4/26/2007

तो इस बार ये देखा

पिछले महीने मसूरी गये । शाम निकले , रात मेरठ में । फिर अल्लसुबह मसूरी को ।
मेरठ के आगे चलते चलते अचानक हवा में मीठी ,सोंधी खुशबू । गाडी रोका और पहुँच गये गुड बनते देखने । आव भगत हुई , मतलब बेंत की कुर्सी दी गई , ताजे गुड की भेली ,अखबार के पुडिये में पेश किया गया ।

गन्ने का रस खौलाया जा रहा था बडे हौदों में । नीचे आग तेज़ लहक रही थी । कोई सफेद पाउडर तो डाल रहे थे , रस को साफ करने के लिये । बहुत पूछने पर भी ये नहीं बताया कि ये निर्मा पाउडर है ।

तो ये गुड , गुडगाँव का नहीं यूपी का है । मेरठ के आगे कोई जगह थी बडा प्यारा सा नाम था । ध्यान नहीं आता अब । वैसे नामों के बारे में , दिल्ली के कई जगहों के नाम से ऐसी सिहरन उठती है । लगता है मुगलकाल में पहुँच गये , सराय रोहिल्ला , सराय कालेखाँ , युसुफसराय । साकेत से मेहरौली आयें तो कुतुबमीनार सीधा दिखता है । हरियाले पेडों के बीच खडी मिनार । हरबार उधर से आते वक्त लगता है घोडों की सरपट टाप सुनाई दे रही है । पुराना किला घूमें तो शायद कहीं कोई मुगल बादशाह घूमता नज़र आ जाये या फिर हमाम में नहाती शाहज़ादी । दाफीन दी मौरियर का मगनस लेन और डिक यंग याद आ जाता है ।
नालन्दा घूमते वक्त भी ऐसा ही कुछ लगता था । नालन्दा के आसपास सीहिन नाम के गाँव में ननिहाल था । सो वहाँ घूमते वक्त लगता कि अपने पुरखों पूर्वजों के बीच घूम रहे हैं । देजा वू जैसी अनुभूति होती । रूट्स अब समझ आया । एक्सोडस भी । खैर ये सब प्रलाप फिर कभी ।

ज्ञान वर्धन तो सचमुच हुआ । लौटती वक्त पाखी अपने खास अंदाज़ में जगह जगह किलकती रही , मुझे गुड की सूँघ आ रही है । खेतों में छोटे छोटे गुड के खदकते हौद । कुछ बडे शुगर मिल्स । फिज़ा मीठी थी । बच्चे अब महक से पहचान लेंगे कि गन्ने से गुड बनाया जाता है । नहीं तो बेचारे भोले मासूम अब तक पैकेट में गुड देखते आये थे ,उसे गन्ने से जोडना उन के लिये नामुमकिन ही था ।

हाँ , कैमेरे का इस्तेमाल बढिया हुआ । इस बार मसूरी में एक एंटीक शॉप दिखी लंडूर के रास्ते में । मॉल से दूर ,छोटी सी । ढेर सारी अंग्रेज़ों के ज़माने की चीज़ें , क्म्पास , आवर ग्लास , दूरबीन , तरह तरह की घडियाँ , सौ साल का कैलेंडर । दिखायेंगे , आपको भी दिखायेंगे ,पर अगली बार । तब तक आज यहीं पर बस ।

12 comments:

azdak said...

नहीं, नहीं.. अभी दिखाइये.. नालंदा घुमाइये..

Arun Arora said...

खतौली है वो जगह ये सारा इलाका गुड खांड,शक्कर,बूरा,राब,के लिये जाना जाता है

सुजाता said...

सही कहा प्रत्यक्षा
बच्चे अक्सर नही समझ पाते कई चीज़ों के सम्बन्ध ।इसलिए हमने लैंसडाउन सेआते हुए मेरठ के पास ही ,{जैन शिकंजी} से ईखें तोडी ,गेहूँ की बालें तोडी ।उमका स्पर्श और गन्ध यहाँ हमारे शहराती बच्चे कहाँ ले पाते हैं।

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया. चलिये, रुक जाते हैं अगली बार तस्वीरों के लिये :)

Pramendra Pratap Singh said...

प्रतीक्षा है।

Divine India said...

दिखाया पूरा का पूरा सरलता से पर लगा कुछ देखा ही नहीं जिज्ञासा बची तो रहती हैं…।

Manish Kumar said...

मोहननगर, मोदीनगर, मेरठ, खतौली, मुजफ्फरनगर,रुड़की, देहरादून........मसूरी । कभी ये सड़क काफी जानी पहचानी हुआ करती थी मेरे लिए ! चित्रों का इंतजार रहेगा ।

Anonymous said...

ये पोस्ट लिखकर अच्छा याद दिलाया, वैसे गुड़गाँव का ना तो गुड़ प्रसिद्ध है (शायद वहाँ भी बाहर से आता है) ना ही वो गाँव जैसा लगता है फिर सभी कहते हैं गुड़गाँव :)

उन्मुक्त said...

चित्रों का इंतजार है।

Neelima said...

आपकी एक कविता के लिए प्रकाशन अनुमति चाहिए। मेरे पास आपका ईमेल आई डी नहीं है कृपया neelimasayshi at gmail dot com पर संपर्क करें या कम से कम अपना आई डी भेज दें।
बाद में इस कमेंट को मिटा सकती हैं।

david santos said...

Thanks for you work and have a good weekend

Sajeev said...

thank you pratyaksha, all the photos are great and offcource your style of writing as always mind blowing