7/06/2006

यूरेका यूरेका

गतांक से आगे.....

समय सात बजे सायं......प्रयास जारी है. हर्षिल ने अब तक 300 तक के कॉम्बिनेशन आजमाने का महारथ हासिल किया. उसकी उँगलियाँ अब दर्द कर रही हैं . लिमका रिकार्ड हो सकता है क्या ? आशावान जिज्ञासा !
मेरी प्रतिक्रिया.....करते रहो वरना ट्रिप कैंसिल . टिकट भी एहतियातन सूट्केस के अंदर वाले पॉकेट में रखा था .
पाखी..रहरह कर बिसूरने के अलावा उलजलूल सुझाव देकर हमारी चिडचिडाहट को बढा रही है.

अब मैं ने भार लिया पर 400 तक पहुँचते पहुँचते उँगलियाँ जवाब दे गईं . बच्चों की उँगलियाँ ज्यादा लचीली होती हैं क्या ?
ये भी लग रहा है कि इस तरह शायद ही खुले. हो सकता है कि सही कॉम्बिनेशन आ कर जा चुका. शायद लिड को खींचना चाहिये सही नंबर पर , तब ही खुले. हे ईश्वर ! अब क्या. एक घंटा बीत चुका है.

पाखी ने एलान किया, "जब पापा आयेंगे वो खोल देंगे"
हर्षिल ," पापा क्या सुपरमैन हैं ?"
हाँ हैं न , मेरे पापा सब कुछ कर सकते हैं.

चलो यही सही. हताश हम भी पलंग पर लेट गये . अब आयें संतोष.

साढे आठ... संतोष का पदार्पण.
"चाय पिलाओ तो सूटकेस खोलें "
हम उवाचे ," अरे जाओ , तुमसे क्या खुलेगा. हमने सब कोशिश कर देख ली "
संतोष का रिकार्ड सबसे खराब. दस मिनट में ही हार मान लिया.

चाय बकायदा पी गई और हम निकल पडे मय सूटकेस लाम पर . इतनी देर हो गई थी. घर के पास ही नुक्कड पर वर्कशॉप है वहाँ पूछा कोई चाभी ताले वाला है आस पास .
"था अभी पाँच मिनट पहले तक "
आशा ने गोता मारा
"उसका मोबाईल नंबर उसके पोल के साथ लगे पेटी पर लिखा है "
( अरे तो ये पहले बताना था न )

आशा ने एक छोटी सी कुदान मारी
तुरत मोबाईल लगाया गया. उसने बताया पास में ही है और दस मिनट में पहुँचेगा.
हम ने डेरा डाल लिया, गाडी पार्क की गई. इंतज़ार शुरु

बंदा बात का पक्का निकला. दस मिनट में हाज़िर . शुरुआती दरियाफ्त की गई. कैपेबिलिटी अस्सेसमेंट के बाद सूट्केस थमा दिया गया.
पोल की रौशनी में सलीम मियाँ ने काम शुरु किया.
"पाँच मिनट में खुल जायेगा .ऐसे ही काम तो रोज़ किया करते हैं"
संतोष ने मौके और हालात का फायदा उठाते हुये सिगरेट सुलगा लिया . (अब इतने नाज़ुक मौके पर क्या गुस्सा होती मैं)

हम बैठे रहे , हम बैठे रहे , हम बैठे रहे, कुछ इस तरह जैसे कहा गया है न "सुबह हुई शाम हुई , जिंदगी तमाम हुई "
इतनी देर बाद पता चला कि सलीम मियाँ भी तार लेकर हमारा वाला ही तरीका आजमा रहे हैं, यानि एक एक करके नंबर.
इस बीच लोग आते , सिगरेट खरीदते वहीं नुक्कड पर वाली दुकान से , जिज्ञासु होते हमें वहाँ बैठे देखकर, कुछ सुझाव उछालते, अपने एकाध इसी किस्म का अनुभव सुनाते कि किस तरह ऐसा ही सूटकेस खोला ( जैसे सूटकेस न खोला रण जीत लिया, वर्ल्ड कप जीत लिया )
हम कुढते रहे, सुनते रहे, खून उबलता रहा .

संतोष ने तंग आ कर अल्टीमेटम दिया, "अगर दस मिनट में नहीं खुला तो तोड दो"
सलीम मियाँ पर भी सलीम की आत्मा सवार हो चुकी थी. जिद ठन चुकी थी.
"खुलेगी कैसे नहीं साहब "
अब हम गिडगिडा रहे थे, "अरे तोड भी दे यार "

ग्यारह बजने वाले थे. सलीम नें कमर्शियल ब्रेक लिया. अपने साथी को उसके मोबाइइल पर फोन किया ( जियो हिन्दुस्तान, हर किसी की जेब में सेल फोन )
हमें दिलासा दी ,"एजाज़ एक्स्पर्ट है , खोल देगा "

आधे घंटे बाद खुदा खुदा करके एजाज़ का आगमन. तब तक पोल की लाईट मुर्झा कर धीमी हो चुकी थी . एजाज़, सलीम और सूटकेस के साथ हम घर की ओर प्रस्थान कर गये . गार्ड के कमरे में गेट पर उतार उन्हें हिदायत दी कि अगर खुल जाये तो फ्लैट में फोन करे. दो मिनट में पस्तहाल बाँकुडे पलंग पर निढाल पाये गये.

अभी ठीक से लेटे भी नहीं थे कि फोन आ गया.

सूटकेस खुल गया था. आर्कीमीडीज़ को कैसा लगा होगा, आज जाकर समझ आया


(अगला भाग कोची का )

7 comments:

आलोक said...

ये तो बताइए कि नम्बर से खुला या तोड़ के?

ई-छाया said...

अरे भाई, बहुत धीरे धीरे काम चल रहा है, अभी तक केवल सूटकेस खुला है।
धीर धरो मना, यही गा लेता हूँ।

उन्मुक्त said...

रोचक किस्सा है| क्या १७२९ नम्बर की कोशिश की थी?

Pratyaksha said...

नम्बर से ही खुला आलोक जी .689 था. (अब कोड बदल दिया है ;-)
उनमुक्त जी गनीमत था कि तीन नंबर ही थे.
छाया जी थोडा सब्र...फल शायद मीठा हो. आपको सुंदर जगहों की सैर करायेंगे

Manish Kumar said...

हमारा भी दो सालों से केरल जाने का कार्यक्रम टल रहा है। आपकी कथा पहले सुन लें फिर टिप्स लेंगे आपसे :)

अनूप शुक्ल said...

तीन दिन हो गये सूटकेस खुले हुये। यात्रा शुरू करें!

संगीता मनराल said...

काफी रोचक किस्सा है|

आशा है आगे कि यात्रा इतनी झुनझलाहट भरी नहीं रही होगी :-)
हम सब जानने को बेताब हैं|