9/20/2011

रुकी हुई रेल


हिलते पर्दे से छनकर रौशनी आती है , शीशे के बोल में अरालिया की एक लतर , किताबों की टांड में एक ग्रॉसमन , रिल्के की ना समझी कोई कविता की एक अदद पंक्ति, चाय की दुकान पर आधी पी गई एक टूटी चीनी मिट्टी की प्याली , झगड़ालू बत्तखों के कैंक कैंक के बीच ज़रा सा (जो होना ही था ऐसी संगत में ) गुस्सा और मेहताब मियाँ के नमाज़ के वक्त देर कराते पर्दे की बहस करते हँसते कहते , दोस्त

कोल्ताई की फिल्म पर धीमे बात करते , इतवार की उदास दोपहर दो बूँद आँसू की संगत में याद करते बारिश की एक नम सुबह , बरसों पहले की सूखी घास पर रेंगते चींटे , हवा में उड़ते पतंगे , अलसाये भुनभुनाते भौंरे , कहते सन डैप्पल्ड , एक भुतहा काल्पनिक रेल जो जाने किस शहर लिये जाता मुझे ,वक्त में सुन्न जँगलात , हरी वादी , माँ के घने काले केश , आड़ी तिरछी कहानियाँ , सूनी सड़कें , छापे की वही रंगीन बचपन की फ्रॉक  , एक मीठी गोली चूसता लड़का देखता है मुड़ कर अब भी , जाने कहाँ चला गया , किस अजाने भूगोल , बँद होती एक खिड़की के पीछे का धुँधलाता संसार , सुनसान स्टेशन पर रुकी हुई है रेल अब भी हज़ारों साल 

40 comments:

  1. आप का आना…उजले दिनों की याद सा…

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  2. बहुत सुन्दर...न जाने अतीत के कितने रेडियो स्टेशन अपना सदियों से रुका प्रसारण अचानक फिर करने लगे...एक साथ :-)

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  3. हर बार की तरह एक अलग ही अंदाज़ और अल्फाज़.

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  4. कुछ नयापन लिए हुए है यह आलेख.

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  5. गोया ...किसी ने पसंदीदा म्यूजिक धीमा ऑन किया हो जैसे

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  6. प्रतीक सेवारत हैं, भावों के दरबार में।

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  7. अलग हट के लिखी गई रचना।

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  8. बहुत सुन्दर...न जाने अतीत के कितने रेडियो स्टेशन अपना सदियों से रुका प्रसारण अचानक फिर करने लगे...एक साथ

    बहुत दिनों के बाद आपको पढ़ा .. बढ़िया लगी.. आभार...

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  9. दबे पाँव आती हो भीतर का सब कुछः हिलाने...:-)

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  10. वाह, आपके इस लेख को पढ़ कर जाने क्यों प्रमोद सिंह जी की याद आ गयी..

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  11. Anonymous9:46 am

    कुछ तो नया है.... बधाई!

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  12. बिन आंखें बंद किए भी सब कुछ जी लेती हूं... आपके साथ ...हर बार :)

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  13. लय ताल में थिरकती है आप्की एक एक शब्द....शुक्रिया

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  14. Anonymous6:09 pm

    Great fforumm! Thanx guys!

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  15. आपको जन्मदिन कि हार्दिक शुभकामनाएं!
    आप सार्थक हों और सफल हों!


    मेरे ख्याल से आप पावरग्रिड में हैं,
    मैं भी पावरग्रिड में ही हूँ, मुजफ्फरपुर में|

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  16. मैं दिनेश पारीक आज पहली बार आपके ब्लॉग पे आया हु और आज ही मुझे अफ़सोस करना पद रहा है की मैं पहले क्यूँ नहीं आया पर शायद ये तो इश्वर की लीला है उसने तो समय सीमा निधारित की होगी
    बात यहाँ मैं आपके ब्लॉग की कर रहा हु पर मेरे समझ से परे है की कहा तक इस का विमोचन कर सकू क्यूँ की इसके लिए तो मुझे बहुत दिनों तक लिखना पड़ेगा जो संभव नहीं है हा बार बार आपके ब्लॉग पे पतिकिर्या ही संभव है
    अति सूंदर और उतने सुन्दर से अपने लिखा और सजाया है बस आपसे गुजारिश है की आप मेरे ब्लॉग पे भी आये और मेरे ब्लॉग के सदशय बने और अपने विचारो से अवगत करवाए
    धन्यवाद
    दिनेश पारीक

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    खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद
    और बाकी स्वर शुद्ध लगते
    हैं, पंचम इसमें वर्जित है,
    पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें
    राग बागेश्री भी झलकता है.
    ..

    हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
    .. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में
    चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.

    ..
    Also visit my web page खरगोश

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  25. बहुत खूब ...वटवृक्ष के जरिये पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूँ ..बहुत अच्छा लगा .......

    कुछ अलग हटकर ...

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