10/24/2008

बाजूबन्द खुल खुल जाये...

रही होगी कोई बात जिसका सिरा पकड़ कर तुम बढ़ गये आगे कहीं ..वहाँ जहाँ लाड़ दुलार की गुनगुनी ताप नहाये बैठे थे हम ... बावज़ूद , किसी खालीपन के शून्य में हाथ पसारे मैं खड़ी थी ..तुम्हें खोजती हूँ , तुम्हें खोजती हूँ .. कहती , आँख पर जाने कैसी काली पट्टी बाँधें हाथ बढ़ाये किसी बचकाने खेल को माईम करती ..खोजती थी ..


तुम आँख मून्दे बोलते , जानती हो उस मायन संस्कृति में , मिथ के अनुसार वीत्सीलोपोचत्ली ने घुमंतुओं को निर्देश दिया एक शहर बसाने को , वहाँ जहाँ वो देख सकते थे नोपल कैक्टस के ऊपर पड़े अलसाये साँप को बाज़ का शिकार होते हुये । मिथक के अनुसार मेक्सिका लोगों ने अपना मुख्य शहर बनाया टेनोशटीटलैन में ..


और मैं कहती आदमी के अंदर नैसर्गिक प्रेम नहीं होता ..नैसर्गिक घृणा होती है , प्रेम हम सीखते हैं .. प्रेम सीखने और फिर याद करते रहने की चीज़ है .. न .. जैसे बचपन में झूम झूम कर पहाड़ा रटते थे , है न .. देखो अब तक याद है मुझे पंद्रह का पहाड़ा .. पंन्द्रह का पंद्रह , दूनी तीस , तिया पैंतालिस , चौके साठ ..यहाँ भी मैं शातिर होती हूँ , एकमात्र पहाड़ा जो याद रहा कि क्या मज़े की राईम थी ..ये शातिरपना भी नैसर्गिक है , कितना चाहे छुपाओ , जब तब कंबल से मुँह निकाले शरारती बच्चे सा अपनी मौज़ूदगी दर्ज़ कराता रहता है ..


तुम संजीदगी से देखते हो , बिना मेरी चालाकी से विचलित , जैसे बच्चे को शरारत करने की छूट दी गई हो , फिर किसी गुरु गँभीर वाणी में कहते हो , हाँ तो मैं मायन सभ्यता की बाबत तुम्हें बता रहा था ..
मैं देखती हूँ , बाहर हवा से फर्न के पत्ते हिल रहे हैं , एक कबूतर अपने जोड़े को देख रहा है , कहीं बगल से छन्न्न से तरकारी छौंकने की आवाज़ आ रही है , पिछली रात तुम्हारे पीये गये सिगरेट की टोंटी झूले के पास गिरी है , तुम्हारी आवाज़ का खुरदुरापन मेरे हाथों को सहला रहा है , मेरी आँखें तुम्हारे चेहरे पर गड़ी हैं , मेरा चेहरा मेरी हथेलियों पर टिका है ...


मैं तुम्हें नहीं बताती कि मायन सभ्यता पर जितनी बातें तुम मुझे कह रह हो , वो सब मैं जानती हूँ , बहुत पहले से..

कहीं दूर से 'बाजूबन्द खुल खुल जाये' हवा में तिरता है मेरे आसपास....

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23 comments:

roushan said...

और मैं कहती आदमी के अंदर नैसर्गिक प्रेम नहीं होता ..नैसर्गिक घृणा होती है , प्रेम हम सीखते हैं .. प्रेम सीखने और फिर याद करते रहने की चीज़ है .. न

सच कहा आपने प्रेम सीखने और याद करते रहने की चीज है.
बात कहने का मंत्रमुग्ध कर देने वाला तरीका शायद नैसर्गिक ही होता होगा जैसे आप में है

manvinder bhimber said...

baju bandh khu khul jae.....mood fresh ho gya

कंचन सिंह चौहान said...

sundar shabda ...bahut sundar bhavana...!

सचिन श्रीवास्तव said...

आदमी के अंदर नैसर्गिक प्रेम नहीं होता ..नैसर्गिक घृणा होती है

यही सही है.
आदमी,
देश,
प्यार,
इच्छाएं,
सब झूठ है!!!
सिर्फ नफरत सही है!!!
इस शहर में
या
उस शहर में
यानी कि
मेरे और तुम्हारे में समय में
सिर्फ नफरत सही है.

शायदा said...

अच्‍छा है न, वो सब सुनते रहना जो हम पहले से जानते हैं, बिना यह जताए कि जानते हैं। एक भरम बना रहता है और इस जानने और न जानने जैसे भाव को बहुत पवित्र बनाता है।

neera said...

मैं तुम्हें नहीं बताती कि मायन सभ्यता पर जितनी बातें तुम मुझे कह रह हो,वो सब मैं जानती हूँ , बहुत पहले से...
ऐसी जानी-बुझी कितनी बातें हम बार-बार सुनते हैं सुनाते हैं आप उन्हें कितनी खूबसूरती से लिखती हैं वाह प्रत्यक्षा!

डॉ .अनुराग said...

कुछ गर्म रहे कुछ ठंडे हुए
रिश्ते थे लिबास की तरह ...

वक़्त के साथ बदलते रहे

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

ये कौन थे प्रत्यक्षा? मुनव्वर खाँ?

Arun Aditya said...

शातिरपना भी नैसर्गिक है, कितना चाहे छुपाओ, जब तब कंबल से मुँह निकाले शरारती बच्चे सा अपनी मौज़ूदगी दर्ज़ कराता रहता है ..
वाह क्या बात है.

वर्षा said...

अरे वाह! ये पढ़ना सचमुच बहुत अच्छा था।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बस ऐसी बातेँ होतीँ रहेँ
और
ऐसा ही गीत सुनेँ -
और क्या चाहिये !!
परिवार के सभी के सँग
दीपावली का त्योहार
खुशी खुशी मनाओ
यही शुभकाँक्षा है :)
स्नेह सहित -
- लावण्या

पारुल "पुखराज" said...

डबल ट्रीट…

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

कई बार कल्पनायें पँख पसारती हैं.....शब्द जो टँगे हैं हवाओं में, आ जाते हैं गिरफ्त में....कोई आकार, कोई रंग ले लेते हैं खुद बखुद.... और ..कोई रेशमी सपना फिसल जाता है आँखों के भीतर....अचानक , ऐसे ही..........
kabhi to jo kuch khud kahana chahate hain....vo shabd hamaari jeebh par nahin aate....magar jisko kahana hai.....vo khud hi hamare shabd boltaa saa lagta hai to ham kya karen.......blog kee duniyaa men aane par pata chalaa hai ki kitne adbhut logon ko ham padh paa rahe hain ...na sirf itnaa hi balki kabhi-kabhi to aamne-saamne-se baat karte hue-se..sach accha laga...pratyaksha.......!!

Anonymous said...

सुन्दर! ये सिगरेट कब छूटेगी जी। लिखते रहना चाहिये नियमित। माइम/राइम! अच्छा है!

Dr. Nazar Mahmood said...

बहुत् ही सुन्दर

Anonymous said...

beautiful! but pyaar seekne ki cheez hai? beg to differ with you... love happens on its own and not only that we, humans, dont need to learn it, infact everything in creation knows love...because love is happening every moment in every thing around us! again, sorry if i missed your point.

Anonymous said...

thanks a lot pratyaksha, i learnt from here how to put music with esnips on your blog... cheers

दीपक said...

प्रेम और घृणा एक सिक्के के दो पहलु है अंधकार और प्रकाश की तरह ।इसलिये प्रेम जब चरम पर होता है तब घृणा न्युनतम होता है मगर खतम नही होता और जब घृणा चरम पर हो तो प्रेम न्युनतम होता है मगर खतम नही होता ।ये अलग-अलग ना होकर एक ही चीज की दो मात्राये है ।इसलिये यदि घृणा नैसर्गिक है तो प्रेम भी नैसर्गीक होगा क्योकि प्रेम भी घृणा से अलग नही है वह उसी का ही रुप है । इसलिये अक्सर दो गहरे दोस्त कभी ना कभी गहरे दुश्मन हो जाते है और दो गहरे दुश्मनो के बीच कभी ना कभी दोस्ती हो जाती है ॥

आपके जन्मदिन पर आपकी बढी हुयी उम्र और घटी हुयी जिंदगी के लिये हार्दिक बधाई!!दीपावली मुबारक हो!!

Smart Indian said...

बहुत सुंदर शब्द और मधुर गीत भी. दीपावली पर्व और नए संवत्सर के लिए बधाई!

गौरव सोलंकी said...

:)

admin said...

आपको जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं।

BrijmohanShrivastava said...

मेलजोल और सामाजिकता के त्यौहार दीपावली के पावन पर्व पर हार्दिक शुभ कामनाएं एवं बधाई /

Pawan Kumar said...

kafi achaa likha aapne....