख कर डर लग रहा था.

दूसरा दिन....
दूसरे दिन रेलिंग छोडना सीखा. इतना डर लगा कि क्या बताऊँ . पैर के नीचे ठोस ज़मीन न हो तो कितना असहाय महसूस होता है ये पता चला. प्रशिक्षक ने एक बार आकर एकदम से मुझे रेलिंग से दूर धकेल दिया. जो सबसे पहली प्रतिक्रिया हुई घबडाहट की . पैर काबू में नहीं थे, कोशिश की पानी में ही चल दूँ, बस रेलिंग हाथ में आ जाये किसी तरह. गनीमत था कि चार फुट पानी ही था. लेकिन चुल्लू भर पानी में भी डूबा जा सकता ये पता चला. डर और ज्यादा बढ गया.मेंढक वाली कहानी हो गई थी, पहले चार फुट कूदा फिर तीन फुट फिसला

तीसरे दिन ,
कम गहराई वाले तरफ लगभग बीच में प्रशिक्षक ने खडा कर दिया .
" कँधे पानी के अंदर करो फिर धीरे से सिर नीचे पानी में साँस रोके, पैर से शरीर को आगे ठेलो "
या खुदा रेलिंग बहुत बहुत दूर थी. एक तिनके का भी सहारा नहीं था . प्रशिक्षक सर पर सवार था. आसपास मेरे जैसे कई लोग थे,
डर के बारे में क्या सोचना. जैसा कहा गया वैसा किया.
"अब पैर चलाओ "
पैर चलाना शुरु किया. युरेका !!! रेलिंग हाथ में आ गई थी . मतलब इतना तो तैर लिये . आत्मविश्वास ने ज़ोरदार छलांग लगाई .
दो बार, तीन बार , चार बार. हर बार लगा अब तो हो गया . पाँचवी बार पूरा शरीर घूम गया, एक घुलटनिया,पानी मुँह के अंदर, पैर कहीं और हाथ कहीं और. बडी मुश्किल से खडे हुये. आत्मविश्वास ने डाईव मारी. बिलकुल तल पर. इसके बाद पानी में शरीर छोडने में हर बार डर लगता रहा .
अपने ऊपर बडा गुस्सा आया . घर आकर भी बडे मायूस रहे. बच्चों ने हौसला बढाया. ये भी कहा कि तैरना तो इतना आसान है आप डर क्यों रही हैं.

चौथा दिन....
आज बहुत हिम्मत करनी थी . प्रशिक्षक ने कहा आज हाथ भी चलाना है . हाथ के मूवमेंट्स बताये फिर बीच पानी में खडा कर दिया .
दिल थाम कर बदन को पानी में छोड दिया . पहले शरीर हल्का होकर तैर गया . फिर पैर चलाने शुरु किये. उसके बाद हाथ.
कुछ भी सिनक्रोनाईज़्ड नहीं था पर शायद कुछ सही कर रहे होंगे क्योंकि जब पानी से सिर निकाला तो शुरुआत के जगह से काफी कुछ दूर थे. आज का दिन अच्छा रहा . यही करते रहे और पानी से डर खत्म .

पाँचवा दिन....
अब मज़ा आ रहा है . आज बहुत थक भी गये . शायद अब सही मायने में तैर पा रहे हैं .दिल्ली दूर है . ज्यादा गहराई वाले जगह से परहेज़ अब भी है , पर कम गहराई में डर खत्म.

दोस्तों अभ्यास ज़ारी है. एक हफ्ता बीत गया है . अगले हफ्ते तक तैरने की तकनीक में सुधार होना चाहिये. कोई टिप्स अगर हो तो बतायें
आगे भी ऐसे ही कोई नई चीज़ सीखने का इरादा है, पर पहले एक कुशल तैराक तो बन लूँ

5/10/2006

र्सिफ एक आईसक्रीम के लिये

मेरी निगाह टिकी हुई थी धीरे धीरे बढते हुए अंको पर हर पच्चीस कदम पर एक कैलोरी और .
पसीने की एक छोटी धार र्गदन से होकर कँधों की पेशियों के रास्ते, रीढ की हड्डी पर रास्ता बनाती , बढना ही चाहती थी .
अभी र्सिफ दस मिनट हुए थे . साँस कुछ त़ेज चलने लगी थी . सामने आईने में ,अनवरत ,एक लय से बढता एक पैर , फिर दूसरा .
"स्वींग योर आर्म्स "
प्रशिक्षक की आवाज थी .
बोलने में उर्जा खर्च नहीं किया .उसी ऱफ्तार से से चलते चलते, हल्का सा सर हिलाया .
कुछेक मिनट वह वहीं खडा रहा . मेरी ऱफ्तार और लय को नापता तौलता . फिर लौट गया .
साँस अब मेरी त़ेज चल रही थी . पसीने की धार , नदी बन चुकी थी . रीढ से होती, चुनचुनाती, सिहराती, नीचे . बिना आस्तीन वाली टी र्शट बदन पर चिपक गई थी . बाँहें पसीने से नम . बाल बँधे पर भीगे चिडिया से सर पर चिपके . चेहरे पसीने में नहाया, तमतमाया हुआ .
कैलोरी काउन्टर 185 पर पहुँच गया था . समय ,लगभग साढे अठारह मिनट .ऱफ्तार 7 के आसपास .
कितनी देर और , मेरे मालिक !
आँखें अब सामने आईने से हट्कर कैलोरी काउन्टर पर चिपक गई थीं . दिमाग शून्य . अब और कुछ नहीं सूझ रहा था . अपने आप को सामने आदमकद आईने में देखना भी नहीं .
185 से 200
200 से 215
225, 250
सौ कदम और . अब ऱफ्तार क्म करनी पडेगी . पैर जवाब दे रहे हैं . वैसे भी मेरी स्टैमिना कम है .
नाजुक हूँ . शरीर से नहीं , मन से .
फिर भी कितनी मेहनत कर रही हूँ .
नही, जनाब ! मैं कोई फिटनेस फ्रीक नहीं हूँ . पर क्या करें एक आईसक्रीम के लिये इतना कुछ तो करना ही पडता है . मानते हैं न आप भी .


...................................................................................................................................................................

( ये लेख "शब्दाँजलि में छप चुका है)

5/04/2006

इंतज़ार का सलीका

सोचती हूँ
जब तक तुम
नहीं आते
इस कमरे को
ठीक ही कर लूँ
खिडकियों पर पर्दे
खींच कर बराबर
ही कर दूँ

बिखरे कागज़
समेट दूँ
अपने बालों को
जूडे में कस लूँ
ऐशट्रे में बिखरे
सिगरेट के टुकडों से
आता है
तुम्हारे होठों का स्वाद
हाँ चखा है मैंने

इस कमबख्त
इंतज़ार में
और क्या क्या कर लूँ

डोलती हूँ बेचैन
इस कमरे से उस कमरे
साँस भरती हूँ
एक के बाद एक
साडी के खोंसे पल्ले से
टपक जाती है
मुचडी सी इंतज़ार की
एक और घडी

पर जानती हूँ
जब तुम आओगे
मैं हो जाऊँगी
एक जंगली बिल्ली
झपट जाऊँगी
तुम पर
खरोंच डालूँगी तुम्हारे चेहरे पर
हर लंबे पल का इतिहास

फिर न कहना
दोबारा इंतज़ार करने को
ये नफासत से इंतज़ार
करने के सलीके
मुझे आते नहीं